शक- अविनाश स आठल्ये : Moral stories in hindi

moral stories in hindi : लखनऊ शहर यूँ भी अपनी  रंगीन शामों के लिये नवाबों के ज़माने से मशहूर हैं… आज की शाम कुदरत भी कुछ ज्यादा मेहरबान थी, फ़रवरी दूसरा सप्ताह चल रहा था..शाम के तकरीबन साढ़े पांच का वक्त हो रहा था। गुलाबी ठंड भी जा चुकी थी, अब तो लम्बी आस्तीन के शर्ट भी स्वेटर की तुलना में ज्यादा सुखद आनंद दे रहे थे।

पिछले महीने ही गौंडा जिला से बदली होकर नया पदभार सम्हालकर अपने गोमती नगर थाना में बैठे हुये सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा काँच के गिलास में कड़क अदरख वाली चाय का आनंद ले रहे थे,  उनका सारा महकमा भी चाय की चुस्कियां लेते हुये हँसी मज़ाक में लगा हुआ था, कोई बड़ा केस पेंडिंग में था नहीं इसलिए सारा माहौल थोड़ा खुशनुमा था।

तभी सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा की टेबल पर रखा काला फोन का डिब्बा घनघना उठता है…

 

ट्रिन…

ट्रिन…

ट्रिन…

 

हेलो–हेलो…इंस्पेक्टर साहब जल्दी आइये, मेरी पत्नी सुगंधा का किसी ने कत्ल कर दिया है…

फोन के दूसरी तरफ़ से बहुत घबराहट भरी आवाज आई…

 

जी अपना नाम और पता बता दें?  हवलदार  नदीम अंसारी जिसने कि फ़ोन उठाया था, ने चिरपरिचित पुलिसिया शैली में उस फोन कर्ता को जवाब दिया तो मानो शताब्दी की गति से आ रही ट्रैन ने अचानक पैसेंजर ट्रैन की गति पकड़ ली।

जी मुझे तरुण गुप्ता कहतें हैं, मैं विवेकानंद वार्ड में मकान नंबर 34 में गोमती नगर में ही रहता हूँ।

अब उस पुरुष ने थोड़ा संयत होकर अपनी बात कही..

वारदात का पूरा ब्यौरा बतायें? नदीम अंसारी सारी जानकारी एक कागज़ पर लिखतें जा रहा था।

लगभग 34 वर्षीय महिला विभा गुप्ता का कल रात उसके ही निवास स्थान पर किसी ने बेरहमी चाकू से गोदकर कत्ल कर दिया था, घटना शायद लूटपाट के इरादे से की गई थी, इसलिए घर का सारा सामान बिखरा पड़ा था, अभी तरुण गुप्ता जो कि उस महिला का पति हैं, से चोरी के सारे सामान का ब्यौरा मिलना बाक़ी हैं।

पति तरुण गुप्ता दो दिन के लिये कानपुर गया हुआ था, इस बीच किसी ने घर की रेकी करके, अकेली महिला समझकर घटना को अंजाम दे दिया। 

सब इंस्पेक्टर  प्रभात वर्मा ने अपने हेड कॉन्स्टेबल रविन्द्र मिश्रा को प्राथमिकी दर्ज करके, फॉरेंसिक टीम और एम्बुलेंस को घटनास्थल की जानकारी देकर कुछ ही समय बाद स्वयं ही दो कॉन्स्टेबल के साथ जीप से तरुण गुप्ता के बताये गये पते पर पहुंच जातें हैं।

विवेकानंद वार्ड के एक घर के सामने भीड़ देखकर ही सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा समझ गये थे कि वारदात इसी जगह पर हुई होगी.. उस पॉश कॉलोनी में सभी घरों के सामने खड़ी गाड़ियां रहवासियों की सुदृढ आर्थिक स्थिति बयां कर रही थी। पुलिस की गाड़ी देखते ही अपने आप तमाशबीन और आस पड़ोस के लोगों की भीड़ छंटकर पुलिस को अंदर आने का रास्ता दे रही थी।

वह तरुण गुप्ता का ही घर था, एक बेड पर तरुण गुप्ता की पत्नी विभा गुप्ता की लाश पड़ी हुई थी, उसकी गर्दन पर चाकू के वार का निशान था, जिससे श्वास नली कटने से उस महिला की मौत हो गई थी, मृतका के कपड़े व्यवस्थित थे यानी उसके साथ कोई  ज्यादती करने की कोशिश नहीं की गई थी। फोटोग्राफर ने लाश को हाँथ लगाये बिना ही विभिन्न एंगल से फ़ोटो लेना शुरू कर दिया था।

