समर्पण बहू का – संध्या त्रिपाठी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: देखिये – देखिये जी वो जो एक बुढ़ी औरत का हाथ पकड़ कर जा रही है….. वो लगता है वर्षा है…बिल्कुल वही चेहरा लग रहा है…… स्नेहा ने पति शिशिर से कहा……I कौन वर्षा स्नेहा ……और इतने भीड़ में तुम भी ना ….किसकी बात कर रहीं हो पता नहीं….I शिशिर ने भीड़ में आगे बढ़ते हुए स्नेहा से कहा ..I

दरअसल स्नेहा के पति कोल इंडिया में कार्यरत थे ….और उनकी पोस्टिंग एक छोटे से कस्बे में थी …जहां पर भिन्न-भिन्न जाति व संप्रदाय के लोग रहते थे इसी वज़ह से हर त्यौहार बड़े खुशी और उमंग से मनाया जाता था जिसमें सभी संप्रदाय के लोग हिस्सा लेते थे….I

आज भी दशहरा के मौके पर एक छोटा सा मेला लगा था …जिसमें स्नेहा अपने पति के साथ घूम रही थी …..I जैसे ही स्नेहा को वर्षा के होने का एहसास हुआ अब मेले में उसकी आँखें वर्षा को ही ढूँढ रहीं थीं……शायद कहीं दिख जाये…I मेले के हर दुकान में रुकना और दुकान में सामान देखने के बजाये भीड़ को देखे जा रही थी कि शायद वर्षा कहीं दिख जाये…I स्नेहा की गतिविधियाँ देख कर शिशिर गुस्सा भी हो रहा था…..

बार बार कह रहा था…..यार मेले का आनंद लो ना जो यहाँ नहीं है उसके ख्याल में अभी का मजा क्यों खराब कर रही हो ……पर स्नेहा पर तो जैसे वर्षा का भूत ही सवार था…I

वर्षा स्नेहा के बचपन की सहेली थी इतने दिनों के बाद अचानक उसका एहसास होना स्नेहा के लिए जिज्ञासा और खुश होना स्वाभाविक था..I

अरे वो देखिये …..वो रही वर्षा…..एक मिनट शिशिर मैं आई कहकर स्नेहा तेज कदमों से चलती हुई अगले दुकान की ओर बढ़ गई जहां वर्षा एक बुढ़ी औरत का हाथ पकड़ कर धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी……I आ…प……वर्षा…..?? स्नेहा ने धीरे से पूछा…. अरे स्नेहा तू यहाँ….. वर्षा ने भी चहकते हुये स्नेहा का हाथ पकड़ कर बोला….. हाँ वर्षा मैं तो यहीं हूँ अभी जल्दी में हूँ ये रहा मेरा फोन नंबर…. तू कल ही मेरे घर आयेगी समझी….

स्नेहा ने वर्षा को आदेश देने के अंदाज में घर आने का न्योता दे दिया I वर्षा ने हाँ भाई हाँ जरूर आऊँगी….. पर एक बार इनसे तो मिल वो बुढ़ी औरत की ओर इशारा करती हुई बोली….ये मेरी माई है….. (यू .पी. के ग्रामीण अंचल में माँ को माई भी बोलते हैं) और वो बुढ़ी औरत वर्षा की सास है…I

सूती सफेद फ्लोरल प्रिन्ट के कड़क साडी में ग़ज़ब की आकर्षक लग रहीं थीं….. माई ….अपने ज़माने में कितनी सुन्दर रहीं होंगीं…. कल स्नेहा से मिलने का वादा करते हुए वर्षा माई का हाथ पकड़ कर आगे बढ़ गई……I

दूसरे दिन स्नेहा सुबह से ही मन ही मन वर्षा का इन्तजार कर रहीं थीं…….शाम को वर्षा अपनी माई का हाथ पकड़े हुए पहुंच गई स्नेहा के घर….. एक बार स्नेहा के मन में ये आया भी कि …..अरे हमें जब आपस में ही गपशप करना था तो इन्हें क्यों साथ में ले आई वर्षा….. I

