मेरी माँ – सुषमा मिश्रा

बात उन दिनों की है जब मैने  नयी नयी सरकारी नौकरी की शुरुआत की थी। गणित  की शिक्षिका होने के कारण मुझ पर काम का बोझ कुछ ज्यादा ही था। प्रधानाचार्या जी ने मेरे कार्य को हल्का करने के लिए मुझे कक्षा छः की हिन्दी विषय अध्यापन हेतु दे दिया। सच कहूं तो वह कक्षा मेरे लिए बहुत ही आनन्दमय रहती थी, छोटी छोटी और मन की सच्ची बालिकाओं के साथ कक्षा का समय कब पूरा हो जाता था मै जान ही नहीं पाती थी। मैं स्वयं जब कक्षा छः में पढ़ती थी तो मेरी हिन्दी विषय की शिक्षिका बहुत अच्छी थी और मैं उनकी प्रिय शिष्या थी। शायद  यही कारण था कि उस कक्षा में मैं अनजाने में ही अपनी हिन्दी शिक्षिका का अनुसरण करने लगती थी।

                         कभी कविता में अन्ताक्षरी,कभी किसी पाठ को नाटक के रूप में बच्चों की सहभागिता के माध्यम से पूरा करवाना, कभी सुलेख प्रतियोगिता का आयोजन तो कभी पाठ के अंशो को बिना अटके सही सही वाचन। इन सभी से मेरे हृदय को बहुत खुशी तो  मिलती ही थी साथ ही बच्चें भी कक्षा को विषय ज्ञान के साथ साथ बहुत रूचि के साथ निभाते थे।

                           समय चक्र आगे बढ़ता गया और शैक्षिक  सत्र अपनी  पूर्णता की ओर बढ़ चला था। मातृ दिवस के अवसर पर बच्चों ने अपनी माँ को किस प्रकार से खुशी दी इसे वे सभी मेरे साथ बांट रहीं थी, उनके चेहरे पर एक मासूम सी खुशी झलक रही थी, तभी मैने अपने पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार बच्चों से अपनी हिन्दी की कापी में ” मेरी माँ ” पर एक छोटा सा निबंध लिखने को कहा। विषय सुनते ही बच्चों की आंखों में चमक आ गई और सभी अपनी अपनी माँ के प्यार को अपनी कापी पर अंकित करने लगी, मेरी निगाहें सभी बच्चों पर थी तभी मैने महसूस किया कि किनारे पर बैठी बच्ची कुछ भी नहीं लिख रही है और अपनी कलम से  यूँही अपनी कॉपी पर लकीरे खींच रही थी। मैं तुरत उसके पास पहुंची    और मेरा अनुमान सही निकला और वह बच्ची भी मुझे अपने निकट देखकर घबड़ा गयी, मैने बहुत प्यार से उससे पूछा कि आप   क्यों नहीं लिख रही है मगर वह चुप रही इस पर मैने पुनः पूछा तो उस बच्ची की आंखों से मोती स्वरुप आंसू टपकने लगे, मैं मन ही मन  सोंचने लगी कि कहाँ गलती हो गई और अपनी कुर्सी पर वापस बैठ गई।



                             अब तक सभी बच्चों का ध्यान भी उसी बच्ची पर थी, मैने कक्षा की ओर मुखातिब होकर कारण जानने का प्रयास किया तो एक बच्ची ने बहुत धीरे से बताया कि मैम इसकी मम्मी मर गई है। मै निःशब्द थी मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं इस छोटी सी बच्ची को किन शब्दों में ढाढस बधाऊं।

                             मैने उसे अपने पास बुलाया उसके  आंसू पोछे और बहुत प्यार से उससे पूछा कि बेटा तुम्हारा नाश्ता कौन बनाता है जवाब मिला मेरी दादी मैने पुनः पूछा तुम्हारे बाल कौन बनाता है जवाब फिर वही मेरी दादी इसी प्रकार और भी सवालों का उत्तर मेरी दादी ही आया मगर अब तक वह सामान्य हो चुकी थी और मैं भी अपराध बोध से बाहर निकल चुकी थी। मैने हंसते हुए और बच्चों की ओर मुखातिब होकर कहा कि ठीक है आप सभी अपनी मम्मी, दादी, या नानी जो भी आपको प्यार करता है और आपकी मदद करता है उस पर निबंध लिखिये क्योंकि वही आपकी माँ है।

                            मैने देखा कि उस  बच्ची ने अपनी सीट पर जाकर  खुशी खुशी अपनी कापी पर लिखना शुरू कर दिया था ,मगर मैं सोंच रही थी कि कितना दर्द इस बच्ची के मन में था ।साथ ही एक हृदयस्पर्शी संदेश मुझे भी मिला कि हर विद्यार्थी की पारिवारिक एवं मानसिक स्थितियां अलग अलग होती हैं, एक शिक्षिका को इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए ,तभी वह अपने सम्मानित पद के साथ न्याय कर सकती है।

आपको मेरा संस्मरण कैसा लगा, मुझे आपकी प्रतिक्रिया का इन्तजार रहेगा।

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