सहानुभूति नहीं अनुभूति चाहिए- शुभ्रा बैनर्जी: Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : एक शिक्षक का सारा दिन एक कक्षा से दूसरी कक्षा,एक पीरियड से दूसरे पीरियड में ही बीत जाता है।काम तो जैसे ख़त्म ही नहीं होते।कभी पाठ्यक्रम पूरा करने का भय,कभी कॉपियां जांचना,कभी कक्षा में हो रहे मसले सुलझाना।एक ही काम हर साल करतें हैं शिक्षक,और हर साल स्वयं से यह प्रतिज्ञा भी करतें हैं कि अगली बार थोड़ा और बेहतर करेंगे,ताकि समय पर सभी काम पूरे हो जाएं।अगले साल फिर वही भागा दौड़ी,फिर वही कशमकश।

मीनाक्षी आज पैरेंट्स ओरिएंटेशन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए बता रही थी “आप माता पिता हैं बच्चों के।बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ नैतिक मूल्यों का ज्ञान भी करवाना जरूरी है।आप जैसा व्यवहार घर पर करतें हैं,वे वैसा ही सीखतें हैं।सोशल मीडिया ने उनके  दिमाग को क्षतिग्रस्त कर दिया है।अब हमारा दायित्व बढ़ गया है।”

एक मां जिसका बेटा दसवीं में था,ध्यान से सुन रहीं थीं।प्रश्न पूछने में सभी पालकों ने हिस्सा लिया पर उन्होंने कुछ नहीं पूछा।मीनाक्षी अपने व्याख्यान के दौरान जब-जब उनसे नज़र मिलाती,उनकी आंखों में कई सवाल तैरते दिखते।लगभग दो घंटे का कार्यक्रम था।सभी पालक उत्साहित थे, विद्यालय की इस पहल पर।अनेकों ने यह सुझाव भी दिया कि समय-समय पर इस तरह से पालकों के साथ शिक्षकों का मेल-मिलाप उनके बच्चों के लिए लाभदायक रहेगा।

लगभग सभी जा चुके थे,सिवाय उस महिला के जो किसी एक शिक्षक की प्रतीक्षा में थीं।मीनाक्षी ने बड़े अपनत्व से पूछा”आप को किसी से मिलना है क्या?”महिला ने संयत होते हुए कहा “जी मैम,मुझे दसवीं की सामाजिक विज्ञान की टीचर से मिलना है।सौरभ अक्सर उनकी बात करता है।”

“ओह!तो आप सौरभ की मम्मी हैं?दसवीं “ब” में है ना वह?”मीनाक्षी ने पूछा तो उन्होंने सहमति में गर्दन हिलाई।”जी कहिए,मैं ही हूं सामाजिक विज्ञान की टीचर,मीनाक्षी मैम।”मीनाक्षी ने अपना परिचय दिया तो वह महिला बहुत खुश हुई।उनकी आंखों में आंसू आ गए।उन्होंने मीनाक्षी का हांथ पकड़ कर कहा”मैम,सौरभ बिल्कुल विद्यालय नहीं आना चाहता।रोज़ उसकी क्लास टीचर का फोन आता है।

मैं बाल विकास कार्यालय में नौकरी करती हूं।तैयार तो होता है मेरे सामने,पर मेरे निकलते ही वह घर में ही बैठा रह जाता है।ना तो मुझे कुछ बताता है,ना अपनी टीचर को।पढ़ाई में बहुत अच्छा था वह आठवीं तक।अब पता नहीं क्या हो गया ,पढ़ाई से मन ही उचट गया।एक दो बार आपका नाम लेकर बताया था मुझे आपके बारे में,कि वो मिस डांटती नहीं।मैम कुछ भी करके मेरे कमजोर बच्चे की मदद कीजिए।”

मीनाक्षी एक मां का दुख समझ सकती थी क्योंकि वह भी तो एक मां थी।उसने उनसे कहा”देखिए ,सबसे पहले अपने बच्चे को कमजोर कहना बंद कीजिए।बच्चा कोई भी कमजोर नहीं होता।या तो परिस्थितियां प्रतिकूल होतीं हैं या हमारा प्रयास ही कमजोर होता है।आप बिल्कुल चिंता मत करिए।वह अब आएगा प्रतिदिन।”

मीनाक्षी रात भर सो ना सकी।वह कैसे भूल सकती थी कि शिक्षक का एक दायित्व यह भी है कि बच्चों की मानसिक अवस्था को समझें,उपचार करें।सुबह विद्यालय पहुंचते ही फोन करेगी ,ऐसा सोचते -सोचते जैसे ही वह स्टाफ रूम की तरफ बढ़ी,कुछ टीचर सौरभ के बारे में ही बात कर रहे थे।पूछने पर उन्होंने बताया कि उपस्थिति इतनी ही कम रहेगी तो बोर्ड परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं मिलेगी उसे।

यह जानकर मीनाक्षी को बहुत बुरा लगा।आज संयोग वश उनकी कक्षा में उसका पीरियड भी नहीं था।क्या करें?कैसे बात करे  उससे?सोचती‌ हुई छुट्टी के बाद बाहर निकलते हुए ही उसकी मुलाकात सौरभ से हो गई।उससे ज्यादा वार्तालाप पहले हो नहीं पाया था।चलते हुए ही मीनाक्षी ने पूछा”कैसे हो बेटा?बहुत दिनों के बाद तुम्हें देखा।कक्षा में रोज तुम्हारे बारे में पूछती रहती हूं।”

“मैम,क्या आप मुझे अपना दस मिनट दे सकतीं हैं?सौरभ ने बड़े अधिकार से जब कहा तो मीनाक्षी नरम पड़ गई।बोली” क्यों नहीं,जरूर।”सौरभ ने उसकी आंखों में देखकर पूछा “मैम ,क्या मैं बहुत बुरा हूं?क्या मैं बोर्ड परीक्षा में नहीं बैठ पाऊंगा?मीनाक्षी ने कहा”तुम्हें कैसे पता कि तुम बुरे हो या अच्छे?किसी के चेहरे पर थोड़े लिखा होता है?जो अनुपस्थित रहतें हैं,वे बुरे क्यों कहलाने लगें?”

