समर्पण जब हो नजरअंदाज – रोनिता कुंडू : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: मां..! अब मैं यहां नहीं रह सकता… इस घर में मेरा और अलका का दम घुटता है.. अतुल ने चीखते हुए कहा..

पर यह घर तेरा भी तो है… तू क्यों कहीं जाएगा..? जिसने यहां नर्क मचा रखा है… वहीं जाए… सरिता जी ने अक्षित की ओर देखकर कहा…

हां मां… हम ही यहां से चले जाएंगे और वैसे भी यहां अब मेरी जरूरत खत्म हो गई है… और जहां जरूरत खत्म हो जाए, वहां इज्जत भी खत्म हो जाती है.. अक्षित में कहा…

अब तक कहानी को पढ़कर, आप लोगों को इतना तो समझ आ ही गया होगा कि, दो भाई अतुल और अक्षित में लड़ाई चल रही थी.. जिसमें उनकी मां सरिता जी अपने छोटे बेटे अतुल की तरफ से बोल रही थी… आखिर किस बात पर हो रही थी यह लड़ाई.? क्यों थे सभी अक्षित के खिलाफ..? यह जानने के लिए पढ़ते हैं कहानी को शुरुआत से…

घर में मातम का माहौल था.. जहां एक तरफ सरिता जी का रो रो कर बुरा हाल था… वही किशोरावस्था में अक्षित भाग भाग कर अपने रिश्तेदारों के साथ मिलकर अपने पिता के अंतिम यात्रा की तैयारी कर रहा था… और अतुल तो इतना छोटा था, की शायद ही पापा के जाने का दर्द महसूस कर पा रहा हो…

अक्षित के पिता का एक किराने का दुकान था.. जिससे वह अपने परिवार को चलाते थे… अब उनके जाने के बाद सरिता जी दुकान संभालेगी, सब यही सोच रहे थे, क्योंकि अक्षित और अतुल काफी छोटे थे दुकानदारी के लिए… कुछ दिनों तक ऐसा हुआ भी… सरिता जी  दुकान पर बैठती और अक्षित स्कूल से आकर अपनी मां की दुकान पर मदद करता…

पर फिर सरिता जी काफी बीमार पड़ गई और उनका ऑपरेशन करवाना पड़ा… दुकान को अब कर्मचारी चलाने लगे, पर हर कोई बस अपना हाथ साफ करने में लगा था… तो फिर 1 दिन सरिता जी अपने भैया से यह सारी बातें कह रही थी, कि तभी उनके भैया ने दुकान अक्षित को संभालने को कहा…

सरिता जी:  पर भैया..! अक्षित की तो पढ़ाई चल रही है… अभी दसवीं में इतना अच्छा रिजल्ट किया है.. ऐसे में उसकी पढ़ाई का क्या होगा..?

सरिता जी के भैया:  पर सरिता.. अगर यह दुकान नहीं रहेगी तो ना तो पढ़ाई हो पाएगी और ना ही यह परिवार चल पाएगा… ऐसा चलता हुआ दुकान है… दूसरों के भरोसे छोड़ोगी तो सब कुछ बर्बाद हो जाएगा… यह बात अक्षित सुन लेता है और वह फैसला करता है कि, वह अब दुकान, अपनी मां और अपने भाई को संभालेगा… पापा का फर्ज अब वह निभाएगा… फिर क्या था..? वह लग गया अपनी जिम्मेदारी उठाने में.. उसने अपनी पढ़ाई छोड़ दी… छोटा सा अक्षित अब अचानक से बड़ा बन गया….     और उसने अतुल की पढ़ाई में कभी कोई कमी नहीं आने दी और फिर सरिता उसकी शादी भी जल्दी करा देती है, ताकि सरिता जी को घर पर भी मदद मिल सके…

अक्षित की पत्नी बेला भी बड़ी सरल स्वभाव की और परिवार को जोड़कर रखने वाली औरत थी… घर पर सब कुछ बड़ा अच्छा चलने लगा… अतुल अपनी पढ़ाई पूरी कर एक अच्छी सरकारी नौकरी हासिल कर लेता है और तभी से घर में बदलाव आना भी शुरू हो जाता है..

अतुल को अपनी नौकरी का बड़ा घमंड हो जाता है और उसे अक्षित को अपना बड़ा भैया कहने में शर्म आने लगती है… 

पर ताज्जुब की बात तो यह थी कि, सरिता जी यह सब कुछ देख कर भी कुछ नहीं कहती थी… उल्टा अतुल के हां में हां मिलाती… अक्षित इन सब बातों को नजरअंदाज कर देता… पर बेला..? उसे बड़ा दुख होता क्योंकि उसके पति के समर्पण को यहां देखने की शक्ति अब किसी में नहीं थी…

इतना सब तो चल ही रहा था और इन सब में आग में घी डालने का काम अतुल और अलका का शादी कर देता है… अलका और अतुल एक ही दफ्तर में काम करते थे… नौकरी पेशा बहू पाकर सरिता जी और भी बदल जाती है..

