moral stories in hindi : सॉरी मिस्टर दीपक, आपके पास इस जॉब के लिए पर्याप्त अनुभव न होने के कारण हम आपको नौकरी नहीं दे सकते.… सेठ महेशपाल के सीनियर अकाउंटेंट ने कहा।
दीपक हताशा में अपनी फाइल लेकर पैदल ही घर तक जानें लगा, एक बार फ़िर से वह असफल साबित हुआ…आख़िर क्यों बार-बार असफलता ही उसके हाथ लगती है…
12th में टॉप करने के बाद भी जरा से नम्बर्स से उसका JEE में पर्याप्त रेंक होने से इंजीनियरिंग का सपना अधूरा रह गया।
बी.एस.सी. फाइनल ईयर में टॉप होने के बाद भी शहर के सबसे प्रतिष्ठित उज्ज्वल सिविल सर्विसेज की “फ्री कोचिंग की एकमात्र सीट” को उसके ही प्रिंसिपल पिताजी ने समान अंक लाने वाले दूसरे छात्र रोहन को प्राथमिकता दे दी, जिस वजह से वह सिविल सर्विसेज की अपने स्तर पर पढ़ाई करके कभी चयनित नहीं हो सका, बैंक के प्रोबेशनरी ऑफिसर से लेकर शिक्षा कर्मी तक हर स्तर की शासकीय परीक्षाओं में दीपक असफल ही रहा…
शासकीय नौकरियों में असफल होने पर दीपक ने प्राइवेट नौकरियों में कोशिशें की.. लेकिन ग्रेजुएशन के बाद उसके महत्वपूर्ण 3 वर्ष नौकरी न मिलने से दीपक पर जो “रिजेक्टेड” का ठप्पा लगा था, उस वजह से दीपक प्राइवेट नौकरी भी नही पा सका.. दीपक के मन में आया कि वह यहीं किसी ट्रेन के नीचे कटकर आत्महत्या कर ले, लेकिन तभी उसे अपने बुजुर्ग पिताजी का ध्यान आता है कि, उसके जाने के बाद पिताजी को कौन देखेगा..माँ तो 6 साल पहले ही चल बसी थी।
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थके-मांदे कदमों से दीपक अपने घर पर पहुंचकर बड़े से लोहे के ट्रंक पर अपनी फाइल पटककर, कमरे में रखे निवार के पलंग पर निढ़ाल होकर लेट जाता है। उसकी बॉडी लैंग्वेज को देखकर ही दीनानाथ मिश्रा जी समझ जातें है कि दीपक का आज भी किसी जगह चयन नहीं हुआ है। वह अपने पास रखी सुराही में से एक गिलास पानी लेकर बेटे को पानी पीने को दिया और बोले, बेटा जब भगवान हमारी कड़ी परीक्षा लेता है न तो उसका कोई न कोई अच्छा परिणाम जरूर मिलता है..जरूर भगवान ने तेरे लिये कुछ न कुछ अच्छा सोच रखा होगा, तू निराश मत हो…
दीपक उठकर झल्लाते हुये अपने पिताजी से बोला ..आखिर क्यों न हूँ मैं निराश.. हर जगह असफलता ही तो मुझे मिल रही है.. और आप भी इसके जवाबदार हैं… बी.एस. सी. फाइनल में मैं टॉप किया था, तो वह “उज्ज्वल सिविल सर्विसेज कोचिंग संस्थान” वाले मुझे अपनी मुफ़्त परीक्षा शुल्क की सीट मुझे आराम से दे देते, मग़र आपने प्रिंसिपल होने के बाद भी मेरी जगह उस रोहन को प्राथमिकता दे दी और वह उस कोचिंग की बदौलत पता नहीं कहां पहुँच गया होगा…और मैं दर दर की ठोकरे खा रहा हूँ। आज 27 साल का होकर भी कुछ नहीं कमा पा रहा हूँ आपकी पेंशन की बदौलत घर चल रहा है।
बेटा ये सच है कि बी.एस.सी.फाइनल में तुम्हारे सर्वोच्च अंक थे, लेकिन उस कोचिंग संस्थान को तीनों वर्षो के अंकों के योग के आधार पर सर्वाधिक अंक लाने वाले छात्र के लिए ही उस “मुफ्त की सीट का प्रावधान ” था, और रोहन के तीनों वर्षों के अंकों का योग तुमसे दो अंक ज़्यादा था, बेटा मैं सभी छात्रों को “एक आँख से देखता हूँ”, मेरे लिए सभी छात्र बराबर हैं, मैं तो उसकी सफलता में भी खुश हूँ। मेरी आर्थिक स्थिति सही होती तो मैं तुम्हेंअपने पैसों से कोचिंग दिलवाता।
