संस्कार… – मंजू सक्सेना  : Moral stories in hindi

सुहाग सेज पर लाज से सिकुड़ी सिमटी बैठी दुल्हन का घूँघट उठाते ही क्षितिज का दिल धक् से रह गया,’अरे ये तो वही है…विजय की प्रेमिका… ये कैसी ग़लती हो गई उससे’?

उसकी दीदी ने सौम्या की सूरत और सीरत की इतनी प्रशंसा की थी कि उसने कह दिया ,”अगर आपको पसंद है तो मुझे उसे देखने की ज़रूरत नहीं है”।शादी भी महीने भर के भीतर हो गई सो टेलीफोन पर बात करने का भी सिलसिला नहीं चल पाया।वैसे भी लड़कियों के मामले मे क्षितिज बहुत शरमीला था।

सौम्या उसके बचपन के दोस्त विजय के साथ मेरठ से एमबीए कर रही थी।वहीं उनकी दोस्ती हुई।पर सौम्या ठाकुर थी और विजय बनिया।इस कारण सौम्या के घर वालों ने उनके प्यार की भनक लगते ही उसकी शादी की बात शुरु कर दी और सौम्या का कालेज छुड़ा कर उसे वापस देहरादून बुला लिया।

विजय और क्षितिज बचपन से ही एक साथ पढ़े।बारहवीं के बाद क्षितिज इन्जीनियरिंग करने खड़गपुर चला गया और विजय ने बरेली मे ही बीएससी ज्वाइन कर लिया।पर संयोग से जब दोनों मित्रों की नौकरी नोयडा मे लगी तो दोनों फिर एक दूसरे के करीब आ गये।तभी एक दिन विजय ने सौम्या का ज़िक्र किया था ।उसकी फोटो भी दिखाई थी।और ये भी बताया था कि सौम्या के घरवाले इस संबंध के पूरी तरह ख़िलाफ़ हैं।और सौम्या ने भी मजबूरन उससे मिलना जुलना बंद कर दिया है।

फिर एक दिन दूर से ही उसने क्षितिज को सौम्या को दिखाया भी था जो किसी कार्यवश अपने पापा के साथ नोएडा आई थी।

फिर अचानक एक दिन विजय ने सूचना दी कि उसने बैंगलोर की कम्पनी ज्वाइन कर ली है ताकि दूर जा कर नये माहौल मे वो सौम्या को भूल सके।

इधर उसकी दीदी को फ़ैजाबाद मे अपनी सहेली की मौसेरी बहन  बहुत पसंद आ गई जो छुट्टियों मे अपनी बहिन के यहाँ आई थी और आननफानन मे उसका भी चट् मंगनी पट् ब्याह हो गया।विजय ने छुट्टी न मिलने की असमर्थता जताई थी।अपने खूबसूरत जीवनसाथी की रंगीन कल्पना मे विजय की प्रिया सौम्या का नाम क्षितिज के ज़हन से ही निकल गया था।फिर वैसे भी सौम्या का घर का नाम गुड्डी था अतः दीदी भी यही नाम लेती थीं।पर …आज …अचानक वो नाम इस मोड़ पर आकर यूँ याद आएगा ये तो उसने कल्पना भी नहीं की थी।

“आप….सौम्या… मेरा मतलब है….”,कुछ बोलने से पहले ही वो हकला गया….सौम्या ने उसी समय अपनी कंपकंपाती पलकें ऊपर उठाईं तो उसे लगा जैसे क़ायनात एक पल को ठहर गई हो…….सौम्या वाकई बहुत खूबसूरत थी।पर इससे पहले कि उसकी आँखें उन झील सी आँखों मे डूबतीं वह संभल गया,

“मेरा मतलब है…ये शादी.. आपकी मर्ज़ी से हुई है”?

“जी…..एक पल नाज़ुक होंठ थरथराए पर शीघ्र ही संयत हो गये,

“हाँ… पर आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं”?

“आप विजय गुप्ता को जानती हैं?”इस बार उसने सीधा प्रश्न किया तो सौम्या के चेहरे पर एक साथ कितने ही रंग आकर लौट गए।

“हाँ… जानती हूँ”,उसका स्वर धीमा किन्तु संयत था।

“आपने उससे शादी क्यों नहीं की”?