अब तक फोरेंसिक टीम ने भी आकर अपना मोर्चा सम्हाल लिया था, डोरबेल से लेकर बाथरूम तक के हर  संभावित स्पॉट के फिंगर प्रिंट लिये जा रहे थे, किसी भी दाग धब्बे, खून के    छीटों, बाल, मृतका के नाखूनों के नमूनों एक एक प्लाटिक पाउच में इकट्ठा किये जा रहे थे, डस्टबीन के कचरे से लेकर सारे ड्रेनेज आउटलेट तक के नमूने एकत्रित कर लिए गये थे।

अब तक मृतका के पलंग के पास शोकाकुल बैठे हुये तरुण गुप्ता से सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा ने कहा, मैं आपका दुःख समझ सकता हूँ, लेकिन हमें अपनी तहकीकात पूरी करने के लिये कुछ सवाल करने हैं, यदि आप इस स्थिति में हों तो अभी करते हैं, वरना लाश को जब पोस्टमार्टम के लिये ले जाया जायेगा तब कर लेंगे।

कोई बात नहीं सर आप पूछ सकतें हैं अपने प्रश्न तरुण गुप्ता ने अपनी सहमति दी तो सब इंस्पेक्टर  प्रभात वर्मा ने प्रश्न पूछना प्रारंभ किया,  कॉन्स्टेबल सुरेंद्र पाल भी पास में एक स्टूल पर डायरी लेकर सवालों के जवाब नोट करने बैठ गया।

इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा-तरुण जी आपका व्यवसाय क्या है?

जी मैं लखनऊ न्यायालय की खण्डपीठ में एडवोकेट हूँ… तरुण गुप्ता का  संक्षिप्त था उत्तर था।

प्रभात वर्मा- परिवार में और कितने सदस्य हैं?

तरुण गुप्ता- बस एक बेटी आराधना 4 साल की है, मेरे पेरेंट्स बलिया जिले में खेती बाड़ी करतें हैं।

प्रभात वर्मा- घर में कोई लूटपाट, सामान वगरैह जो नदारद हो?

तरुण गुप्ता- झल्लाते हुये, कैसी बात कर रहें हैं आप? घर मे बीबी की लाश पड़ी हो और मैं यह देखूं की क्या समान चोरी हो गया?

प्रभात वर्मा- जी घटना को देखकर साफ समझ आ रहा है कि वारदात लूटपाट के इरादे से की गई होगी, इसलिए सारी तहकीकात करना हमारा काम है, आप अभी नहीं तो बाद में इत्मीनान से सारी बातें लिखवा सकतें हैं..

तब तक फोटोग्राफर लाश के फोटोज लेने के बाद घर में अस्तव्यस्त पड़ी अलमारी, टूटे हुए लॉकर को देखकर वहाँ के भी फोटोज लेने लगता है..

सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा- आपको वारदात के बारें में कब पता चला? घटना के वक्त आप कहाँ थे?

तरुण गुप्ता- जी मुझे कोर्ट के कुछ काम से कानपुर जाना था, इसलिए कल सुबह ही मैं बेटी को लेकर अपनी ससुराल गया क्योंकि विभा की माँ की आराधना को देखने की बहुत इक्छा हो रही थी, कल मेरा पूरा काम नही हो सका था और  मैं अपने ससुर जी के आग्रह पर कल रात को अपनी ससुराल ही रुक गया था, मुझे क्या पता था कि मेरी बीबी के साथ ऐसा हादसा हो जायेगा… फिर दोपहर को कामवाली बाई ने दरवाजा टूटा हुआ देखकर मुझे फोन किया, उसी ने बताया कि विभा को चाकू लग गया है तब में कानपुर से अपने सास ससुर और बेटी को लेकर सीधा ही घर पर आ गया.. 