पर स्नेहा कुछ सोच पाती इससे पहले वर्षा ने खुद ही बोला……साॅरी स्नेहा ….मैं माई को अकेला छोड़ कर नहीं आ सकती थी ……इसलिए इन्हें साथ में लेकर आई हूँ..I और इनके सामने अपने दिल की बात करने में मुझे कोई संकोच भी नहीं होगा स्नेहा …..ये मेरी माई के अलावा एक दोस्त भी है …….अरे कोई बात नहीं वर्षा आओ बैठो…I

और शुरू हुआ बातों का सिलसिला……और बता तू यहाँ कबसे है मुझे 6 महीने हुए है यहां आये…शिशिर की यहां पोस्टिंग है…तू बता स्नेहा ने वर्षा से पूछना चाहा…वर्षा ने भी बताया मैं पिछले एक साल से यहीं पर शिक्षिका हूँ ….मेरे पति भी शिक्षक हैं ..और पास के एक गाँव मे उनकी पोस्टिंग है रोज आनाजाना करते हैं…..!

अच्छा कहते हुए स्नेहा ना जाने कितनी बातें तुरंत ही जान लेना चाहती थी…I माई जो चुपचाप बैठीं हुई थी और इधर-उधर सिर घुमाकर कमरे को देख रही थीं I स्नेहा ने पानी का गिलास टेबल पर रखते हुए पूछा….. और बता वर्षा ससुराल में कौन कौन है जीजाजी कैसे है कभी उनको भी लेकर आना I

हाँ हाँ क्यों नहीं वो भी जरूर आयेंगे तुझसे मिलने…I .. ..अब तो तेरे जीजाजी ठीक है…..ठीक क्या बहुत अच्छे हो गये हैं ……वर्षा ने अपने पति के बारे में बताया.. ..वर्षा अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि स्नेहा ने उसके शब्दों को पकड़ लिया था देर किये बिना तुरन्त ही उसने पूछा…..अब ठीक हैं मतलब…??? पहले क्या वर्षा…??? वो ठीक नहीं थे क्या बात है वर्षा

…????

वर्षा भी अपने अतीत की गठरी वर्षों बाद मिली सहेली के समक्ष खोल ही दिया…..I देख स्नेहा तू तो जानती है…. मैं शुरू से बहुत ज्यादा सुंदर तो थी नहीं …..साधारण नैननक्श वाली लकड़ी थी …. हालाँकि खेलकूद और अन्य गतिविधियों में मैं आगे जरूर थी पर तू तो जानती है ना…………

एक लड़की का सुन्दर होना कितना जरूरी है…….सुन्दरता किसी लड़की के लिये कितना मायने रखता है….I नई नई शादी हुई…मेरे पतिदेव बहुत सुन्दर और स्मार्ट थे…I संयुक्त परिवार था हमारा…. परिवार के सभी लोग अच्छे थे… .खास कर मेरी माई उस बुढ़ी औरत की ओर इशारा कर के वर्षा ने बताया……I

अच्छा- अच्छा ये हैं तेरी सास हैं….. स्नेहा ने उत्सुकतावश पूछा……वर्षा ने मुस्कुरा कर हाँ में सिर हिला कर अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला…….शुरू शुरू में मुझे ससुराल में मेरे पति से वो इज्जत.. प्यार …नहीं मिला जिसकी मैं हकदार थी….I मैं अपने पति से रात के अलावा दिन में अकेले कभी समय नहीं बिता पाती थी…..या कहूँ…..मेरे पतिदेव चाहते ही नहीं थे I

संयुक्त परिवार में और लोगों के मध्य वो काफी खुश थे …उन्हें इस बात का आभास भी नहीं था कि ….उनके इस व्यवहार से मेरी उपेक्षा हो रहीं है….I जबकि मैं एक अच्छी पत्नी , एक अच्छी बहू बनने की पूरी कोशिश कर रही थी…..I पर संयुक्त परिवार था जेठ जेठानी , देवर देवरानी , सास ससुर सबका ध्यान रखना पड़ता था I

