समयचक्र- मनीषा सिंह : Moral stories in hindi

रामानंद जी रजिस्ट्री ऑफिस में किरानी की नौकरी करते थे।
घर में पत्नी और दो बेटी लता और किरण थी। इनके अलावा दो बेटे अरुण और वरुण जो अभी स्कूल की पढ़ाई कर रहे थे।
बेटियां बेटों से बड़ी थी इसलिए इनकी शादी करनी थी।
तनख्वाह इतनी थी जितनी में घर चल सके।
“अजी सुनते हो”। कल हमारे बगल वाली पड़ोसन हमारी बेटी रामा के लिए, लड़का बताया है।
आप अगर लड़के वालों का घर और खानदान की जानकारी ले लेते तो हम ब्याह के लिए आगे बात चला सकते है और इनका गांव भी पास में ही है चाय का कप पकड़ाते हुई शांति जी ने अपने पति रामानंद जी से बोली।

” ठीक है मैं कल ही ऑफिस कर के लंच ऑवर में समय निकालकर निकल जाऊंगा ।

“अरे भाग्यवान ! हमने तो एक को ही ब्याहना था लेकिन हमारी दोनों बेटियों के लिए एक ही घर में,” मैं रिश्ता पक्का कर आया हूं !
रामानंद जी जूता उतार, घर में प्रवेश करते बोले।

“यह तो बड़ी खुशी की बात आपने बताई !
शांति जी जल्दी से ग्लास का पानी पकराते हुए प्रसन्नता से बोली।

दोनों लड़के सरकारी जॉब में है तथा घर -परिवार भी काफी अच्छा और बड़ा है।
पुराने रईस जमींदार हैं वो।
हमारी बेटियां काफी भाग्यशालिनी हैं ,जो बिना मस्कत के जमींदार परिवार में उनकी शादी पक्की हो गई।
ससुर 5 साल पहले ही गुजर गए थे । घर में एक बूढी मां है जिनका शासन चलता है।

रिश्ता तो तय कर आया पर दहेज के लिए पैसे भी तो जोड़ने पड़ेंगे ना रामानंद जी के चेहरे पर थोड़ी शिकन थी ।
” क्यों दहेज की भी मांग है
शांति जी ने पूछा।
“कुछ सामान और पैसे की मांग है।
रामानंद जी बोले।

हमने कुछ पैसे बैंक में और पोस्ट ऑफिस में डिपॉजिट भी किये हैं वो कब काम देगा उसको तुड़वा लेते हैं बाकी गांव में हमारी गाय और बैल है उनको भी बेच आता हूं कुछ पैसे तो उससे भी मिल जाएंगे ।
बारातियों के स्वागत में कुल एक से डेढ़ लाख की खर्च होंगी इन राशियों का हमें इंतजाम करना होगा ।
“मैं घर आते वक्त भी यही सब सोच- विचार रहा था कि मेरे दिमाग में एक सुझाव आया” गांव में अपनी जमीन जो, हमने अभी कुछ दिन पहले खरीदी थी उसको बेच शादी के लिए पैसे और भी इकट्ठे हो जाएंगे बस थोड़ा भविष्य—– के लिए डरता हूं।भविष्य —के लिए क्या ?भगवान हैं सब उनके भरोसे चल रहा था और आगे भी चलता रहेगा।
” चलो मुंह मीठा” कर लो रिश्ता पक्का हुआ है शांति जी ने समझाते हुए रामानंद जी के मुंह में लड्डू डाल दी।

अपनी बेटियों की जिंदगी बन जाए इससे अच्छी बात क्या हो सकती है । एक गहरी सांस लेते हुए रामानंद जी ने बोला।

एक अजीब सी सुकून थी रामानंद जी के चेहरे पर।

अब यूं ही हिसाब किताब करते रहोगे या खाना भी खाओगे चलो हाथ मुंह धो लो मैं खाना लगाती हूं शांति जी कहते हुए रसोई में चली गई।

शादी में होने वाले सारे खर्च का इंतजाम कर महीना बाद एक अच्छी मुहूर्त निकाल रामानंद जी ने दोनों बेटियों की शादी बड़ी धूमधाम से कर दी ।

शादी में उन्होंने बारातियों के स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ी दोनों बेटियों को बराबर सामान दिया गया ताकि बाद में एक दूसरे को उलाहना देने की नौबत ना आए ।
सब कुछ निपट जाने के बाद रामानंद जी और शांति जी काफी खुश थें क्योंकि बेटियों की शादी उन्होंने अपने औकात से ज्यादा अच्छे में कर दी।