कमाल है, आप अपनी ससुराल बेटी को लेकर गये लेकिन पत्नी को साथ लेकर नहीं गये? प्रभात वर्मा ने पुनः प्रश्न किया।

जी ऐसा नहीं है कि विभा के मायके आने की कोई इक्छा नही थी, लेकिन कल उसकी किटी पार्टी थी घर पर ही इसलिए उसने कहा था कि वह शनिवार को आ जायेगी.. उस वृद्ध पुरूष जो कि विभा के पिता थे ने दुखभरी आवाज़ में कहा.. साथ में सिसकती हुई उनकी पत्नी और मासूम आराधना भी थी…

प्रथम दृष्टया ही टूटे हुये दरवाजे, लॉकर, अलमारी एवम विभा के मृत शरीर को देखकर समझ आ रहा था कि हत्या लूट के इरादे से की गई थी, फ़िर भी प्रभात वर्मा ने अगला प्रश्न किया..

किसी से कोई दुश्मनी? कोई धमकी? किसी पर शक है क्या आपको?

तरुण गुप्ता- जी वकालत मेरा पेशा है, हो सकता है कि कोई मुझसे दुश्मनी पाल बैठा हो तो मुझे नहीं पता, लेकिन मेरी किसी से कोई दुश्मनी नहीं है, न ही मुझे कोई धमकी मिली।

प्रभात वर्मा- आपके घर पर काम करने वाले नौकर-चाकर?

तरुण गुप्ता- जी बस वही कमला आती है रोज सुबह 10-11 बजे, बाक़ी तो कोई नौकर नहीं है हमारे यहाँ, यह पिछले 4 साल से हमारे घर पर काम कर रही हैं, इस पर तो मुझे कोई शक नहीं है।

सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा अपनी डायरी में नौकरानी कमला का मोबाईल नम्बर, तरुण गुप्ता का मोबाईल नम्बर, किटी पार्टी में आई सभी महिलाओं के मोबाईल नम्बर डायरी में नोट कर लेते हैं।

अब तक फोरेंसिक टीम का भी काम हो चुका था, लाश का पंचनामा करके पोस्टमार्टम के लिये  एम्बुलेंस से भेज दिया गया, फोटोग्राफर भी अपना काम कर चुका था, तभी प्रभात वर्मा की नज़र घर पर लगे सीसीटीवी कैमरे पर जाती है…

यह कैमरे चालू हैं क्या?

जी बिल्कुल चालू हैं..24 घण्टे इनकी रेकॉर्डिंग घर पर लगे कम्प्यूटर की हार्डड्राइव में रिकॉर्ड होती रहती है।..तरुण गुप्ता ने कहा..

Ok तो मुझे यह हार्डड्राइव भी चाहिए होगी, फोरेंसिक टीम के एक सदस्य ने कहा और कम्यूटर से वह हार्डडिस्क निकालने लगा।

सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा ने सारी वारदात की रिपोर्ट एवं जब्त समान की लिस्ट पर तरुण गुप्ता सहित वहाँ उपस्थित 2 अन्य पड़ोसियों से दस्तख़त करवाकर अपनी टीम के साथ वापस गोमती नगर थाने लौट आये।

                                       ★★

सर मुझे तो साफ़ लग रहा है कि हत्या लूटपाट के इरादे से हुई होगी…कॉन्स्टेबल सुरेंद्र पाल ने FIR रिपोर्ट टाइप करते करते हैं।

अरे जल्दबाजी मत कर, अभी पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आ जाने दे, सीसीटीवी की रिकॉर्डिंग देख लें फ़िर सोचते हैं कि असल मे कल रात क्या हुआ था, सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा ने कहा..

तभी फॉरेंसिक डिपार्टमेंट से महेश शर्मा का फोन आता है कि एक कम्यूटर एक्सपर्ट की मदद से फोरेंसिक टीम ने सीसीटीवी की रिकॉर्डिंग चैक करके पुष्टि कर दी कि उस रिकॉर्डिंग में कोई कांटछांट अथवा छेड़छाड़ नहीं हुई है। आप एक बार रिकॉर्डिंग चैक कर लें, इसमें लूटपाट करने वाले लोगों का भी रिकॉर्डिंग हैं। केस बिल्कुल साफ है कि हत्या लूटपाट के इरादे से ही कि गई है।

प्रभात वर्मा ने उस सीसीटीवी रिकॉर्डिंग की कॉपी मंगवाकर अपने थाने के कम्यूटर में चैक की तो सारी घटनाएं एक फ़िल्म की तरह सामने आ गई..

