शर्मसार – रश्मि झा मिश्रा। : Moral stories in hindi

भैया आपको जरा भी शर्म नहीं आई… ऐसे आने में… देखिए सब कितना कुछ लाए हैं… कितने महंगे महंगे गिफ्ट… गहने.. कपड़े.. और आप क्या सिर्फ चांदी की मठिया और कपड़े लेकर आ गए… क्या कहूंगी मैं सबको… कैसे दिखाऊंगी… अब तो शर्मसार करना बंद करिए… हमेशा से आपका वही रोना रहा है….!

 नीता अपने रिटायर्ड भैया को एक साथ इतना कुछ सुना गई… !

करीब दस साल हुए भइया ने ही नीता की शादी की थी… मां पापा तो बहुत पहले ही गुजर गए थे… भैया ने ही नीता को पाल-पोस कर… अपनी दो बेटियों.. और दो बेटों के साथ बड़ा किया था…. नीता से उम्र में बहुत बड़े थे भैया… उनकी बेटियां नीता की हम उम्र थी… भैया ने अपनी हैसियत के हिसाब से दोनों बेटियों और बहन तीनों की शादी में… कोई कोर कसर नहीं छोड़ी… बाकी लड़की का भाग्य…!

 नीता की शादी हुई तो… उसका पति कुछ अधिक नहीं कमाता था… पर शादी के बाद उसकी खूब उन्नति हुई… बड़ा आलीशान बंगला… तीन गाड़ियां… नौकर चाकर… सब कुछ नीता के एक इशारे पर हाजिर रहते थे…!

सास भी बहू को सर आंखों पर रखती थी… क्योंकि उसी के आने के बाद… बेटे ने इतनी तरक्की की थी…!

 एक तो नीता को पहले ही लगता था कि.… भैया भाभी उसके साथ भेदभाव करते हैं… अपनी बेटियों को अधिक मान दान करते हैं… मुझे कम.… और अब इतना कुछ पा लेने के बाद तो उसका दिमाग और सातवें आसमान पर पहुंच गया था…!

 वह कोई भी मौका नहीं चूकती थी… भैया भाभी को सुनाने का… वे बेचारे अब वृद्ध हो चुके थे… दो बेटे.. बहु.. पोते पोतियों…सबको देखना था… बेटों की भी कुछ अच्छी नौकरी नहीं थी… दोनों बेटियां भी औसत घरों में ही थी… तो स्वाभाविक था कि जो चार पैसे पास में थे… उसे बचा कर… समझदारी से जिसे जरूरत है उसी को देते खर्च करते थे…!

 नीता के इसी स्वभाव के कारण… वैसे भी उनका आना-जाना ना के बराबर हो गया था… पर अभी ना आते तो कैसे होता… तीन बेटियों के बाद नीता ने बेटे को जन्म दिया था… घर में जश्न का माहौल था… इतने सालों में पहली बार… नीता के ससुर जी ने खुद फोन कर… उसके भैया को बुलाया था… ऐसे में उनके हैसियत के हिसाब से… उन्हें जो ठीक लगा… वे ले आए… पर जैसे ही नीता ने देखा वह बुरी तरह झल्ला उठी….!

भैया यह तो जानते थे की नीता खुश नहीं होगी… पर इस तरह उनकी बेइज्जती करेगी… यह उन्हें नहीं लगा था… नीता इतना कह कर मुड़ी ही थी कि पीछे से उसकी सासू मां आकर खड़ी हो गई… उन्होंने नीता को धीरे से कहा.… “शर्मसार तो मैं हो गई… ऐसे बात करते हैं अपने भैया से… यह क्या तरीका है नीता… !”

 भैया दुखी होकर बोले…” जाने दीजिए… आप अपना मन खराब मत करिए… मुझसे ही गलती हुई… मुझे किसी तरह जुगाड़ करके… अपने भांजे के लिए कुछ कीमती उपहार लाना ही चाहिए था… माफ करना नीता…!”

 नीता अकड़ के साथ खड़ी रही… भैया चुपचाप नीता के घर से निकल गए… सासू मां ने नीता को प्यार से समझाने की कोशिश की… पर घर में मेहमानों को कुछ ना पता चले… इसलिए बात अधिक न बढ़ाकर वह भी मेहमानों के स्वागत में लग गई…..!

