ऐसी आजादी किस काम का – वीणा सिंह  : Moral stories in hindi

moral stories in hindi : निशा आंटी के आंखों से अनवरत आंसू गिर रहे थे.. जिसमें दुःख पश्चाताप और शर्मिंदगी सब मिले जुले थे..मैं भी अपनी बचपन की सहेली नेहा की मौत से बहुत दुःखी थी…एक सप्ताह के लिए आई थी घर थोड़ा रिलैक्स करने पर…सुधीर अंकल दिल का दौरा पड़ने के कारण आईसीयू में बेहद नाजुक स्थिति में थे…
मम्मी के साथ मैं भी उनसे मिलने चली गई.. ओह कितने बेबस और लाचार हो जाते हैं मां बाप अपने बच्चों के कारण.. मम्मी और मैं एक घंटे निशा आंटी के साथ रहकर वापस आ गए.. क्या कह के सांत्वना देते.. इकलौती संतान को खो चुके थे..
मेरे मन में उथल पुथल मची थी.. चाय का कप लेकर छत पर आ गई.. सारा दृश्य चलचित्र की तरह आंखों के सामने घूमने लगे..
निशा आंटी बहुत साधारण परिवार की लड़की थी.. उनके यहां लड़का लड़की में बहुत भेदवाव होता था.. पढ़ने में मेघावी और देखने में बेहद खूबसूरत होने के कारण सुधीर अंकल की मां ने किसी शादी में उनको देखकर पसंद कर लिया, बिना दहेज की शादी हो गई..
सुधीर अंकल टिस्को में इंजीनियर थे और आंटी की नौकरी भी बैंक में लग गई.. मेरी मम्मी भी उसी बैंक में थी.
हम पड़ोसी भी थे.. निशा आंटी की बेटी नेहा और मैं काव्या हम उम्र थे.. एक हीं स्कूल में पढ़ते थे.. नेहा के जन्म के समय निशा आंटी का गर्भाशय निकालना पड़ा था इन्फेक्शन के कारण. मैं मेरे बड़े भईया कुणाल और नेहा एक हीं स्कूल में पढ़ते थे.. भईया मुझसे चार साल बड़े थे..
जैसे जैसे मैं बड़ी हो रही थी मम्मी मुझे घर के हल्के फुल्के काम मुझसे करवाने लगी.. मसलन स्कूल ड्रेस आयरन कर लो, अपने जूते पॉलिश कर लो.. पापा ऑफिस से आए हैं चाय बिस्किट और पानी दे दो.. सो कर उठो तो अपना बिस्तर ठीक करो.. रविवार को छुट्टी रहती तो भईया के साथ मिलकर मम्मी सफाई करती पूरे घर की.. मुझे फर्नीचर की डस्टिंग का काम मिलता.. कभी कभी बहुत गुस्सा आता..
और इसके विपरित नेहा एक काम नहीं करती.. निशा आंटी की देवरानी और निशा आंटी नेहा का बिस्तर लगाने से लेकर स्कूल बैग सेट करने तक सारा काम करती.. कोई काम अगर नही हुआ तो अपनी मम्मी और आंटी पर बहुत चिल्लाती.. एक ग्लास पानी भी खुद से लेकर नही पीती..मम्मी कभी कभी मुझसे चाय के कप धुलवाती..