घटना वाली सुबह विभा अपने पति तरुण गुप्ता के साथ प्यार से नाश्ता करती है, बेटी आराधना को दूध और ब्रेड खिलाती है, फ़िर दरवाजे से उन दोनों को बाय करते नज़र आती है, उनके जाने के बाद वह कुछ एक फोन करती है, और नाश्ता करके किचिन में खाने की तैयारी करती है।

दोपहर को वह रेडी होकर एक बार फिर से किचन में खाने की चीज़ें बनाने लगती है, लगभग 4 बजे से उसके घर पर महिलाओं का आना शुरू हो जाता है, शायद इसी किती पार्टी की वजह से विभा गुप्ता तरुण के साथ नहीं गई थी।

कुल 14 महिलाएं थी उस किटी पार्टी में, लगभग दो घण्टे महिलाओं के गेम्स और गॉसिप चलते रहे, उनके ठहाके बता रहे थे कि माहौल कितना मजाकिया चल रहा था, कहीं कोई संदेहास्पद बात नज़र नहीं आई.. खाना वगरैह खाने के बाद वह सारी महिलाएं अपने घर चली गई।

रात तकरीबन साढे दस बजे विभा गुप्ता जब टीवी देख रही थी, तभी डोरबेल बजती है, दो पुरूष आते हैं और विभा गुप्ता से कुछ पूछते हैं, उसके बाद उससे शायद पानी पीने को माँगते हैं.. जैसे ही वह रसोई घर पर पानी लेने जाती हैं, वह दोनों बदमाश  मैन डोर बंद करके अंदर तक चले आते हैं।  दरवाजा बन्द होने की आवाज सुनकर जैसे ही विभा गुप्ता पलटकर पीछे देखती है, दोनो बदमाश उसका मुँह दबाकर बेडरूम तक उसे उठाकर ले आते हैं, फिर एक ही चाकू के वार से विभा गुप्ता के गर्दन की नस काट देते हैं, जिससे उसकी मौत हो जाती हैं, इसके बाद वह दोनों इत्मीनान से घर के अलमारी और लॉकर की तलाशी लेकर कीमती सामान बटोरकर चले जाते हैं।

यद्धपि पूरा केस आईने की तरह साफ हो चुका था इसलिए शक की कोई गुंजाइश नहीं थी, लेकिन फ़िर भी सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा ने पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आने तक, तरुण गुप्ता के मोबाईल की पिछले दो दिन की लोकेशन और कॉल डिटेल्स पता करने को टेलिकॉम कम्पनी को आग्रह किया। फिर सीसीटीवी में नज़र आ रहे दोनों बदमाशों की फोटोज डाऊनलोड करके सभी थानों में उनके बारें में रिकॉर्ड खंगालने को भेज दिये।

अगले दिन 11 बजे तक दो थानों से इन दोनों बदमाशों का पुलिस रेकॉर्ड भी प्रभात वर्मा के पास पहुंच चुका था.. दोनों ही पेशेवर अपराधी थे, उनपर कई अन्य थानों में भी हत्या और लूटपाट के मामले दर्ज थे, फ़िलहाल वह जमानत पर बाहर थे.. उस रिकॉर्ड में दर्ज एड्रैस की वजह से पुलिस को उन दोनों अपराधियों को घर से ढूंढकर पकड़ लाने में कोई मुश्किल नहीं हुई..उनके पास से चोरी का सामान भी बरामद हो चुका था, और थोड़ी सख्ती के बाद उन दोनों बदमाशों ने कबूल भी कर लिया कि उन्होंने लूटपाट के इरादे से विभा गुप्ता को घर में अकेली देखकर उस हमला किया, और उसकी हत्या करके लूटपाट कर ली थी।

शाम तक पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आने से भी इस बात की पुष्टि हो गई थी कि घटना  रात के लगभग साढ़े दस से ग्यारह बजे के मध्य की है, महिला की एक ही वार में चाकू से गला काटकर हत्या की गई थी, यानी हत्यारे पेशेवर अपराधी थे, शरीर पर अन्य कोई चोट या निशान नहीं थे। यूँ तो सारा मामला पानी की तरह साफ़ हो चुका था, फिर भी एहतियातन सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा ने तरुण गुप्ता के पिछले दो दिन के कॉल डिटेल्स और मोबाईल लोकेशन चैक की, वारदात के वक्त उसकी मोबाईल लोकेशन कानपुर की ही दर्शा रही थी, कॉल डिटेल्स में भी कोई शक की बात नज़र नहीं आई। कामवाली बाई और आस पड़ोस वालों से बात करके भी पता चला कि दोनों पति-पत्नी के मध्य मधुर संबंध थे, लिहाजा किसी भी प्रकार की शक की कोई गुंजाइश नहीं बची थी, केस क्लोज़ करने में अब सिर्फ औपचारिकता ही बाक़ी थी।