मेरी उपेक्षा के एहसास को उस परिवार में सिर्फ एक व्यक्ति अच्छी तरह समझती थी ….और वो थी मेरी माई…!! माई का हाथ पकड़कर वर्षा ने मुस्कुराते हुए कहा ….इन्होंने मेरे इस घर के प्रति समर्पण भाव की हमेशा इज्जत की है ….वो मेरी हर जरूरत में सहायता कर के मेरा सहारा बनीं…I

मैं पढ़ी-लिखी शहर की आधुनिक लड़की…….मेरे भी कुछ सपने….कुछ अरमान थे …..पर तेरे जीजाजी ने उस तरफ कभी ध्यान ही नहीं दिया….I माई हमेशा कहतीं…जा बेटा…….बहु को उसके मायके घुमा कर ले आ…. ! पर ये व्यस्तता बता कर मना कर दिया करते थे……I उस वक़्त मैंने माई के आँखों में अपने लिये प्यार और अपने बेटे के लिए गुस्सा देखा है स्नेहा…..!!

उस विषम परिस्थितियों में यदि कोई मेरा अपना था तो वो मेरी माई थीं….कहते कहते वर्षा के आँखों में आंसू आ गये..I

धीरे-धीरे समय बीतता गया…. संयुक्त परिवार ने एकाकी परिवार का रूप ले लिया…..I पतिदेव के व्यवहार में भी काफी बदलाव आ गया ….अब मुझे पहली बार एहसास हुआ कि मेरा घर और मेरा पति है …..जो अनुभव करने के लिए सयुंक्त परिवार में मैं तरस गई थी…. अब तो वो रोज का हिस्सा बन गया……I और अब तो तेरे जीजाजी भी बहुत अच्छा बर्ताव करते हैं….शायद जिंदगी की बहुत बड़ी सच्चाई अब उन्हें समझ में आ गई….!!

माई को मैंने अपने साथ रखा…..I जब मुझे माई की जरूरत थी तो माई ने मेरा पूरा ध्यान रखा…..अब माई को मेरी जरूरत है तो उन्हें मैं घर में अकेली कैसे छोड सकती हूँ……I

मुझसे महिलाएँ किटी पार्टी खेलने का आग्रह करती हैं….मेरी पहली शर्त होती है …..माई को अपने साथ ला सकती हूँ क्या… ??? जानती है स्नेहा मुझे समझ में आ गया है कि जब माई मेरे साथ होतीं हैं तो वो खुश रहती हैं उन्हें अच्छा लगता है …..वरना अकेले बैठी मेरे आने का राह ताकतें रहती हैं….. इसीलिये हमेशा माई मेरे साथ होतीं हैं…और मैं अपने को उनका सानिध्य पाकर बहुत मजबूत समझती हूँ….I वर्षा ने अपनी भावनाओं को स्नेहा के समक्ष रख दिया…..I स्नेहा जो बड़े ध्यान से वर्षा की बातें सुन रही थी….बस उसके मुँह से एक ही शब्द निकला….मुझे तुम पर गर्व है वर्षा…!!

माई भी मुस्कुरा कर धीरे से बोली……मुझे भी गर्व है अपनी बहू वर्षा पर…….और परिवार के प्रति उसके समर्पण पर………अब चले घर….और वर्षा माई का हाथ पकड़ कर निकल गई घर के लिये…..!!!

वर्षा की बातों से इतनी प्रभावित हुई स्नेहा…. कि उसे पहली बार एहसास हुआ कि वो भी तो जिंदगी में गलतियां कर रही है….. पिछले कितने दिनों से अपने सास ससुर का हालचाल भी नहीं लिया….I..और अनजाने में हुई इस गलती को सुधारने में लग गई स्नेहा….I

(स्वरचित मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित रचना)

श्रीमती संध्या त्रिपाठी

#समर्पण

 

 

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