शगुन* – *नम्रता सरन “सोना”

सारा घर सजा हुआ था… रंग बिरंगे फ़ूलों से और झिलमिलाती लाइटिंग से…हर तरफ़ चहल-पहल…हँसी के फ़व्वारे…. नाच गाना… पकवानों की खुशबू से वातावरण महक रहा था…. और क्यों न हो… घर के इकलौते बेटे के विवाह की बेला थी…

अमन , सरोजिनी और प्रशांत का इकलौता बेटा था…. बहुत ही होनहार और आज्ञाकारी पुत्र…. कल ही सोनाली से उसका विवाह सम्पन्न हुआ था…. घर मे नई बहू का आगमन हो चुका था….नवेली दुल्हन सोनाली का ससुराल में पहला दिन था…..विवाह के पश्चात होने वाली रस्में पूर्ण की जा रही थी…. परात मे अँगूठी ढूँढना…कंगन डोरा खोलना..गीत में पति पत्नी का एक दूसरे का नाम लेना…. हल्दी के हाथे छापना… यानि कि सभी शुभकार्य किए जा रहे थे… ताकि वर-वधू एक दूसरे को समझने का और खासकर नवविवाहिता को परिवार मे घुलने मिलने का अवसर मिल सके..।

मंगल गीत और ढोलक की आवाज़ मे सोनाली की नज़रें कुछ ढूँढ रही थी….।

दरअसल सोनाली को विवाह के पूर्व ही बताया गया था कि अमन की सबसे छोटी बुआजी रजनी बालविधवा हैं और अमन के परिवार के साथ ही रहतीं हैं…. सोनाली को घर बड़ी बूढी महिलाओं ने खास हिदायतें थीं कि, किसी भी पूजा या शुभकाम के बाद एकदम उनके पैर मत छूना…।जहाँ तक हो सके उनसे दूरी ही बना कर रखना… सुबह सुबह उनका चेहरा मत देखना… इत्यादि…

सोनाली ने पूछा भी था कि “ऐसा क्यों ? इसमें उनका क्या दोष है”…

“चुप रह नासमझ…. जितना कहा है उतना कहना मान…ज़्यादा समझदार मत बन… अपशकुन होता है यह …”वृद्ध महिलाओं ने डांट कर चुप करा दिया था।

लेकिन सोनाली पढ़ीलिखी परिपक्व विचारधारा की लड़की थी… इन दकियानूसी बातों में उसका बिल्कुल विश्वास नहीं था।

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शाम होते होते सारी रस्में पूरी हो चुकी थीं।सोनाली को अभी तक रजनी बुआजी कहीं भी नज़र नहीं आईं थीं।



शाम को अमन के परिवार की तरफ से प्रीतिभोज का आयोजन रखा गया था… सो सासु माँ ने सोनाली से कहा -” सोनाली कुछ देर आराम कर लो…रात आठ बजे तक तैयार हो जाना… ब्यूटीशियन सात बजे तक आ जाएगी… जाओ थोड़ा रिलेक्स हो लो….

सोनाली अपने कमरे में आ गई।बहुत थकान महसूस हो रही थी… सो लेट गई… और लेटते ही उसे नींद लग गई।

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माँ.. शायद मैं वो चुनरी वहीं भूल आई हूँ… जो आज रात के कार्यक्रम में मुझे ओढनी थी…माँ…माँ…ओह… अब क्या करूँ… मैचिंग की ओढ़नी कहाँ से लाऊं माँ….सोनाली मोबाइल से अपनी माँ से बात कर रही थी… बहुत हड़बड़ा रही थी…शायद मैचिंग की चुनरी मायके में छूट गई थी…

ब्यूटीशियन आ चुकी थी… सोनाली की आँखों में आँसू थे…नई जगह नए लोग, किससे कहे….ये लोग क्या सोचेंगे… कि मै कितनी लापरवाह हूँ…

इन्हीं ख्यालों में गुम सोनाली नज़रें झुकाए बैठी थी…. तभी उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा… सोनाली एकदम चौंक गई…. सामने लगभग पैंतीस वर्षीय महिला खड़ी थी…. हल्के रंग की साड़ी….माथे पर चंदन का टीका… गले मे तुलसी की माला पहनी , सुंदर नैन नक्श की वह महिला बिल्कुल देवी के समान प्रतीत हो रहीं थीं।

सोनाली उठकर पैर छूने के लिए झुकी…लेकिन उन्होंने बीच मे ही रोक लिया और गले से लगा लिया…।

सोनाली समझ चुकी थी कि यही रजनी बुआजी हैं।

ये लो बेटा….. बुआजी ने कहा…और सोनाली को एक पैकेट थमा दिया…

सोनाली ने खोला….. तो उसका मुँह खुला का खुला रह गया…. बिल्कुल वैसी ही ओढ़नी थी…जैसी उसे आज पहनना थी…साथ मे मैचिंग के गहने भी थे….

बुआजी…. सोनाली बोली…”ये सब”…. 

“तुम्हारे लिए है…..” बुआजी ने कहा…।

बुआजी…।।कहकर सोनाली रजनी के सीने से लिपटकर ऐसे रोने लगी मानों अपनी माँ के गले लगी हो…।

बेटा …जल्दी तैयार हो जाओ..।समय हो गया है…. रजनी ने सोनाली के आँसू पोंछते हुए कहा..।

जी बुआजी…. सोनाली बोली….

रजनी बाहर की तरफ़ जाने लगी…।सोनाली ने प्यार से उनका हाथ थाम लिया और चूमकर धीरे से बोली….”माँ”….

रजनी ने पलटकर उसे छाती से लगा लिया….. और बहुत धीमे स्वर मे बोली….”किसी से कुछ मत कहना”…

सोनाली ने इशारे मे हामी भरी…..

रजनी जल्दी से कमरे से बाहर निकल गई….

सोनाली ने दरवाज़ा बंद कर लिया

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रात को सोनाली एक खूबसूरत जोड़ा और लाल चुनरी पहने सीढियों से नीचे उतर रही थी…..

सभी की निगाहें उसी पर टिकी थी…बेहद खूबसूरत लग रही थी सोनाली…

लेकिन सोनाली तिरछी नज़रों से उस बंद कमरे को देख रही थी…. जिसकी खिडक़ी पर रजनी बुआ खड़ीं , उसे प्रेमपूर्ण निहार रहीं थीं…….।

सोनाली ने नीचे उतरकर सबसे पहले बुआजी के पैर छुए, रजनी बुआ की आंखों से अविरल अश्रु धारा बह रही थी, उन्होंने सोनाली को गले से लगा लिया।

 

*नम्रता सरन “सोना”*

भोपाल मध्यप्रदेश 

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