“क्योंकि वो…”,

“आपकी जाति का नहीं था और आपके घरवाले इस संबंध के खिलाफ़ थे…इस कारण मजबूरी….”,क्षितिज का स्वर ज़रा ऊँचा हुआ तो सौम्या की घबराई दृष्टि दरवाज़े की ओर उठ गई….’कहीं कोई बाहर खड़ा न हो’,और क्षितिज को भी अपनी ग़लती का भान हो गया।

“जी..आपने ठीक समझा… पर मजबूरी मे नहीं…”,सौम्या की बात पूरी होने से पहले ही क्षितिज का धैर्य जवाब दे गया,

“विजय मेरे बचपन का दोस्त है… उसने आपके बारे मे बताया था और एक बार दूर से दिखाया भी था.. शादी से पहले अगर मै एक बार आपको देख लेता तो इतनी बड़ी भूल नहीं होती,”क्षितिज के स्वर मे पाश्चाताप छलक उठा तो सौम्या परेशान हो उठी।

“शायद ईश्वर की यही मरज़ी थी”,

“नहीं…”,क्षितिज हल्के से चीख उठा,”मैं दोस्त को क्या मुँह दिखाऊँगा….मैं विजय के साथ दगाबाजी नहीं कर सकता”।

“पर अब हम क्या कर सकते हैं”,सौम्या धीरे से बोली तो अचानक क्षितिज ने उसकी आँखों मे झाँका,”सच बताना.. आप विजय को अभी भी प्यार करती हैं?उससे शादी करना चाहती हैं”?

सुन कर जैसे औंधे मुँह गिरी सौम्या,

“ये क्या कह रहे हैं आप!!…मेरे माता पिता ने मेरी शादी आपसे की है…ये सब सोचना और बोलना भी पाप है”।

“देखो सौम्या… ये पुराना ज़माना नहीं है कि लड़की को जिस खूँटे मे बाँध दिया ज़िंदगी भर वो उसी से बँधी रही चाहें उसे पसंद हो या न हो… अब समय बदल गया है…तुम पढ़ीलिखी हो…मैं तुम्हें तलाक़ देकर विजय से तुम्हारी शादी करवा दूँगा”,क्षितिज ने जैसे निर्णय ले लिया पर सौम्या आशा के विपरीत सख़्त हो उठी,

“कभी नहीं….मैं अपने माँ पापा को बहुत प्यार करती हूँ और ये भी जानती हूँ कि वो हमेशा मेरा भला ही सोचेंगे।इसलिये मैं उन्हें ज़रा भी दुख देने की बात सोच भी नहीं सकती”।अचानक क्षितिज को कभी विजय से हुई बातचीत याद आ गई।विजय की माँ भी इस संबंध से खुश नहीं थीं।पर उसने कहा था,’सौम्या तैयार हो तो हम कोर्ट मैरिज कर सकते हैं… और एक बार शादी हो जाएगी तो मम्मी भी उसे बहू मान ही लेंगी ।फिर मिंया बीबी राज़ी तो क्या करेगा काज़ी”,कह कर वो हँस दिया था।

कितना अंतर था दोनों की विचार धारा मे…या शायद संस्कारों मे….जहाँ सौम्या अपने माँबाप को दुख पँहुचाने की बात सोच भी नहीं सकती वहाँ विजय सिर्फ अपनी ख़शी देख रहा था।वह सौम्या की साफ़गोई से भी प्रभावित हुआ था।

“हम कल इस बारे मे बात करेंगे… बहुत थक गया हूँ… तुम भी सो जाओ”,कह कर क्षितिज वहीं पड़े दीवान पर पसर गया और सौम्या चुपचाप पलंग पर लेट गई जहाँ उसके सपनों की तरह फूल भी मुरझाने लगे थे।

दूसरे दिन घर मे सब लोग उन दोनों से चुहलबाज़ी करते रहे पर किसी को असलियत की भनक भी नहीं थी।रात मे कमरे मे पँहुचते ही क्षितिज ने दीवान पर ही तकिया रख लिया, “सौम्या

मुझे कुछ समय दो…तब तक बेहतर है हम अलग रहें”।

घर से मेहमान विदा होते ही उसने सबसे पहले विजय को फोन किया।

“अरे..तुझे अपनी नयी नवेली से इतनी फुरसत मिल गई कि तू अभी से मुझे फोन कर रहा है”,विजय ने हँसते हुए पूछा,”हाँ… और ये तो बता भाभी कैसी हैं… तेरे सपनों की चौखट मे तो फिट बैठी न? डेटिंग के इस युग मे तूने बिना देखे शादी कर ली”।

“वह बहुत खूबसूरत है..मेरी कल्पना से भी परे”,क्षितिज की आवाज़ मे संजीदगी थी जिसे महसूस कर विजय बेचैन हो उठा,

“तो फिर क्या हुआ… क्या उसका कहीं.. इश्क विश्क…”

“जानते हो विजय जब मैंने उसका घूँघट हटाया तो वो चेहरा कौन सा था”?

“पहेली मत बुझा… साफ़ बता..”,विजय थोड़ा उकता गया।

“सौम्या का….”,क्षितिज का स्वर बर्फ़ सा ठंडा था पर विजय का पाँव जैसे अंगारे पर पड़ गया,

“ये क्या मज़ाक है…”,

“मज़ाक नहीं… यही सच्चाई है…और मैंने तुमसे यही पूछने के लिए फोन किया है कि आगे मै क्या करूँ… मैंने उसकी उँगली तक नहीं छुई है”,

“मतलब…”?