बेला पूरे दिन घर का काम करती, अपनी देवरानी और देवर को टिफिन देना, सास की सेवा करना हो या पति की देखभाल करना, वह कभी भी बिना थके हर काम को बड़े मन से करती है… पर एक रोज वह बीमार पड़ जाती है.. सुबह अक्षित उसे सोता देख उसे बिना जगाए ही दुकान चला गया… बेला देर तक सोती रही इसलिए ना तो अलका का टिफिन और ना ही अतुल का टिफिन बना पाई…

सुबह सरिता जी, अतुल और अलका बेला के कमरे में उसे सोता देख गुस्से से उबलने लगे…

सरिता जी:   उठो बेला..! इतना भी क्या काम कर लेती हो जो थक गई..? उठो..

सरिता जी की आवाज सुनकर बेला हड़बड़ाकर उठ जाती है और कहती है.. मां जी..! आज मेरी तबीयत खराब है, इसलिए आंख ही नहीं खुली…

सरिता जी:   हां यह सब तो अलका को देखकर ही हुआ होगा..? तू घर के सारे काम करती है यह नहीं करती, जलन तो होती होगी ना तो यह बहाना अच्छा है… पर तू यह भूल गई..? यह पैसे कमाती है जो तू नहीं कमाती…  अक्षित ने भी तुझे जगाया नहीं, क्योंकि सांप तो उसके कलेजे में भी लोट रहा होगा, छोटा भाई इतनी तरक्की जो कर गया… 

बेला:   हां मां जी… सही कहा आपने.. छोटा भाई तरक्की कर गया पर बड़े भाई को भी अपनी पढ़ाई छोड़नी नहीं चाहिए थी.. तभी छोटा भाई तरक्की के साथ साथ संघर्ष भी देख पाता… बड़े भाई ने तो संघर्ष अपने नाम कर लिया और छोटे भाई को तरक्की दे गया… पर अब मिल क्या रहा है उसे..?

सरिता जी:   पता था यह तूने ही उसके कान भरे होंगे, यह सब कह कर…

तभी पीछे से अक्षित आकर कहता है.. हां मां इसने ही मेरे कान भरे हैं… क्योंकि मैं तो अंधा हूं… मुझे कुछ दिखाई ही कहां देता है..? मां..! अगर सिर्फ अतुल का व्यवहार ऐसा होता, तो मुझे इतना बुरा नहीं लगता… पर आपका व्यवहार मुझे अंदर तक तोड़ गया… इसलिए जा रहा हूं यहां से… मैं आप लोगों के शर्मिंदगी का कारण नहीं बनना चाहता… इसके बाद अक्षित और बेला वहां से चले गए…. 

कुछ दिनों बाद से ही, सरिता जी को जब सब कुछ करना पड़ता तब उन्हें बेला की याद आने लगी… वह बीमार पड़ी रहती पर ना ही अतुल और ना ही अलका उन्हें पूछते… एक दिन सुबह-सुबह अक्षित और बेला सरिता जी के पास आते हैं…  अलका दरवाजा खोलती है.. अरे आप लोग यहां..?

अतुल:   क्या हुआ भैया..? चला नहीं क्या बाहर..? बड़े ठाठ से गए थे यहां से… अब क्या हुआ…?

इन्हें मैंने बुलाया है और यह अब यही रहेंगे और अगर इनके साथ किसी को रहने में आपत्ति है तो, वह यहां से जा सकता है…. पीछे से सरिता जी ने कहा… 

अतुल:   यह क्या कह रही है मां आप..? मुझे जाने को कह रही हैं इन फटीचरों की वजह से..?

सरिता जी यह बात सुनकर तुरंत एक चांटा अतुल को लगा कर कहती है… अरे नालायक… जिसे फटीचर कह रहा है अगर उसने अपनी पढ़ाई छोड़, इस घर को ना संभाला होता, तो तू भी शायद आज फटीचर ही होता… गलती मेरी ही है अपने हीरे जैसे बेटे के समर्पण को अनदेखा कर, इस पीतल को सोना समझ लिया… यह नौकरी, यह बीवी, तुझे कभी ना मिलती जो यह तेरे यह राम भैया ना होते…

दोस्तों सरिता जी को तो अपनी गलती समझ आ गई.. पर ऐसा अक्सर देखने को मिलता है कि घर के बड़े बेटे का समर्पण हमेशा नजरअंदाज किया जाता है… खुद अपने ही घर में उसे अपनेपन का एहसास नहीं होता, क्योंकि कई बार तो उसके माता-पिता ही यह भेदभाव कर देते हैं… आप मेरी बात से कितना सहमत है..? बताइएगा जरूर 

धन्यवाद 

मौलिक/स्वरचित/अप्रकाशित

#समर्पण 

रोनिता कुंडू

 

 

 

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