“मैम ,सारे टीचर यही कह रहें हैं।सभी परेशान हो गए मुझसे।मैं कॉपी भी कंप्लीट नहीं कर पाता हूं।”मीनाक्षी ने फिर पूछा”बेटा,तुम परीक्षा देकर पास होना चाहते हो?”सौरभ नज़रें नीची कर बोला”हां मैम,मुझे पास होना ही है।”

“तो बस,रोज़ विद्यालय आ जाया करो।तुम्हारी कॉपियां मैं कंप्लीट कर दूंगी,तुम चिंता मत करो।मुझे लिखना बहुत पसंद है।तुम बस पढ़ाई पर ध्यान दो।”मीनाक्षी ने सहज होकर कहा।सौरभ  मीनाक्षी से और बहुत कुछ सुनने के लिए मानो तैयार था,पर मीनाक्षी के और कुछ ना पूछने पर उसने ख़ुद ही बताना शुरू किया “मैम,मेरे पापा की तबीयत ठीक नहीं रहती पिछले दो सालों से।घर की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं क्योंकि अब पापा काम पर ध्यान नहीं दे पाते।मम्मी सुबह अपने ऑफिस चली जातीं हैं।पापा अपने से चल फिर नहीं पाते।मुझे उन्हें अकेले घर में छोड़ना अच्छा नहीं लगता।तभी मैं विद्यालय भी नहीं आ पाता,जब आता हूं तो सारे टीचर के सवालों से चिढ़ होने लगती है।आने का मन नहीं करता बिल्कुल।”

सौरभ एक सांस में बोले जा रहा था,मीनाक्षी ने जैसे ही कहा ,”क्या तुम्हारे पापा????”मीनाक्षी की बात बीच में ही काटकर वह बोला”आपसे नहीं छिपाऊंगा,पीते भी हैं वो।”

मीनाक्षी ने यह प्रश्न नहीं सोचा था पूछने के लिए पर सौरभ ने खुद ही सब एक सांस में बता दिया।

मीनाक्षी को अब अपने शिक्षक होने का प्रथम दायित्व समझ में आ रहा था।सौरभ की ओर देखकर उसने कहा”बेटा,जीवन किसी के लिए भी आसान नहीं है।तुम यह मत सोचो कि तुम्हारे साथ क्या-क्या हो रहा है?तुम बस यह सोचो कि कैसे तुम परिस्थितियों को बदल पाओगे।अपने पापा की विवशता जब तुम देख पा रहे हैं तो तुमसे ज्यादा समझदार और कौन होगा?मां की घर चलाने की पीड़ा भी तुम समझते हो।

अभी तुम्हारे पास इन चुनौतियों से निपटने का कोई साधन नहीं।तुम बस यह सोचो कि तुम इन परिस्थितियों को बदल दोगे।पापा काम ना कर पाने और ना कमा पाने का दंश सहन नहीं कर पा रहें, इसलिए शायद पीने लगे हैं। मम्मी घर चलाने में बेहाल हो रही होगी तभी तुम्हें डांट देती है।अपने पति की बीमारी और बेरोज़गारी से वह ख़ुद भी बहुत तकलीफ़ में है सौरभ।तुम किसी भी हाल में बोर्ड परीक्षा में बैठने से मत चूकना।इससे किसी का भला तो नहीं होगा बल्कि और बुरा होगा।समाज तुम्हारी मां को ही ताना देगा कि पति की लाचारी की वजह से बेटे को संभाल‌ नहीं पाई।तुम उन्हें और तकलीफ़ मत देना।बस रोज़ विद्यालय आओ,कॉपियां मैं पूरी करवा दूंगी।”

सौरभ मीनाक्षी का हांथ पकड़ कर बोला”थैंक यू मैम,आपने आज मुझे ख़त्म होने से बचा लिया।मैं आज ही घर छोड़कर चला जाना चाहता था।थक गया था घर की विषम परिस्थितियों से लड़ते-लड़ते।मम्मी से नफ़रत करने लगा था मैं। कभी समझने की कोशिश ही नहीं की उनकी हालत।बहुत दुख दिया है मैंने उन्हें।वो मुझे माफ़ कर देंगी ना?

” क्यों नहीं करेंगी?तुम मांगकर तो देखो।”मीनाक्षी से बात करके सौरभ काफी सहज हो चुका था।ऑटो में बैठते हुए मीनाक्षी ने देखा सौरभ दौड़ते हुए आए रहा है, चॉकलेट देना भूल गया था मीनाक्षी मैम को।मीनाक्षी ने भी आज चॉकलेट पाने लायक काम किया था।अपने शिक्षक होने के दायित्व को निभाने के लिए प्रतिबद्ध थी वह।ख़ुद से आज एक वादा किया उसने कि पाठ्यक्रम पूरा करवाने के साथ-साथ बच्चों के घायल‌ अबोध मन को यथासंभव संजीवनी देती रहेगी।बच्चों को सहानुभूति नहीं अनुभूति की जरूरत होती है।

शुभ्रा बैनर्जी

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