कामवाली बहुत बेदर्दी से धोती है..टूटा तो सेट खराब..बेमन से धो देती..उम्र हीं ऐसी थी..पर मम्मी बहुत पेशेंस से मुझे समझाती , कभी प्यार से कभी डांट कर..मुझे निशा आंटी बहुत अच्छी लगती, मम्मी पर बहुत गुस्सा आता काश ये हमारी मां होती.. नेहा बाथरूम में अपने अंडर गारमेंट्स खोल के छोड़ देती निशा आंटी या उनकी देवरानी धो कर डालती.. नेहा के सोलहवें जन्मदिन कि तैयारी बहुत जोर शोर से चल रही थी..
जन्मदिन के दिन नेहा बहुत छोटा ड्रेस पहना था, उसका आधा शरीर दिख रहा है.. सारे फ्रेंड्स उसकी तारीफ कर रहे थे.. मेरी मम्मी को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था.. निशा आंटी सबसे कह रही थी मैं बेटा बेटी दोनों को एक आंख से देखती हूं.. नेहा को वो सारी आजादी मिली है जो एक लडके को मिलती है.. मैं मन मसोस कर रह गई.. अगले महीने मेरा भी सोलहवां जन्मदिन था.. मुझे भी ड्रेस लेना था.. मम्मी मेरे साथ मार्केट जाकर घुटने से थोड़े नीचे तक का बेहद खूबसूरत और महंगा ड्रेस खरीदा पर मेरा मुंह फूला हुआ था शॉर्ट ड्रेस को लेकर..
मैं जब भी नेहा के पास जाती निशा आंटी से मुलाकात होती तो कहती काव्या की मम्मी बेटा और बेटी को #एक आंख से नहीं देखती #पर मैं नेहा के साथ बिल्कुल भी ऐसा नहीं करती.. मेरे मन में ये बात घर करती जा रही थी.. नेहा अपने दोस्तों के साथ मूवी देखने जाती.. घूमने जाती, देर से लौटती पर मजाल है निशा आंटी कुछ बोलती.. बैंक जाते समय मम्मी का मजाक उड़ाती काव्या और कुणाल को आप# एक आंख से नहीं देखती..#इतना पढ़ लिख कर भी आपकी ये मानसिकता मेरे समझ से परे है.. मम्मी मुस्कुरा कर बात टाल देती..
वक्त गुजरता रहा.. मैं और नेहा प्लस टू कर लिए.. मैं ग्रेजुएशन करने जेएनयू चली गई.. मम्मी वहां एक सप्ताह रह कर अच्छे से पीजी देखकर रखा.. अपनी एक सहेली को मेरा नंबर दिया और कहा बीच बीच में काव्या से मिलती रहना.. कुणाल भईया भी दिल्ली में यूपीएससी की तैयारी कर रहे थे. हर तरह से संतुष्ट हो कर मम्मी वापस आई..
पीजी में खाना अच्छा नही मिलने के कारण मेरी तबियत खराब रहने लगी.. मम्मी एक फ्लैट में मुझे और कुणाल भईया को शिफ्ट कर दिया.. खाना बनाने कुक आती थी.. अचानक कुछ दिन बाद कुक दस दिन की छुट्टी लेकर चली गई.. मम्मी का बैंक में मार्च क्लोजिंग के कारण छुट्टी मिलना मुश्किल था.. उस वक्त मम्मी के सिखाए छोटे मोटे काम बहुत आसान कर दिया हमारी दस दिन की सारी मुश्किलें आसान हो गई.. मम्मी मुझे दो रोटी बनाने को देती थी जब मैं दसवीं में थी.. दाल चावल सब सिख गई थी बनाना.. मैं मम्मी को दिल से धन्यवाद दे रही थी..
निशा आंटी नेहा का एडमिशन डोनेशन देकर मेडिकल में करवा दी थी.. क्योंकि रिजल्ट अच्छे नहीं हुए थे. प्रतियोगी परीक्षा में पास होना मुश्किल था.. नेहा बिंदास टाईप की लड़की थी.. और निशा आंटी का पूरा योगदान था उसको बदतमीज आलसी और घमंडी बनाने में.. निशा आंटी अपने बचपन की कमी और बेटे की अधूरी इच्छा को नेहा की परवरिश में पूर्ण कर रही थी..
उड़ते उड़ते खबर मिलती नेहा शराब और गांजा भी पीने लगी है.. पब जाती है..
ऐसी हीं एक रात नशे में चूर नेहा को पब से बाहर आते समय कुछ लड़कों ने नेहा के साथ बेरहमी से रेप किया और एक खाई में डाल कर चलते बने.. अगले दिन अधनंगी हालत में नेहा की लाश पुलिस को मिली.…
निशा आंटी का ये नजरिया बेटा बेटी दोनों को एक आंख से देखना चाहिए, मेरे सामने धराशाई हो चुका था.. मम्मी समझाती थी बेटा बेटी में कुछ अंतर भगवान हीं बना कर भेजे हैं.. एक आंख से देखना ये हुआ की दोनो की पढ़ाई में खाने पीने पहनने प्यार दुलार में अंतर नही होना चाहिए.. पर जिस समाज में परिवेश में हम रहते हैं वहां कुछ पाबंदियां भी बेहद जरूरी है.. ये मुझे आज समझ में आ रहा है.. शुक्रिया मम्मी जो आपने बेटा बेटी को #एक आंख से नहीं देखा #

#स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #
वीणा सिंह

#एक आँख से देखना

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