स्नेह बंधन – डा.मधु आंधीवाल

आज आप मेरे साथ नहीं हैं पर आपका ममत्व भरा सानिध्य में कभी नहीं भूल पाती हूँ । आज मैं भी उम्र के ढलान पर हूँ पर जब पुरानी यादों में पहुंच जाती हूँ तो लगता है कि अभी भी तुम्हारी  छुटकी बन गयी । आप बड़ी बहन कम और एक मां का दायित्व निभाती थी । आप की ससुराल और मायका एक शहर में होने के कारण सबसे अधिक मुझे अच्छा लगता था क्योंकि मै अपनी सारी बातों की पोटली बना लेती थी और जब आप आती थी तो पूरी बात सुना ना दूं किसी और से आपको नहीं बोलने देती थी । आज भी वह दिन याद है जब मै स्कूल से लौटी तो मेरी अध्यापिका ने पास बुलाकर कहा कि चुन्नी पीछे से लपेटो और घर जाओ मेरी समझ नहीं आया की छुट्टी देकर क्यों भेज दिया । आप घर पर आई हुई थी पूछा जल्दी छुट्टी होगयी मैने कहा नहीं भेज दिया ।जब बाथरुम में कपड़े उतारे सलवार को देख कर जोर जोर से रोना शुरू कर दिया । आप भाग कर आई देखा और चिपटा

लिया और कहा पागल रोते नहीं है यह हर लड़की के साथ होता है। समझा कर सब तरीका बताया मै तो और आपके करीब आती गयी । मां से डर लगता था  फिर मेरी शादी की बात चलने लगी मै उस समय केवल 16 साल की थी मानसिक रुप से  बहुत बचपना था। पिताजी के अलावा कोई नहीं चाहता था कि इतनी जल्दी मेरी शादी हो तुम तो बिलकुल नहीं क्योंकि तुम भी शादी पर छोटी थी और वह मानसिक यातना ससुराल में झेल चुकी थी । मै कभी किसी बात की जिद करती या नखरे करती तब मेरा पक्ष लेती और कह देती थी मां यहाँ जिद कर लेगी ससुराल में कौन सुनेगा ।

      तुम्हारी छोटी बहुत बड़ी होगयी थी ‌ससुराल में ननदें थी । वह मेरे से उम्र में बड़ी पर शादी नहीं हुई थी । एक जिठानी थी । वह हमेशा नीचा दिखाने की कोशिश में । सुबह अलार्म लगा कर सोती थी । जिससे सबसे पहले उठ जाऊं । जब भी परेशान होती बस तुम ही याद आती थी । जब मायेके जाती तुम मेरी परेशानी बिना कह समझ जाती थी । अभी कुछ दिन पहले बेटी के बेटा ने जन्म लिया । बस तुम्हारी यादों ने घेर लिया मेरे पहले प्रसव पर तुम कितनी परेशान थी । पूरे समय तुम्हारे स्नेह भरे प्रवचन सुनाई देते थे । तुम हमारे बीच नहीं हो पर तुम्हारा यह स्नेह बंधन हमेशा तुम्हारी यादों से बांधे रखेगा ।

डा.मधु आंधीवाल

अलीगढ़

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