                              ★★★

अगले दिन सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा सारे सबूत, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, गवाहों एवम पकड़े गये अपराधियों के बयान, चोरी के बरामद सामान, मोबाईल लोकेशन की डिटेल्स, सीसीटीवी फुटेज को इकट्ठा करके इस मामले की चार्जशीट बनाकर अदालत में प्रस्तुत करने से पहले तरुण गुप्ता को उन अपराधियों से बरामद चोरी के सामान की शिनाख्ती के लिये अपने थाने बुलातें हैं। तरुण गुप्ता सभी सामान की पहचानकर उसकी पुष्टि कर देतें हैं।

इसके बाद सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा, तरुण गुप्ता को अपनी हिरासत में बंद दोनों बदमाशों के बारें में बतातें हैं कि उन्होंने ही आपकी पत्नी विभा गुप्ता का कत्ल किया था, प्रभात वर्मा ने पूछा आपकी इनसे क़भी पहले कोई मुलाकात हुई हो या कोई व्यक्तिगत दुश्मनी ? तरुण गुप्ता कहते हैं कि उन्होंने इन बदमाशों को पहली बार देखा है इसलिए उनसे किसी भी प्रकार की दुश्मनी का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। 

अभी सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा बरामद चोरी के समान की लिस्ट पर तरुण गुप्ता के दस्तख़त करवा ही रहे थे कि तभी इंस्पेक्टर विकास चतुर्वेदी उस थाने में आते हैं और सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा से इस केस की अपडेट लेने लगतें हैं..

तरुण गुप्ता को सामने देखकर इंस्पेक्टर विकास चतुर्वेदी सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा को आदेश देकर कहतें हैं, देखना इनकी श्रीमती जी के कत्ल के केस में किसी भी प्रकार की कोई लापरवाही न होने पाये, तरुण गुप्ता जी इस शहर के प्रसिद्ध “क्रिमिनल केस लॉयर” हैं, हमारी ज़रा सी भी चूक पर यह हमें ही कोर्ट में खड़ा कर सकतें हैं….

 

यूँ तो हर एडवोकेट किसी न किसी क्षेत्र का स्पेशलिस्ट होता है जिसमें उसकी सफलता के अनुसार उसके पास उसके स्पेशलाइजेशन से सम्बंधित मामलों से सम्बंधित लोग ही अपने केस की पैरवी के लिये उसके पास आतें हैं, इसलिए तरुण गुप्ता का क्रिमिनल केस लॉयर होना भी एक सामान्य सी बात थी, लेकिन इंस्पेक्टर विकास चतुर्वेदी द्वारा तरुण गुप्ता को “प्रसिद्ध क्रिमिनल केस लॉयर” कहते ही तरुण गुप्ता का सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा की तरफ़ “चोर भरी निगाह” से देखना, प्रभात वर्मा के मन में “शक” पैदा कर गया।

अरे अरे कैसी बात कह दी  चतुर्वेदी जी आपने तो? आपको तो तारीफ करनी चाहिये  सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा की जो इन्होंने 48 घण्टों के भीतर न सिर्फ़ क़ातिल को पकड़ लिया, बल्कि लूट का माल भी बरामद कर लिया..एडवोकेट तरुण गुप्ता ने प्रभात वर्मा की हौसलाआफजाई करते हुए कहा।

इस तारीफ से बेअसर सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा ने कहा ओके सर वैसे तो केस पूरी तरह से क्लियर हो चुका है कि हत्या लूटपाट के इरादे से ही की गई थी, लेकिन आप कह रहें हैं तो मैं आज चार्जशीट दाखिल नहीं करता, थोड़ी और छानबीन करने के बाद इस केस को अदालत में पेश करूँगा..क्योंकि तरुण गुप्ता जी “क्रिमिनल लॉयर” जो ठहरे…

