समय चक्र – वीणा सिंह  : Moral stories in hindi

शीतल का मन आज बहुत व्यथित हो गया था सुबह से हीं.. पति ने बताया आशुतोष भाई नही रहे..

शीतल चालीस साल पहले बीते वक्त के आगोश मे डूब गई..

बाबूजी दो भाई थे.. बाबूजी बड़े थे और चाचा छोटे.. मेरे जन्म के बाद बहुत मन्नत और झाड़ फूंक के बाद भी मेरा कोई भाई बहन नही हुआ. और चाचा को एक बेटा हुआ आशुतोष. दोनो भाइयों में अटूट प्रेम और विश्वास था.. बाबूजी आशुतोष को पुत्रवत प्रेम करते थे..

वक्त गुजरता गया आशुतोष इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने लगा.. और मेरी शादी अच्छे संपन्न घर में हो गया.. मेरा ससुराल काफी संपन्न था.. पति और ससुर का बिजनेस था जो काफी अच्छे से चल रहा था.. मायके और ससुराल में प्रेम भी बना हुआ था.. आशुतोष इंजीनियर हो गया.. पीडब्ल्यूडी में.. मेरे तीन बच्चे हो चुके थे.. आशुतोष की शादी खूब धूम धड़ाके से हुई.. बहन का सारा नेग चार मैने हीं किया.. बहुत मजे में जिंदगी चल रही थी.. आशुतोष पिता बनने वाला था..

अचानक बिजनेस में जबरदस्त घाटा लगा.. मेरा परिवार अर्श से फर्श पर आ गया.. ससुर जी सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाए और दिल के दौरे से चल बसे.. पति के उपर भी दोहरी मार पड़ी थी.. कर्जदारों ने ससुर की तेरहवीं बीतते हीं तकादा करना शुरू कर दिया.. घर जमीन और फिर मेरे गहने सब कर्ज चुकाने में चले गए.. तीन बच्चे सास पति और मैं ससुराल के गांव वाले घर में आ गए.. पुराने घर को किसी तरह रहने लायक बनाया गया.. बच्चे शहर से सीधे गांव में बिना बिजली बत्ती के परेशान और रूवासें हो उठे.. पर वक्त और नसीब का लिखा…

आशुतोष को जुड़वां बेटी हुई… डॉक्टर ने कहा ये दुबारा मां नही बन सकती.. यूटरस निकालना जरूरी था वरना जटिलताएं बहुत बढ़ जाती . छठी में काजल लगाने के लिए भी बुआ को आशुतोष और चाचा किसी ने याद नहीं किया..

बाबूजी के बीमार होने पर मायके गई तो ये राज पता चला की बाबूजी के हिस्से की जमीन चाचा और आशुतोष के कहने पर आशुतोष के नाम कर दिया है क्योंकि लाचार होने पर देखभाल वही करेगा और मुखाग्नि भी वही देगा..

बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ रहे थे.. पति खेती करने लगे.. मैं आत्मसम्मान त्याग कर बिन बुलाए राखी भैया दूज पर मायके जाती कि कुछ पैसे मिल जायेंगे जो आड़े वक्त काम आयेंगे.. आशुतोष की तरफ मैं बहुत उम्मीद और याचना भरी नजरों से देखती जब पर्स खोल के नेग देने के लिए पैसा निकाल रहा होता पर… अब समझ में आ गया था कि ससुराल में भरे पूरे रहने पर मायके में भी पूछ होती है.. कभी भूले से भी आशुतोष मेरे या बच्चों की खैरियत पूछता.. आशुतोष की बेटियां मुझे देख कर मुंह फेर लेती मैं उनके सामने गरीब देहाती लगती थी..

बाबूजी के अंतिम चार महीने मेरे ससुराल के गांव में हीं कटे मेरी सेवा और मेरे बेटे की मुखाग्नि से उनको मुक्ति मिली.. आशुतोष को छुट्टी नहीं मिली और चाचा ने कहा तबियत ठीक नहीं है..

मेरे दोनो बेटों की नौकरी लग गई और बेटी की शादी भी हो गई.. तीनो बच्चे अपने जीवन में खुश और संतुष्ट हैं आपस में प्रेम है.. क्योंकि गरीबी और बेबसी में पले बढे साथ साथ.. आशुतोष का एक दामाद डॉक्टर और दूसरा डीएसपी है.. डेस्टिनेशन वेडिंग हुई जिसमे साधारण रिश्तेदार आमंत्रित नही थे..

आशुतोष ने करोड़ों कमाया.. कितने शहरों में फ्लैट और जमीन लिया.. मेरे बाबूजी की जमीन भी… सोचती हूं जमीन का कुछ हिस्सा भी मुझे मिलता तो मुझे कितना राहत मिलता उस बुरे वक्त में..

आशुतोष की पत्नी छः महीने से कैंसर से जूझते हुए  दुनिया से चली गई पर दोनो बेटियों के पास मां की देखभाल के लिए समय नहीं था इसलिए एनजीओ से संपर्क कर आशुतोष ने दो शिफ्ट में बारी बारी से दो औरत को रख दिया था.. मेरे पास फोन किया था आंसू और याचना के साथ कुछ दिन के लिए आ जा शीतल मेरी बहन सीमा बीमारी के साथ बेटियों के व्यवहार से बहुत दुःखी है मुझे भी सप्ताह में एक बार डायलिसिस के लिए जाना पड़ता है.. पैसा तो बहुत है पर अपना कोई नही है यही गम घुन की तरह अंदर ही अंदर खाए जा रहा है सीमा को.. दोनो बेटियों के लिए क्या नही किया पर..

मेरे तीनो बच्चों ने कसम दे दिया कि आप आशुतोष मामा के घर सेवा करने नही जाएंगी..

आशुतोष का इलाज करने वाला डॉक्टर बोला एक सप्ताह से ज्यादा ये नही बचेंगे तब दोनो बेटियां और दामाद आए.. जमीन और मकान के कागजात बैंक के पेपर सब इसी सात दिन में व्यवस्थित करने थे.. हॉस्पिटल में एडमिट रहे चार दिन आशुतोष पर बेटी दामाद घर से हीं फोन से समाचार लेते रहे.. सारे पेपर तैयार थे बस दो हिस्से में आपसी सहमति से बांटना था.. और फिर चिर प्रतिक्षित पल आ गया जब हॉस्पिटल से फोन आया आशुतोष जी नही रहे..

तेरहवीं खूब अच्छे से संपन्न हुई.. दान दक्षिणा और भोज दिल खोल के हुआ.. ऊंची सोसायटी के लोगों ने कहा बेटियों ने कितने अच्छे से सब संपन्न किया कितने ऊंचे संस्कार हैं इनके.. वाह! आशुतोष जी की आत्मा प्रसन्न और संतुष्ट हो गई होगी.. किसी ने ये नही जाना कि लोकल डॉक्टर सीमा और आशुतोष दोनों को बॉम्बे और दिल्ली बड़े हॉस्पिटल जाने के लिए बोल बोल के थक चुके थे पर बेटी और दामाद नेक्स्ट वीक से नेक्स्ट मंथ सियोर का आश्वाशन देते रहे.. चाचा और आशुतोष दोनों ने जो बोया वो काटा…

🙏❤️✍️

Veena singh..

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