“आज पूरा गांव कह रहा था कि बेटियां ब्याही है तो रामानंद ने।”

” शादी के बाद रामानंद जी को पैसे की दिक्कत आ गई थी ।
घर तो कैसे भी चल जाता पर बेटों की पढ़ाई के लिए इन्हें सोचना पड़ रहा था।

धीरे-धीरे चार साल बीत गए बड़ा बेटा अरुण अब 12वीं पास कर गया था और आगे की पढ़ाई के लिए उसने इंजीनियरिंग को चूना ।
“अब रामानंद जी काफी परेशान हो उठे थे कि बेटे की पढ़ाई के लिए इतने पैसे कहां से लाएंगे ।
टेंशन से उनकी दिन रात की चैन हराम हो गई ।
एक दिन रामानंद जी की बड़ी बेटी लता अपने मायके घूमने आई ,अपने पिता को इतना परेशान देख वह बहुत दुखी हुई महीना भर बिताकर जब वह वापस अपने ससुराल आई तो वहां की स्थिति अपने पति प्रमोद को कहा और साथ में मदद की आग्रह भी की ।
” क्यों नहीं लाता हम ससुर जी की मदद जरूर कर सकते हैं आखिर मैं भी तो उनका बेटा जैसा हूं ।
यह बात जब सासू मां को पता चली तो घर में महाभारत शुरू हो गया ।
सासू मां ने लता और किरण की बहुत बेज्जती की।
“अरे इतने गरीब घर में बेटों को मैंने ब्याह तो दिया यह भी ना सोचा कि यह दोनों मेरे धन से अपनी पीहर भरने चली हैं ।

“अगर तुम्हारे पिताजी को इंजीनियरिंग पढ़ाने का औकात नहीं तो बेटे को किसी दुकान पर क्यों नहीं रख देते बेटा नौकरी करेगा तो चार पैसे भी आएंगे। बेटियों से पैसे मांग के अपनी तिजोरी भरना क्यों चाहते हैं तुम्हारे पिताजी । कितना नीच खानदान के हो तुम सब।”

किरण जो चुपचाप बड़ी बहन को जलील होते हुए देख रही थी उससे रहा नहीं गया।
” आप चुप हो जाइए”मां जी।
नहीं—- चाहिए ,हमें आपका पैसा हमारे पिताजी इतने संस्कारी हैं कि वह खुद अपने दम पर कहीं ना कहीं से पैसे का इंतजाम कर ही लेंगे मेरा भाई पढ़ भी लगा और हां, उसे किसी दुकान पर नौकरी करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। वह इंजीनियर ही बनेगा और कहते रोने लगी।
वो कहते हैं ना की “हिम्मत मर्दे तो मददे खुदा ” कहीं ना कहीं से रामानंद जी ने पैसों का इंतजाम कर, बेटे को इंजीनियरिंग करने भेज दिए।
छोटा वाला बेटा भी सिविल सर्विसेज की तैयारी में जी जान से लग गया।
दो-तीन साल के कठिन परिश्रम के बाद छोटा बेटा वरुण ने “आइ ए एस ” कंप्लीट कर पूरे शहर को गौरवान्वित किया । अब तो रामानंद जी को पूछने वाले तथा उनके नक्शों कदम पर चलने वालों की संख्या बढ़ गई अगल बगल सभी जगह उनका ही नाम हो रहा था कि अपने ईमानदारी और सच्चाई के साथ अपने दोनों बेटियां तथा दोनों बेटों को अच्छा संस्कार देते हुए सेटल कर दिया।

” आज जब किरण और लता से उनकी सासू मां को, यह बात पता चली की छोटा बेटा “आई ए एस “कंप्लीट कर गया है तो उनके पश्चाताप के आंसू निकल पड़े अपने कथनी पर उन्हें बहुत ही पछतावा हुआ ।अपनी बहूओ को बुलाकर बोली, कि हो सके तो मुझे माफ करना” समयचक्र” किसका कब बदलता है कोई नहीं जानता।
अरे नहीं “मां जी। आप खामखां परेशान हो रही हैं हमारे मन में ऐसी कोई नाराजगी नहीं कहते किरण हंस पड़ी।
” अरे फोन लगा अपनी मां को बधाई तो दे दूं वरुण को उसकी सफलता के लिए और एक पार्टी भी तो लेनी है तेरी मां से । फिर सभी हंस पड़े।”

तो दोस्तों “समयचक्र” सभी का एक समान नहीं रहता इसलिए तो कहते हैं कि समय बहुत ही बलवान होता है। हमें कभी भी किसी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए।

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कीजिएगा धन्यवाद।

मनीषा सिंह

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