“मतलब… उसे मैंने तेरी अमानत समझ के रखा है”।

“क्षितिज….”,इतना ही कह पाया विजय।इस अप्रत्याशित स्थिति की तो उसने भी कल्पना नहीं की थी।

“विजय… तू कहे तो मै उसे तलाक देकर उसकी शादी तुझसे करवा देता हूँ”।

“पर उसके घरवाले…”?विजय असमंजस मे था

“उन्हें मै मना लूँगा… बस तेरी हाँ चाहिए”

“मैं तो पहले ही मंदिर मे भी शादी को तैयार था… पर तू पहले सौम्या से पूछ ले।”

“ठीक है”,कह कर क्षितिज ने फोन काट दिया।

रात मे बिना किसी लाग लपेट के उसने सौम्या से सीधा प्रश्न किया,

“तुम विजय से शादी करोगी?”

“नहीं….”,आशा के विपरीत उसने भी सीधा उत्तर दिया तो क्षितिज ने उसके दोनों कंधे पकड़ उसकी आँखों मे झांकते हुए उससे सच उगलवाना चाहा,”क्या तुम उसे प्यार नहीं करतीं”?

“देखिए… हम अच्छे दोस्त थे एक दूसरे को पसंद भी करते थे पर ये दोस्ती प्यार मे परवान चढ़ती इससे पहले ही मुझे घर वालों ने कालेज से वापस बुला लिया।और मेरी शादी आपसे तय हो गई”,सौम्या की बात मे सच्चाई झलक रही थी।

“पर तुम क्या चाहती थीं”?क्षितिज अभी भी दुविधा मे था।

“मेरे माँबाप का आदेश मेरे लिये सर्वोपरि है।मैं उनकी बेटी हूँ और अगर मैं उनको धोखा दे सकती हूँ तो फिर मै किसी को भी धोखा दे सकती हूँ”,सौम्या का स्वर थोड़ा सख़्त हो गया।पर क्षितिज अभी भी संतुष्ट नहीं था।

“पर..कहीं तुमने सिर्फ़ उनका मन रखने के लिए तो मेरे साथ सात फेरे नहीं लिए”?

“नहीं… क्योंकि मुझे मालूम है कि मैं एक बार भावनाओं मे बह कर गलत कर सकती हूँ पर मेरे माँ बाउजी हमेशा मेरे लिए अच्छा करेंगें।मेरा विजय से दोस्ती के अलावा कोई संबंध नहीं रहा।पर फिर भी अगर आपको शक हो तो आप मुझे बेशक सजा दे सकते हैं पर भगवान के वास्ते तलाक का नाम मत लीजिएगा”,सौम्या की आँखों मे आँसू भर आए तो क्षितिज का मन पसीज गया।

“नहीं ऐसी कोई बात नहीं है तुम आराम से सो जाओ”।

रात भर वो ऊहापोह मे रहा।पर सुबह उठते ही उसने निर्णय ले लिया था।सौम्या की आँखों मे उसे सच्चाई नज़र आई थी।

उसने पलंग पर नज़र डाली।पलंग खाली था..पता नहीं वो कब उठ कर बाहर चली गई थी।

नहा धो कर जब वो चाय ले कर आई तो क्षितिज उसे देखता रह गया’,पीली साड़ी मे जैसे साक्षात बसंत उतर आया था।’

“चाय पी कर मै तैयार होता हूँ..मंदिर चलना है”,क्षितिज ने चाय पकड़ते हुए कहा तो सौम्या की प्रश्न भरी दृष्टि उसकी ओर उठ गयी।

“ईश्वर का आशीर्वाद ले कर ही तो हमें अपना दाम्पत्य जीवन शुरू करना है”,क्षितिज ने मुस्कुरा कर कहा तो सौम्या का चेहरा खुशी और लाज के सिंदूर से नहा उठा।उसके संस्कारों की कीमत उसे मिल गई थी।

मंजू सक्सेना

लखनऊ

6 thoughts on “संस्कार… – मंजू सक्सेना  : Moral stories in hindi”

  1. बहुत ही अच्छी और शिक्षाप्रद कहानी है. आजकल सोशल मीडिया पर इस प्रकार की कहानी बहुत ही कम देखने को मिलती है…

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  2. Aaj ke Yug me koun sanskaron ki baat karta kya Tv kya youtube kya Facebook kya Instagram aur serials aur filmen sab ke sab striyon ko charitrahinta banane aur paise kamane me lage hai aapne aise samay Kalam pakdi hai aur bhartiya sanskriti mahilao ke asali charitra par kahani likhi hai aise hi sabhi ko karna chahiye aapko bahut Bahut dhanyawad aur Hardik shubhkamnayen apni Kalam ko hamesha pawitra banaye rakhen 🙏🙏🙏

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