समझदार -अनुज सारस्वत

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“आकृति आखिरी बार कह रहा हूँ मान जाओ ,तुम्हारे चक्कर में कितना किया है मैने ,अपना शहर छोड़कर तुम्हारे शहर में कोर्स करने के बहाने आया ,चार साल का रिलेशन है ,तुम्हें बहुत चाहा है मैनें और तुम कह रही हो अब कोई रिलेशन नही रखना तुम्हें करियर बनाना है ,अपने घर वालों के हिसाब से चलना है ,देखो मैं सुसाइड कर लूंगा “

इतनी देर में दूसरी साईड से फोन कट चुका था,रोहन के मन मस्तिष्क जल उठा था गुस्से वह रूम से निकला ,बाहर हल्की हल्की बारिश हो रही थी ,  फोन घर पर ही छोड़कर गया ,उसके कदम सीधे बार में जाकर रूके,करीब लगातार 7-8 पैग लगा चुका था ,शराब पीने से रह रहकर आकृति के साथ बिताने पल याद आने लगे थे जिससे उसकी सुसाइड करने की ईच्छा तीव्र होती गई, उसने घर जाकर पंखे से लटककर सुसाइड करने का निर्णय ले लिया ।

बार से निकलकर तेज कदमों से बढ़ने लगा ,बारिश ने विकराल रूप धारण कर लिया था ,बारिश से बचने के लिए मैदान में बनी एक झोपड़ी की ओट में खड़ा हो गया ,तभी उसे झोपड़ी के अंदर से चीख सुनाई दी औरत की ,उसने अंदर देखा तो एक औरत प्रसव पीड़ा से चीख रही थी उसका आखिरी महीना था ,नशे में होने के बावजूद उसने हिम्मत करके मदद के लिए झोपड़ी में गया ,तो वह औरत उससे बोली 

“भैया जल्दी डाक्टर के ले चलो मुझे ,मेरे बाबा  बाहर है ,मै रुक नहीं पाऊंगी “

इतने बाहर से उसके बाबा बाहर से आये उसकी बेटी ने सारी बात बताई ,रोहन की समझ में कुछ नहीं आ रहा था ,बारिश बहुत तेज थी हास्पिटल बहुत दूर था ,कोई  आ जा नही रहा था रोड पर दोनों ने फिर ठेले पर डालकर ले जाने की सोची ,इतने में लड़की का धैर्य जबाब दे गया और रोहन को बोली 

“भैया मैं नही रुक पाऊंगी आपको ही प्रसव कराना होगा “


इतना सुनते ही रोहन के होश उड़ गये ,सारा नशा उतर गया,वह वहां से भागजाना चाहता था लेकिन लड़की के बापू ने हाथ जोड़कर बच्ची के जीवन के लिए गुहार लगाई फिर लड़की के कहे अनुसार मोटी चादर डाल दी उस पर भयंकर चीख के साथ एक बच्चे को जन्म दिया ,रोहन से बच्चे को उठाकर नाल काटने को कहा गया।

नाल काटने के बाद बच्चे को उठाया तो झर झर आँसू निकल पड़े रोहन के क्योंकि 

जो जीवन समाप्त करने जा रहा था उसके हाथ एक नव जीवन का जन्म हो चुका था ।

बाहर बारिश बंद हो चुकी थी ,बाहर पुलिस की गाड़ी साईरन बजाकर निकली तो तुरन्त लड़की के बापू ने उन्हे रोक लिया और बिटिया को गाड़ी में डालकर बाकि ट्रीटमेंट के लिए ले गये साथ में रोहन भी था ,बापू ने सारी कहानी बताई कि कैसे उसकी लड़की को उसके पति ने छोड़ दिया गर्भवती करके लेकिन लड़की ने हार नही मानी बच्चे को जन्म देने का फैसला लिया।

रोहन वहां से लौट आया गजब परिवर्तन आ चुका था ,अपना सामान उठाया और अपने शहर लौट गया ,घर पहुंचा माँ ने दरवाजा खोला ,जिनसे दो साल पहले लड़कर गया था ,जाते ही पैरों में गिर गया और सारी बात बताई उन्हें और बोला

” मम्मी आप लोगों से ज्यादा मजबूत कुछ नहीं है इस संसार में , 10000 हजार बिच्छुओं के काटने के बराबर दर्द सहकर आप हम लोगों को जन्म देते हो ,फिर हर परिस्थिति में पालते हो सहते हो ,अब समझ आया धरती को भी माँ की संज्ञा क्यों दी गई, और हम बेवकूफ छोटी छोटी बातों में अपना जीवन समाप्त करने की सोचते हैं ,इतनी मुश्किल से जीवन मिलता है एक ही ,उसे सही करने के बजाये बोझ मानते हैं ,आपका कर्ज नही चुका सकते कभी हम”

बीच में माँ रोकते हुए उसके सर पर हाथ रखकर  बोली 

“चल चल ज्यादा ना सोच ,मेरा बेटा समझदार हो गया है ,ईश्वर की बड़ी कृपा है,बता क्या खाएगा ?”

“नही मम्मी मै बनाऊंगा आपके लिए, आपके फेवरेट लौकी चने का साग दही डालकर”

माँ मुसकुरा गई 

-अनुज सारस्वत की कलम से 

(स्वरचित)

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