                             ★★★★

उन सबके जाते ही सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा ने एक बार फिर से सारे केस की फाइल,सीसीटीवी फुटेज आदि सभी कुछ ध्यान से देखे,उनमें ऐसा कुछ भी समझ नहीं आया जो अस्वाभाविक हो, फ़िर मात्र दो दिन में केस ख़त्म हो रहा है, अपराधी भी समान सहित पकड़े गये, लाखों के ज़ेवर और नगद लूटकर भी अपराधियों ने भागने की कोशिश नहीं की, बस यही बात प्रभात वर्मा को ज़रा खटकने लगी। मानों वह किसी की गढ़ी हुई सुनियोजित पटकथा का कोई पात्र हो..

उन्होंने सभी टेलिकॉम कम्पनियों से तरुण गुप्ता के रहने वाले लोकेशन पर पिछले एक माह से सक्रिय सभी मोबाईल नम्बर की जानकारी इकट्ठा की… इसके साथ की उन्होंने कानपुर में विभा गुप्ता के मायके के एड्रैस पर 3 दिन से सक्रिय सभी मोबाइल नम्बर्स की जानकारी इकठ्ठा की.. उसमे दो नम्बर मिले जो दोनो ही जगह सक्रिय थे..एक नम्बर तो वह था जो तरुण गुप्ता ने दिया था, जिसकी कॉल डिटेल्स से तरुण गुप्ता को कोई खास जानकारी प्राप्त नहीं हुई थी। वहीं दूसरा नम्बर जो दोनों ही जगह सक्रिय था, उसकी सिम तरुण गुप्ता के नाम पर रजिस्टर न होकर किसी अन्य व्यक्ति के “आधार नम्बर” पर ली गई थी।

सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा ने जब इस सिम नम्बर से पिछले 6 महीनों की कॉल डिटेल्स का सारा ब्यौरा मंगवाया तो उनके सामने तरुण गुप्ता की दूसरी ही तस्वीर नज़र आई।

मंजू सिंह नाम की किसी लड़की से तरुण गुप्ता की घण्टों बात हुआ करती थी, उस लड़की के सिम को जिस आधार कार्ड के नाम पर लिया गया था, उस पर दर्ज पते से उस लड़की तक सम्पर्क करने के लिये सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा ने एक लेडीज़ कॉन्स्टेबल को साथ लेकर हेड कॉन्स्टेबल को उसके घर भेज दिया।

मृतका विभा गुप्ता के पैन कार्ड की डिटेल्स से पता चला कि लगभग वर्ष भर पहले ही तरुण गुप्ता ने उसके नाम पर 5 करोड़ रुपये की जीवन बीमा पॉलिसी ली हुई है, जिसका नॉमिनि तरुण गुप्ता स्वयं हैं… ओह्ह तो यह वज़ह हैं विभा गुप्ता के कत्ल की.. सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा को धीरे धीरे सारी कड़ियाँ जुड़ती हुई नज़र आने लगी..

अब प्रभात वर्मा ने उन दोनों गिरफ्तार अपराधियों  के केस की फाइल चेक करके उनकी पैरवी करने वाले एडवोकेट का नाम पता किया, उनकी उम्मीद के अनुसार तरुण गुप्ता जिसने उन दोनों अपराधियों को पहचानने से इनकार कर दिया था, वही इन दोनों अपराधियों के दर्जन भर मामलों की विभिन्न अदालतों में पैरवी भी कर रहे थे।  

सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा को घर की नौकरानी से पूछताछ करने पर पता चला कि उस घर पर दो महीने पहले ही सीसीटीवी कैमरे इंस्टाल किये गये थे, उसमें दर्ज रेकॉर्डिंग ही इस घटना का सबसे बड़ा सबूत बन चुकी थी।

कत्ल की वज़ह और मास्टरमाइंड का पता तो चल चुका था लेकिन असल मसला उन सबसे सच उगलवाने का था, एक क्रिमिनल लॉयर की लिखी पटकथा के आधार पर उन दोनों अपराधियों ने कॉन्ट्रैक्ट किलिंग की थी, जिसके लिये उनको पहले से ही पता था कि उनको सीसीटीवी कैमरे में हत्या रिकॉर्ड करवाकर कुछ लूटपाट करके बाद में गिरफ्तार हो जाना है। इसके बाद उनकी जमानत और पैरवी तो वह क्रिमिनल लॉयर तरुण गुप्ता कर ही देंगे।

