घर में खूब हँसी खुशी का माहौल है,हो भी क्यों ना! आज रवि की बहू मधु की मुँहदिखाई की रस्म होने जा रही है|
पास पडौ़स की महिलाऐं तथा घर की सब बड़ी बुजुर्ग महिलाऐं एकत्रित हो गई थी,अद्वितीय रूप की मालकिन मधु की सब बलैया ले रही थी,वो सबको बहुत पसंद आई ।मालती जी मोहित होकर अपनी बहू को निहारे जा रही थी,तभी जो़र का शंखनाद हुआ, सबने चौंक कर दादी जी की ओर देखा,सबके मन में था …बाप रे !इस शुभ घड़ी में कौन सा बम फूटेगा…।
मालती मिन्नत भरी निगाहों से उन्हें देखने लगी, मानों कह रही हों आज कोई कड़ी बात ना बोलें पर दादी तो दादी है,उन्होंने मालती जी को ही ललकार डाला,”देख बहू! तू तो भोली भाली है पर ये आजकल की बहुऐं बहुत चोखी होशियार होती हैं। तू बीनड़ी को समझा दे कि हमारे घर में बड़े बुजुर्गों का नाम नहीं लिया जाता है, ये आजकल की छोरियाँ कितनी शान से अपने मरद का नाम भी लेती है।इसे समझा दे, यहाँहर टाइम रवि रवि ना चलेगा|”
सब चुप्प पर रवि की बड़ी दीदी रंजना को मजा़ आने लगा,”दादी! ऐलान भी किया तो अधूरा।अरे पूरी तरह नई बहू को समझाओ ‘क्या बोलना है रवि की जगह?”
“हट निगोड़ी! मुझसे ठिठोली कर रही है,आजकल छोरियां सब सीखी पढ़ी है,हम लोग तो ‘एजी ओजी सुनो तो’ करते थे।”
सब सुन कर मधु लोटपोट हो गई,”दादी जी ! गुस्ताखी माफ़! जो कहेगी,मानूंगी पर खिलखिल करने पर पाबंदी नहीं लगाना प्लीज।”
दोपहर में मधु से रसोई में कुछ बनवा कर रस्म करवाई जानी थी, बुआजी ने बड़े चाव से पूछा,”मधु ! क्या बना रही हो बेटा?”
“सब तो मम्मी जी ने बनवा ही लिया है ,मैं तो केवल पापा और ताऊजी को चीनी के रस में डुबोने जा रही हूँ,उन दोनों के ऊपर आपको सजा दूंगी।”
बुआजी और दादीजी तो अवाक् देखने लगी,”ये तू क्या अंटसंट बक रही है बेटा! पापा और ताऊ जी के लिए क्या बोल रही है? और उनके ऊपर मुझे सजाएगी, तेरा मतलब क्या है।”
“बुआजी! इसमें ना समझने वाली क्या बात है? दादी जी की आज्ञा का पालन ही तो कर रही हूँ। मैं गुलाबजामुन बना रही हूँ,ऊपर से केसर डालूँगी।”
तब सबको समझ मे आया कि पापाजी का नाम गुलाबचंद, ताऊजी का नाम जमुना प्रसाद तथा प्यारी बुआजी का नाम केसर देवी है।
मालतीजी और रंजना मुँह दबा कर हँस रही थी।
नीरजा कृष्णा
पटना