आत्म विवाह (self marriage) – गरिमा जैन

मांग में सिंदूर ,हनीमून का पैकेज, मेहंदी, हल्दी ,सारी रस्में! पर साथ कोई भी नहीं !हमसफर कोई नहीं!.आज अखबार में जब पढ़ा कि गुजरात की एक 24 वर्षीय लड़की ने आत्म  विवाह यानी खुद से शादी करने का फैसला किया है तो मन बहुत कुछ सोचने पर मजबूर हो गया ।

ऐसा विवाह भारत के लिए बिल्कुल नई बात है ,हालांकि विदेश में ऐसा विवाह पहले भी देखा गया है ।1993 में यूएस में रहने वाली एक लड़की ने आत्म विवाह यानी सेल्फ मैरिज की थी और  मरते दम तक खुद का ख्याल रखना, खुद से प्यार करने का फैसला किया था। 2003 में टीवी पर आने वाला एक अंग्रेजी सीरियल “सेक्स एंड द सिटी “में भी एक ऐसी अभिनेत्री ने ऐसा ही विवाह किया था ।

क्या सच में एक लड़की को विवाह के उपरांत जीवन में जो कुछ भी चाहिए वह आत्म विवाह करके उसे मिल सकता है? विवाह उपरांत मिलने वाला घर ,भोजन , प्रतिष्ठा क्या वह स्वयं अर्जित कर सकती है ? खुद की इज्जत बनाना ,बुढ़ापे के लिए पैसे इकट्ठे करना ,अपने घर परिवार के लिए सहारा बनना ,उनसे स्नेह पाना, खुद को ऊंचे मकाम पर पहुंचते देखना, क्या सब कुछ अकेले करना इतना आवश्यक है?


मुझे लोगों की प्रतिक्रिया जानने की बहुत उत्सुकता हुई तो मैंने सोशल मीडिया पर उस लड़की के बारे में ढूंढना शुरू किया और साथ ही हजारों लोगों के कमेंट मेरे सामने आ गए! सबसे पहले तो एक राजनीतिक बयान आया कि वह इस लड़की को हिंदू रीति रिवाज और मंत्र उच्चारण के साथ विवाह नहीं करने देंगे क्योंकि इससे वंश आगे नहीं चलेगा ।तो कुछ लोगों का कहना था कि लड़की अपना मानसिक संतुलन खो बैठी है ।कुछ ने तो अभद्रता की सारी हदें पार कर दी और लड़की को अश्लील बातें तक लिख  डाली ।

मैं सोचने लगी, ना जाने क्या कुछ देखना पड़ेगा आने वाले समय में ?क्या सच में उस लड़की का मानसिक संतुलन ठीक नहीं? फिर मन के  किसी कोने ने कहा कि हर व्यक्ति को अपनी जिंदगी अपने ढंग से जीने का हक है और अगर कोई खुलकर अपने मनोभावों को व्यक्त करना चाहता है तो उसे,पागल,सिरफिरा ,सनकी ,नासमझ ,बावला ,विक्षिप्त ,बेवकूफ, मतिभ्रष्ट  आदि नामो से संबोधित किया जाता है। क्या उस 24 वर्ष की लड़की का खुद से लगाव ,खुद से प्यार करने का अनोखा ढंग गलत है ? यदि गलत है तो यह उसका निजी फैसला है और फिर क्या समाज में क्या  कुछ गलत नहीं है ?

क्या बंद दरवाजे के पीछे जब स्त्री का सम्मान ,उसकी गरिमा पल-पल उससे छीनी जाती है तो उसे सही ठहराया जा सकता है ?जब उसे अपने रिश्तेदारों यहां तक कि अपने मायके तक नहीं जाने दिया जाता तो यह एक विक्षिप्त सोच नही है ! ना मन  का खा सकती है ना पहन सकती है! यदि वह खुद का ध्यान ना रख पाए तो सौतन का दंश सहती है ।पति की बात ना मानने पे थप्पड़ और  मानने पर अपना आत्मसम्मान खोने  का चांटा सहन करना किस हद तक ठीक है …

 

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