संस्कार – सुधा शर्मा 

निशा रास्ते भर सोचते हुये आ रही थी सुशीला जी ‘ पता नहीं इस लड़की ने क्या गजब किया जो माला जी ने कह दिया कि निशा की

बहुत शिकायतें इकट्ठी हो गई है जब भी समय और सुविधा हो तो आने का प्रयास कीजियेगा।

   शहर में ही शादी की थी उन्होंने बेटी की ।वैसे तो सब ठीक चल रहा था जब मिलने आई तब तो निशा ने कुछ नहीं कहा था।’

       इसी सोच विचार मे घर आगया।दरवाजा खोला निशा ने ,’ अरे मम्मी तुम  अचानक कैसे? ‘ गुस्सा तो बहुत आया ‘न जाने क्या क्या परेशान किया है सब को , मेरे सारे संस्कार मिट्टी में मिला दिये। ऊपर से पूछ रही है तुम कैसे ।’ बिना उसकी बात का जवाब दिये गुस्से मे उसको घूरते हुए वे सीधे अन्दर माला जी के कमरे की ओर चली गई।

उन्हें देखते ही वे एकदम उठ खड़ी हुई, उन्हें गले से लगा लिया,’ बहुत दिनों मे मिल रहे है इस बार ।कितना याद कर रहे थे आपको ।निधि भी आईं हुई है एक हफ्ते को। ‘ उनकी बेटी निधि  की शादी दिल्ली मे हुई थी

  सुशीला जी अनमनी सी बैठी थी । तभी निधि , निशा चाय नाश्ता लेकर आ गई । सब चाय पीने लगे ।तभी सुशीला जी थोडे धीरे से बोली ‘आप कुछ कह रही थी ?’  माला जी ने प्रश्नवाचक निगाहो से देखा ।वो बोली,’वो कुछ शिकायत,,’

,’    अच्छा वो,’अपनी मुस्कान को छुपाते हुए स्वर को गम्भीर बनाते हुये बोली,’ बहुत सारी शिकायते है आपकी  बेटी से।’ कहकर रुकी।सुशीला जी का दिल बैठने लगा ।

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            ‘आप मुझे बताइये मै इसको समझाऊगी ।’

,’मुझे नही लगता वह मानेगी किसी की बात । कितना समझाया गया है पर इस पर कोई  असर नही ।’

         सुशीला जी ने आग्नेय नेत्रों से निशा की तरफ देखा’ कैसे बेशर्म की तरह मुस्कुरा रही है  , बिलकुल असर नही?”

          इससे पहले कि वो कुछ बोलें माला जी कहने लगी,’ फिर भी मै आपको बताती हूँ, चाहे अपने घर ले जाकर कोशिश करके देख लीजियेगा , अब तो सुशीला का दिल डूबने लगा था ।,’सबसे पहली और सबसे जरूरी बात कि अपने खाने का बिलकुल ध्यान नही रखती ।देख रही है इसको , पहले से कितनी कमजोर हो गई है ? कभी नाश्ता नही करेगी ।कितना भी कहो ।एक तो वैसे ही आये दिन  व्रत, चलो उसको तो मै मना करती , पर ये किसने कहा कि व्रत मे कुछ लो नहीं, मै कहते कहते चली जाऊँगी अंदर सोने , दो बज जायेगे तीन बज जायेंगे  तब कुछ  वो भी थोड़ा सा ।खाना आप देखेगी एक छोटा सा फुलका , , न दूध न और कुछ । ज्यादा कहोगे शुरु कर देगी , दो दिन बाद फिर  वही ।

सुबह टहलना, योगा , काम  , इन सबके साथ खाना भी तो जरूरी है न? आपको पता है  जब  लाक डाउन की वजह से सुबह का टहलना बंद हो गया था तो पूरी  तीन हजार स्कीपिग करती थी कितना थक जाती थी!कितना मन कचोटते था अन्दर से।

कई बार बेटे ने भी मना किया  पर सुनेगी क्या? इस वजह से पाँच  छः किलो वजन कम  हो गया ।खैर अब तो सुबह का टहलना शुरू हो गया ।लेकिन जो वजन कम हो गया वो बढ़ेगा कैसे?,

घर का पूरा काम ! हा काम से याद आया, मुझे काम मे मदद नही हो कराने देती ,  बड़ी मुश्किल से छीन झपट कर थोड़ा बहुत कर पाती हूँ ।

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पूरे घर का ध्यान रखती है, हर काम

परफेक्शन से करती है, बस अपना खाना,,,,?

                    फिर दूसरी बात मुझे खिलाने में नम्बर वन ।आप बताइये ये कहाँ का इन्साफ है ।अपने आप तो खाने मे सबसे पीछे और मम्मी  ! मम्मी के खाने पीने का कोटा पूरा  उस दिन बहू बेटी की कुछ चर्चा थी तो मैने तो कह दिया  , अच्छी लगे  या बुरी, बहू बेटी समान कैसे हो सकती है ? बेटी ऐसे खिलायेगी क्या?  इतना ध्यान रखेगी क्या?  मेरे व्रत होते है नवरात्रि या एकादशी , समय से मेरे लिये फलाहार तैयार ।’

माला जी रुकी तो हँसते  हुये निधि बोली,’ आन्टी जी मेरी भी एक शिकायत सुन लीजिए पर भाभी से नही मम्मी से ।आपको पता है मै इतने कम दिन को आती हूँ  पर मुझे क्या लगता है ये दोनो माँ बेटी

है और मै बहू।”

अब तो वह हँसी का फव्वारा छूटा कि सारा वातावरण खुशनुमा  हो गया।माला बोली

           ‘   मुझे याद है कि मेरी एक अजीज ने मुझ से कहा था ,’ आप इतनी तारीफ मत किया करो किसी की नजर न लग जाये।

वैसे मैने आपको शिकायत करने को नहीं बल्कि व्यक्ति गत रूप से धन्यवाद देने को बुलाया था क्योकि ये सब आपके दिये संस्कारों का ही तो प्रभाव है।”

    और दोनों की आंखे भीग गई माला की कृतज्ञता से , सुशीला की खुशी से।

मौलिक स्वरचित

सुधा शर्मा 

   ‘पुनश्च

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