इतना सा ख्वाब – डॉ पारुल अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

 Moral Stories in Hindi : ख्वाब कहने को तो एक छोटा सा शब्द है पर देखा जाए तो हमारी सारी दुनिया ही इसके चारों तरफ घूमती है। यही हैं जिनकी वजह से हम कुछ कर गुजरने की क्षमता रखते हैं। चलिए जब बात ख्वाब की छिड़ी ही है तो किसी और के ही बारे में क्यों,कुछ बात अपनी ही कर ली जाए।

कहानी शुरू होती है,कुछ इस तरह कि दसवीं कक्षा के बाद जीव विज्ञान विषय लिया क्योंकि डॉक्टर बनने का सपना मन में था। बारहवीं के बाद खूब मन लगाकर एक साल जमकर तैयारी की, घर पर भी मम्मी-पापा का पूरा सहयोग था। आवश्यक कक्षा भी ली और अपनी तरफ से भी दिन-रात मेहनत की। परीक्षा का दिन भी आ गया ।

उस समय पर उत्तर प्रदेश में मेडिकल की परीक्षा सीपीएमटी कहलाती थी और दो दिन का चार विषयों का पेपर होता था। चार विषय केमिस्ट्री (रसायन विज्ञान) बॉटनी (वनस्पति विज्ञान)और जूलॉजी( जंतु विज्ञान) तो मेरा काफी अच्छा था पर फिजिक्स( भौतिक विज्ञान) में उतनी पकड़ नहीं थी पर फिर भी आश्वस्त थी की तीनों विषय के अंक भौतिक विज्ञान की अंक कमी को पूरा कर देंगे।

इसी आशा के साथ पूरी सक्रात्मकता ऊर्जा के साथ में परीक्षा देने गई।दो पालियों में परीक्षा हुई। पहली परीक्षा मेरी अच्छी हुई, बीच में दो घंटे का ब्रेक था। इस बीच में घर पर आई तो किसी ने मेरे से कुछ नहीं कहा। मैं थोड़ा सा हैरान थी कि कोई कुछ क्यों नहीं पूछ रहा है। असल में परीक्षापत्र पहले ही आउट हो चुके थे और मेरा मनोबल न टूट जाए इसलिए घर पर कोई इस विषय में बात नहीं कर रहा था। मेरे शहर के प्रसिद्ध कोचिंग संस्थान ने परीक्षा पत्र आउट करवा दिए थे।

उस समय परीक्षा स्थगित भी नहीं हुई क्योंकि वो सोशल मीडिया का ज़माना तो था नहीं। वो अपने कार्यक्रम अनुसार जैसे होनी थी वैसे भी हुई।  पर मेरे जैसे कई विद्यार्थी काफ़ी हताश हो गए। कई छात्रों ने कोर्ट में याचिका डाली और परीक्षाफल पर स्टे लग गया। पर इससे कुछ भी नहीं हुआ जब परीक्षा परिणाम घोषित हुआ तो अधिकतर छात्र उस कोचिंग संस्थान के ही चयनित थे। मैं थोड़ा निराश थी।

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ये भी कहीं ना कहीं लगा कि अब शायद उतनी मेहनत नहीं कर पाऊंगी। पर शायद ये ख्वाब देखने की आदत ही थी जिसने एक सपने के टूटने के बाद मेरे को कहीं ना कहीं बोला कि मेरे नाम के आगे एमबीबीएस करके डॉक्टर नहीं लगा तो क्या हुआ? मैं रिसर्च करूंगी,पीएचडी करूंगी और डॉक्टर तो अपने नाम के आगे लगाकर रहूंगी। दिन बीतने लगे, पढ़ाई भी आगे की पूरी हुई पर घर में सब इंजीनियर और कंप्यूटर थे तो मेरे को भी इसी में अपना कैरियर बनाने को कहा गया।

इस बीच शादी भी हो गई, कहीं ना कहीं डॉक्टर नाम के आगे लगाने का सपना धूमिल होने लगा। पर शायद इस ख्वाब को मैंने दिल के किसी कोने में अच्छे से संजोया हुआ था। हुआ ये,कि जिंदगी में सब कुछ ठीक चल रहा था पर एक सपना कई बार रात को आकर मेरी नींद उड़ा जाता। शादी के चार-पांच साल बीत जाने पर भी मेरे को अधिकतर सपना आता कि मैं परीक्षा कक्ष में हूं और मेरी परीक्षा छूट गई है या मैं परीक्षा में फेल हो गई।

बहुत परेशान रहने लगी थी मैं, औरों के लिए हो सकता है ये छोटी बात हो पर आधी रात को ये सपना मुझे डराने लगा था। बहुत सोचा और अपने पति से भी सलाह ली फिर मैने बीएड करने का निश्चय किया, उस समय मेरी बेटी चार साल की थी। एमिटी यूनिवर्सिटी से मेरा रेगुलर कोर्स था, उपस्थिति अनिवार्य थी। मेरी छोटी बच्ची ने भी मेरा पूरा साथ दिया।कक्षा समय लंबा था पर विशेष योग्यता से मेरा बीएड पूरा हुआ।

बीएड के पूरा होते ही मेरा चयन एम.एड में हो गया वो भी मैंने विशेष योग्यता से पूरा किया। ऐसा नहीं था की अभी भी वो परीक्षा छुटने वाला सपना नहीं आता था, पर अब उसकी आवर्ती कम हो गई थी। बीएड और एम.एड होने के बाद मैंने छोटे से बीएड कॉलेज में ही काम करना शुरू किया वहां मेरी एक मित्र बनी थी उन्होंने मुझे पीएचडी परीक्षा का एक विज्ञापन दिखाते हुए बोला कि तुम भी कर लो,मैं भी यहां से कर रही हूं।

बस फिर क्या था आखिर ख्वाब को मंजिल मिल गई थी। जिम्मेदारियां और मेहनत बहुत थी,पर सपना और लक्ष्य पाने की चाहत उससे भी अधिक थी। पीएचडी करते हुए यूजीसी नेट परीक्षा पास की और आखिर में डॉक्टर भी लग ही गया नाम के आगे। अब वो परीक्षा में फेल होने और छूट जाने के सपने भी आने बंद हो गए। 

तो बस यही था मेरा इतना सा ख्वाब जिसने मेरी दुनिया ही बदल दी। अब तो मैं सिर्फ यही कह सकती हूं कि सच में अगर किसी चीज़ को दिल से चाहो तो पूरी कायनात तुम्हें उससे मिलवाने की कोशिश में लग जाती है।

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