 तब सुबह का समय था… धीरे-धीरे शाम तक सभी लोग आ गए… खुसर-पुसर होने लगी… बहू के मायके से कोई नहीं आया… नीता तुम्हारे मायके से क्या आया… नीता थक गई थी बात को टालते टालते…!

  वह अब कुछ बोलना ही चाहती थी कि… भैया एक सोने की छोटी चेन… लेकर आ गए… लाकर नीता के हाथ में रख दिया… नीता की आंखें चमक गईं… उसने झट से खोलकर बच्चे के गले में डाल दिया… अब पहले से लाई हुई चीज भी निकाल कर सामने ले आई…” यह सब आया है मेरे मायके से…”

 नीता का खिला हुआ चेहरा देखकर… भैया निहाल हुए जा रहे थे…!

 नीता ने भांजे को मामा की गोद में डाल दिया… जैसे ही मामा ने भांजे को लाड़ करने सीने से लगाया… भैया की सूनी अंगुली नीता को साल गई… बचपन से देखती आई थी… भैया के दाहिने हाथ की अनामिका में पड़ी एक अंगूठी… आज तक इतना वक्त आया गया… वह अंगूठी कभी नहीं उतरी…!

 भैया हमेशा कहते थे… पुश्तैनी अंगूठी है… बाबा ने पिताजी को दी… उन्होंने मुझे दी… मैं भी जीते जी इसका मान रखूंगा… उंगली में उस जगह सफेद निशान पड़ गया था… तुरंत निकाली गई थी…!

 नीता भैया का हाथ पकड़ कोने में ले आई…पूछ बैठी…” भैया अंगूठी क्या हुई… कहां गई…?” पीछे से सासू मां भी आईं… उन्हें डर था कि नीता फिर कुछ बुरा भला ना बोल बैठे… भैया हाथ छुड़ाते हुए बोले “कितने दिन अंगूठी पहनूंगा लाडो… तेरी खुशी से बढ़कर थोड़े ही है कुछ….!”

” तो क्या भैया आप उसी से लॉकेट ले आए…!”

 “तो क्या करता बिट्टो… मेरे पास कोई खजाना तो है नहीं… तू तो सब जानती है…!”

” नहीं भैया यह आपने सही नहीं किया…!”

 नीता की आंखें भर आई…सासू मां बोली..” बेटा जिस भैया के कारण… तू अभी कुछ घंटे पहले शर्मसार हो रही थी… वह भैया तुम्हें शर्मसार कैसे होने देते… इसलिए मजबूरी में ही उन्हें ऐसा करना पड़ा ना… आज इन्हीं के आशीर्वाद से तुम इतनी फली फूली हो… और इन्हीं का तिरस्कार कर रही हो…!”

 नीता फूटकर रो पड़ी… भैया मुझे माफ कर दीजिए… मैं हमेशा आपके प्यार को दिखावा ही समझती रही… भैया ने नीता के आंसू पोंछते हुए कहा..” मेरी लाडो… तेरे भैया का प्यार ना कल दिखावा था ना आज है… हां दिखावे के लिए… तेरे भैया के पास अधिक कुछ नहीं… बस तू हमेशा खुश रहे यही मेरा आशीर्वाद है… चल सब तेरा इंतजार कर रहे होंगे….!”

 सब समारोह धूमधाम से संपन्न हो गया… जब भैया जाने लगे तो विदाई में नीता ने…. सबके लिए कपड़ों के साथ… भैया का हाथ पकड़ उसमें अंगूठी डाल दिया….” अरे लाडो यह क्या है… तुम्हें कैसे मिला…?”

 भैया मुझे प्रायश्चित का मौका भगवान ने दे दिया… आप जहां इसे देकर आए थे… वह हमारी पहचान के थे… मैंने एक दो जगह पता किया तो तुरंत ही पता चल गया… अब मुझे कुछ नहीं चाहिए… बस अपना आशीर्वाद हम पर हमेशा बनाए रखिएगा….!

भैया की आंखें खुशी से भर गई… उन्होंने प्यार से नीता को गले लगा लिया….!

स्वलिखित

रश्मि झा मिश्रा

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