                        ★★★★★

सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा ने उन दोनों गिरफ्तार अपराधियों में से एक अपराधी को लेकर एक अलग कमरें “इंट्रोगेशन रूम” में ले जाकर बिना कोई प्रश्न किये ही इतना पीटना चालू कर दिया कि उसके कराहने की आवाज़ दूसरे अपराधी तक साफ सुनाई देने लगे। उसके बाद दो घण्टे तक बिना कुछ कहे उसे वहीं शांति से बैठे रहने दिया। दो घण्टे बाद उस अपराधी जिसकी अभी पिटाई नहीं हुई थी को सीधा प्रश्न कर दिया, तेरे साथी ने इतनी मार खाने के बाद तो सारा सच बता दिया है कि तुम लोगों ने अपने  दूसरे अदालती मामलों से की पैरवी करवाने के एवज में तरुण गुप्ता से उसके कहने के अनुसार उसकी पत्नी का कत्ल किया है, लेकिन तुम्हारा साथी तो सरकारी गवाह बनकर कम सजा पायेगा, तू अपनी फाँसी की सजा भुगतने को तैयार रहना…प्रभात वर्मा ने एडवोकेट तरुण गुप्ता के दूसरे मोबाईल नम्बर को दिखाते हुये कहा, इसी नम्बर से तुम दोनों की बात होती थी न, अब तो मुझे तुम दोनों की बात के वॉइस रिकॉर्ड भी मिल गये हैं, देखता हूँ तरुण गुप्ता खुद को ही कैसे बचा पाता है।

सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा का अंधेरे में चलाया तीर सीधे निशाने पर लगा, वह अपराधी टूट गया वह सारी बातें सिलसिलेवार तरीके से बताकर स्वयं सरकारी गवाह बनने के लिए तैयार हो गया।

सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा ने उसकी कही सारी बातें रिकॉर्ड करके, उससे सरकारी गवाह के शपथ पत्र पर हस्ताक्षर ले लिये..

अबतक वह लेडी कॉन्स्टेबल मंजू सिंह को लेकर थाने पहुंच चुकी थी, सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा ने उससे एडवोकेट तरुण गुप्ता के साथ सम्बन्धों के बारे में पूछा तो उसने साफ स्वीकार किया कि हाँ हम दोनों प्रेम करते हैं, लेकिन वह विवाहित हैं इसलिए मैं उनसे दूर जाना चाहती थी। सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा ने उससे भी तरुण गुप्ता के मोबाइल नम्बर को कन्फर्म किया, यह तरुण गुप्ता का वही मोबाइल नम्बर था, जो पुलिस को उनकी छानबीन के बाद मिला था।

अब पूरी कहानी का पटाक्षेप हो चुका था, सिर्फ असली मुजरिम तरुण गुप्ता जो कि एक क्रिमिनल लॉयर है से उनका गुनाह कबूल करवाना था।

सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा ने अपने सीनियर इंस्पेक्टर से बात करके एक रिटायर्ड जज को बुलाकर तरुण गुप्ता से होने वाली सारी बातचीत का गवाह बनने के लिये राजी कर लिया।

अब प्रभात वर्मा ने तरुण गुप्ता के उस मोबाईल नम्बर पर फोन लगाया जो उसने स्वयं दिया तंग, और कहा कि वकील साहब आप आ जाइये सारे केस की छानबीन तो पूरी हो चुकी है, बस चार्जशीट पेश करने से पहले एक बार आपको सारे दस्तावेज दिखा दूँ, ताकि हम अदालत में अपना केस मजबूती से रख सकें..

हाँ क्यों नही मैं अभी आधे घण्टे में आता हूँ, कहकर तरुण गुप्ता सहर्ष आने को तैयार हो गया।

सब इंस्पेक्टर प्राभात वर्मा खुद “शिनाख्त रूम” में  बैठकर तरुण गुप्ता का इंतजार करने लगे, और रिटायर जज को इस सब का गवाह बनने के लिये दूसरे केबिन में बिठाया जहां से उन्हें तो प्रभात वर्मा के केबिन में हो रही हलचल और बातचीत सुनाई देती लेकिन उनके कमरे में अंधेरा होने की वजह से कोई यह नही समझ सकता था कि दूसरी तरफ़ से भी कोई उन्हें देख रहा है। इसके साथ ही प्रभात वर्मा ने गुप्त रूप से स्पाई कैमरा भी लगाकर रख दिया।

 एडवोकेट तरुण गुप्ता के आते ही सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा से हाथ मिलाकर उन्हें केस सॉल्व करने की शुभकामनाएं दी..

सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा ने मुस्कुराते हुये उन्हें धन्यवाद दिया, और सरकारी गवाह बने अपराधी की रिकॉर्डिंग अपने मोबाईल पर स्पीकर मोड़ पर शुरू करके उसके हस्ताक्षर किये हुये बयान की फ़ोटो कॉपी एडवोकेट तरुण गुप्ता के सामने रखकर कहा यह देखिये असली अपराधी मेरे ही सामने बैठा हुआ है।

अब तक निश्चिंत बैठे हुये एडवोकेट तरुण गुप्ता की उस रिकॉर्डिंग को सुनकर चहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं.. वह खुद को संयत करते हुये बोले, मैं तो क्रिमिनल केस का ही लॉयर हूँ, दो मिनट में अदालत में इस दलील को खारिज़ करवा दूँगा कि आपने इन लड़को पर थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करके मुझे फंसाने के लिये यह बयान जबर्दस्ती लिखवाये हैं।

सब इंस्पेक्टर प्राभात वर्मा ने लेडी कॉन्स्टेबल से कहकर दूसरे कमरे में बैठी मंजू सिंह को लाने को कहा, और एडवोकेट तरुण गुप्ता से पूछा और इन्हें पहचानते हैं क्या आप?

एडवोकेट तरुण गुप्ता ने मंजू सिंह को देखकर घबराहट में कह दिया कि मैं एडवोकेट हूँ, ऐसे बहुत से लोग मेरे पास आते जाते रहते हैं, किस किस को पहचानूंगा?

यह सुनकर मंजू सिंह का पारा चढ़ गया और गुस्से से तरुण गुप्ता की कॉलर पकड़कर उसे झकझोडते हुये बोली, अच्छा नहीं जानतें थे तो मेरे साथ दो साल से प्यार का नाटक क्यों कर रहे थे, मुझे कह रहे थे कि जल्दी ही मैं अपनी बीबी से छुटकारा पाकर तुमसे शादी करूँगा, ये तरीका था तुम्हारा अपनी बीबी से छुटकारा पाने का कि उसे मार ही डाला, मंजू सिंह ने गुस्से से तरुण गुप्ता के साथ अपनी वाटसअप और मैसेंजर पर हुई चैट की सारी डिटेल्स सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा को सौप दी।

यह झूठ बोल रही है लड़की, मेरे पास तो यह मोबाइल नम्बर हैं ही नहीं जिससे वह वाट्सएप चैट दिखा रही है, एडवोकेट तरुण गुप्ता ने हकलाते हुये अपना अंतिम दांव खेला।

Ok, चलो इसकी भी पड़ताल कर लेते हैं, कहकर प्रभात वर्मा ने जब उस नम्बर पर कॉल किया तो वह नम्बर तरुण गुप्ता के ही जेब मे रखे दूसरे मोबाईल पर बजने लगा।

सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा ने तुरंत ही अपने अधिकारी से बात करके वह फोन जब्त करके एडवोकेट तरुण गुप्ता को हिरासत में लेने का आदेश दे दिया।

रिटायर्ड जज की गवाही, एवम सब इंस्पेक्टर प्रभात वर्मा द्वारा एकत्रित समस्त पुख्ता सबूतों के सामने क्रिमिनल केस स्पेशलिस्ट तरुण गुप्ता की सारी दलीलें फीकी साबित हुई, उन्हें अपनी पत्नी की हत्या की साजिश रचने, कॉन्ट्रैक्ट किलिंग, गवाहों को भटकाने, कानून रक्षक होकर भी कानून का दुरुपयोग करने के जुर्म में 7 वर्ष की सश्रम कारावास की सजा हुई।

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कहानी का सारांश यह है कि पुलिस हो या वकील एक छोटा सा “शक” भी आपके मामले की दशा और दिशा तय कर सकता है।

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🙏😊 धन्यवाद

✍️अविनाश स आठल्ये

स्वलिखित, सर्वाधिकार सुरक्षित

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