एक बार फिर (भाग 6 ) – रचना कंडवाल : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi :

शेखर की हरकतों से परेशान हो कर प्रिया ने उससे बातचीत का फैसला किया अब आगे-

दी के घर दो दिनों तक रह कर वह वापस आ गई। अगले दिन ऑफिस था। ऑफिस जा कर उसे तरोताजा महसूस हो रहा था।

वो शेखर के बारे में बिल्कुल सोचना नहीं चाहती थी। पर वो था कि उसके दिमाग में जोंक की तरह चिपक गया था। उसका ख्याल उसके दिमाग में आता जा रहा था।

सोच रही थी कि अगर वापस आया तो उसे ऐसा डांटेगी कि होश ठिकाने आ जाएंगे।

ज़रूरत पड़ी तो पुलिस भी कम्पलेन करेगी।

जब कुछ दिनों तक कोई रिस्पांस नहीं आया तो वो आश्वस्त हो गई।

सोचा कि लगता है कोई और मिल गई होगी उसके पीछे पड़ा हुआ होगा।

कविता का भी मैसेज आया पर उसने भी उसके बारे में कोई बात नहीं की।

संडे का दिन था सुबह नाश्ता करने के बाद वह लॉन में बैठी हुई थी। इतने में एक गाड़ी आ कर रूकी तो वो खड़ी हो गई देखा

उसमें से कविता उतरी गेट खोल कर अंदर आई इतरा कर चिल्लाते हुए उसके गले लग गई।

“सरप्राइज “

इधर आ रही थी तो सोचा कि तुझसे मिल लूं।

वो भी उसे देख कर खुश हो गई।

चल बैठ

इतने में गेट पर आवाज हुई उसने पीछे मुडकर देखा

असल सरप्राइज तो बत्तीसी दिखाते हुए उसके सामने खड़ा था।

शेखर आ रहा था तो इसी के साथ चली आई

तेरे जीजा जी कुछ जरूरी काम में बिजी थे।

काम से नहीं जानबूझ कर आया है उसने मन में सोचा।

कल ही पंद्रह दिन बाद अमेरिका से लौटा है बिजनेस के सिलसिले में बाहर गया हुआ था।

वो चुप रही।

भाभी लगता है आपकी दोस्त आपको बाहर से ही वापस भेज देंगी।

पता नहीं इसे मेरे घर के अंदर इतना इंटरेस्ट क्यों है???

प्रिया सोचते हुए बोली चलो अंदर चलते हैं।

कविता के आने से जो खुशी मिली थी शेखर के आने से वो गायब हो गई थी।

अंदर आ कर कविता घर का जायजा लेने लगी wow तेरी पसंद तो हमेशा से ही अच्छी रही है। सब कुछ कितने अच्छे से सैट किया है।

मुझे ऐसा लगता है कि इन्हें अच्छी चीजों की परख कम है।

“शेखर” कविता ने उसे डांटा

वो पूरे अधिकार से घर में घूमने लगा

घर पूरी तरह से सुसज्जित था।

एक एक चीज को प्रिया ने सोच समझ कर खरीदा था।

प्रिया ने कविता को पूछा क्या खाओगी???

वही जो मुझे हमेशा से पसंद हैं तेरे हाथों के पकौड़े चल आजा दोनों मिलकर बनाएंगे।

भाभी यहां आकर भी आप बनाएंगी???

आपको चैक करना चाहिए कि इनके हाथों का स्वाद अब भी बरकरार है या नहीं।

चल तू बैठ मैं बनाती हूं।

वो किचन में आकर चाय का पानी चढ़ा कर पकौड़ों की तैयारी करने लगी।

यही कोई बीस मिनट बाद आलू प्याज के पकौड़े हरी चटनी जो उसने मालती से बनवा कर रखी थी और चाय लेकर आ गई।

पकौड़े खा कर कविता चहक उठी क्यों शेखर मैं कह रही थी न प्रिया खाना बहुत अच्छा बनाती है

वो कुछ बोलता इससे पहले प्रिया ने व्यंग कसा

हम साधारण लोगों की पसंद और अमीर लोगों की पसंद अलग होती है।

लगता है अमीर लोगों से काफी खुन्नस है आपको

वैसे आपको प्रोटीन शेक, अलग-अलग तरह के सूप, ग्रिल्ड चिकन, ग्रिल्ड वेजिटेबल, ग्रिल्ड फिश,सूशी,थाई फूड और डायट फूड भी बनाने आने चाहिए।

क्या पता कब बनाना पड़ जाए पसंद बदल जाती है कभी कभी।

और आपसे ऐसा किसने कहा अमीर लोगों की पसंद अलग होती है।

मुझे तो…… ऐसा कह कर वो मुस्कराया और उसे सिर से पैर तक देखा।

प्रिया असहज हो गई वो तो शुक्र था कि कविता पकौड़ों में बिजी थी।

प्रिया सोच रही थी कि ये लोग बस यहां से जाएं इसने तो मेरा संडे भी खराब कर दिया।

मुझे कल इधर काम है आऊंगा तो एक दो दिन इधर रूकूंगा।

कुछ लोगों से मिलना है उसने प्रिया की तरफ देखते हुए कहा।

हां भ‌ई रूकना ऐश हैं तुम्हारे।

विला है नौकर चाकर हैं और क्या चाहिए कविता मुस्कराई।

तुम क्या सोच रही हो??? कविता ने प्रिया को झकझोर दिया।

कुछ नहीं उसने उदासीन भाव से उत्तर दिया।

अरे भाभी! जैसे मुझे कुछ लोगों से मिलना है

वैसे ही आपकी सहेली भी कुछ लोगों से नहीं मिलना चाहती होंगी।

ऐसा ही है न उसने प्रिया की आंखों में देख कर कहा।

चलो शेखर देर हो रही है। बच्चे परेशान हो रहे होंगे???

कविता ने प्रिया को गले लगाया दोनों बाहर चल दिए।

अच्छा जल्द ही मिलेंगे प्रिया जी! शेखर ड्राइविंग

सीट पर बैठ कर मुस्कराया।

ये सुन कर प्रिया का खून खौल उठा।

ये बंदा हमेशा के लिए कहीं क्यों नहीं चला जाता??

यहां रूक रहा है तो मतलब टैंशन पक्की है।

शेखर की हंसी याद करके वो बेहद नाराज़ थी।

सोचने लगी दूसरों का मजाक उड़ाने में जिसे मजा आता हो वो इंसान दिल का कितना बुरा होगा।

इसके माता-पिता ने इकलौती औलाद होने के कारण इसे बहुत सिर पर बैठा रखा है इसलिए ही इतना बदतमीज है।

औरतों की बिल्कुल रेस्पेक्ट नहीं है इसके दिल में और वो‌ कविता इसे लेकर मेरे घर में आ गई।

कितना खुश हो कर “खी खी” कर रही थी।

और कोई नहीं मिला साथ लाने को, ड्राइवर को साथ लेकर ही आ जाती।

पर उस बेचारी को भी क्या पता कि ये कैसा है??

जब से मेरी जिंदगी में आया है मेरी जिंदगी जहन्नुम बना कर रख दी है।

काश! जिंदगी में भी एक डिलीट आप्शन होता तो मैं उस वक्त को डिलीट कर देती जब ये मुझे पहली बार मिला था।

अब आगे क्या हुआ????

क्रमशः

4 thoughts on “एक बार फिर (भाग 6 ) – रचना कंडवाल : Moral stories in hindi”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!