तो खुश रहिये न उसी रोहन के साथ, मेरे साथ में क्यों दुःखी हो रहें हैं, दीपक ग़ुस्से से चादर ओढ़कर सोने लगा।
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अचानक उस पुरानी सी बस्ती के दीपक के उस खंडहरनुमा मकान के सामने पुलिस की एक जीप आकर रुकती है, जिसमें उस इलाके का थानाध्यक्ष उतरता है, कुछ ही देर में उसके पीछे एक नीली बत्ती की सफेद एम्बेसडर कार आकर रुकती हैं, जिसमे से दो बंदूकधारी हवलदार एवं एक सूट-बूट पहना व्यक्ति उतरता है…
आसपास तमाशबीन लोगों का हुजूम लग जाता है, लोग सोचने लगतें हैं कि जरूर उस बेरोजगार दीपक ने कोई न कोई बड़ा अपराध किया होगा तभी इतनी पुलिस आई है, वरना इस मोहल्ले में तो हवलदार भी आ जाये तो दहशत मच जाती हैं।
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दीनानाथ मिश्रा जी का यही मकान हैं? उस सूट-बूट पहने व्यक्ति ने भीड़ में से किसी एक से पूछा… उस व्यक्ति के हाँ कहते ही, वह सूट बूट पहना व्यक्ति साथी पुलिस कर्मियों को बाहर ही रुकने का इशारा करके अकेला उस घर के अंदर चला गया।
उसने बुजुर्ग दीनानाथ जी को देखते ही उनके पैर पड़कर प्रणाम किया, और पूछा मुझे पहचाना सर आपने? मैं रोहन.. आज आपके अहसानो के कारण ही इस शहर के राजस्व विभाग में SDM हूँ। आज जब हमारी टीम एक भृष्टाचार के मामले की जाँच के लिए सेठ महेशपाल के ऑफिस में उसके अकाउंट्स की जांच कर रही थी, तो मैं दीपक को देखकर ही पहचान गया था, उसके जाने के बाद उनके सीनियर अकाउंटेंट की टेबल पर रखे उसके बायोडेटा में घर का पता देखकर मैं सीधा यहाँ आ गया।
सर, मैं कब से आपको ढूंढ रहा था, आप जैसे लोग देवता से कम नहीं होते। अपने बेटे की जगह आपने मुझे उज्ज्वल कोचिंग की वह फ्री सीट दिलवा दी..वरना उस कोचिंग संस्थान की महंगी सीट अफोर्ड करना मेरे परिवार के बस में नहीं था। उसी कोचिंग की बदौलत मैं पहले ही प्रयास में सिविल परीक्षा के लिये चयनित हो गया था।
ट्रेनिंग वगैरह करने के बाद मेरी पहली पोस्टिंग दूसरे शहर में होने की वजह से मैं आप लोगों के सम्पर्क में नहीं था, इस बीच आप रिटायर हो गये और कहां रहने लगे मुझे पता ही न था।
अब तक दीपक उठकर भौचक्का सा रोहन को देखे जा रहा था, रोहन ने दीपक को गले लगाते हुये कहा भाई तू चिंता मत कर मैं तुझे इससे भी अच्छी नौकरी लगवा दूँगा, सेठ महेशपाल जैसे सैकड़ों उद्योगपति हमारे आगे पीछे जी हजूरी करते फिरते हैं, मुझे तेरा टेलेंट और ईमानदारी बहुत अच्छे से पता है। मैं तुझे ऐसी जगह भेजूंगा जो तुझे तेरी ही काबिलियत के आधार पर जॉब दे देंगे, इसके लिए मैं कोई सिफारिश भी नहीं करूँगा, क्योंकि मैं भी दीनानाथ सर का ही छात्र हूँ, सबको एक आँख से देखता हूँ।
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✍️अविनाश स आठल्ये
स्वलिखित, सर्वाधिकार सुरक्षित
#एक आँख से देखना