सच्ची दोस्ती – ममता गुप्ता

आज भी याद हैं वो दिन जब चारों तरफ कोरोना वायरस ने पैर पसार रखा था … चारों तरफ मौत का कोहराम मचा हुआ था !  अपने अपनो से दूर हो गए , घरो में कैद न किसी के हाल चाल पूछ सकता था औऱ न ही किसी के दुःख में शामिल हो सकता था … ऐसा लगा उस वक्त जैसे इंसान सिर्फ स्वयं के प्रति स्वार्थी हो गया था ।। 

 

सब कुछ त्यों का ज्यों ठहर सा गया था … इसी कोरोना काल  मे रोहित के पिता मोहनलाल जी की तबीयत अचानक से बिगड़ गई थी । रोहित भी दूसरे शहर में नोकरी करता था इस वजह से साथ नही रहता था । 

 

बस मोहनलाल जी औऱ उनकी धर्मपत्नी सरला जी एक दूसरे का खयाल रखते थे … मोहनलाल जी की अचानक तबियत खराब होने की वजह से सरला जी ने अपने बेटे रोहित को फोन किया औऱ पिता की तबियत के बारे में बताया …! साथ ही कहा कि तेरे दोस्त महेश को भी कॉल किया पर उसने उठाया नही … लेकिन रोहित भी उस समय विवश था … सभी तरह के आने-जाने वाले साधन बन थे। रोहित अपने पिता के पास तुरंत नही पहुँच सकता था … 

 

अपने आप को उतना मजबूर रोहित ने कभी नही पाया जितना आज वह मजबूर था । आखिर करे तो क्या करे..? इस कोरोना काल मे कौन करेगा मेरे परिवार की मदद !! यह सोचकर रोहित परेशान होने लगा , तभी उसके दिमाग मे अपने बचपन के मित्र महेश का ख्याल आया ।।

 

महेश और रोहित दोनो ही बचपन के मित्र थे। दोनो की दोस्ती की लोग दाद देते थे । क्योंकि दोनों मिलकर पूरे मोहल्ले में उत्पात मचाते थे , दोनो का दोस्ताना एक दूजे पर मर मिटने वाला था ।। 

समय जैसेजैसे गुजरता गया , महेश औऱ रोहित दोनो ही अलग हो गए ।। अपनी अपनी गृहस्थी में लीन हो गए … रोहित की नोकरी लग गई वो शहर में शिफ्ट हो गया औऱ महेश ने अपने पिता का कारोबार संभाल लिया ।।

 

व्यस्तता के कारण दोनों में बातें कम होने लगी थी … 

रोहित ने अपने दोस्त महेश को फोन किया काफी देर बाद महेश ने कॉल उठाया ।। रोहित ने अपने पिता की तबियत के बारे में बताया । यार पापा की तबियत बहुत ही खराब है , उन्हें संभालने वाला कोई नही है माँ अकेली हैं औऱ बहुत घबराई हुई भी हैं । क्या तू मेरे पापा को हॉस्पिटल ले जा सकता हैं …?

 

यार तेरे से हाथ जोड़कर विनती हैं कि – “पापा को हॉस्पिटल ले जा सकता हैं क्या …? तू जानता हैं इस भयंकर बीमारी में कोई साथ नही देगा …! बस तेरे ही ऊपर विश्वास है कि तू मेरी मदद करने से मना नही करेगा। रोहित ने रुआई सी आवाज में कहा ।।

 



पर यार इस कोरोना में घर वाले नही जाने देंगे बाहर , तू तो समझ ही सकता है न …?? और कहा कि थोड़ी देर में बात करता हु कह कर कॉल कट कर दिया ।।

 

कुछ देर बाद , उदास मन से रोहित ने माँ को कॉल किया और कहा , माँ महेश से बात न हुई , मैं जल्दी ही कुछ और करता हु ताकि पापा को अस्पताल ले जाया जा सके … इतने में 

 

रोहित से माँ ने कहा – अरे बेटा चिंता की बात नही है , महेश का मुझे कुछ देर बाद कॉल आया था जैसे ही मैने तेरे पापा की तबियत के बारे में कहा वो तुरंत आया और महेश ने आते ही कार से अस्पताल ले आया और जल्द से जल्द इलाज भी करवा दिया ।। आज लगता है मेरे 1 नही 2 बेटे है …

 

रोहित ने आंसुओ से भरे मन से महेश को कॉल किया और कहा , यार तू बड़ा ही कमीना है , मुझसे कुछ और कहा और किया कुछ और … 

 

अरे यार!! कर दिया ना तूने पल भर में ही पराया । ” गर तू मुझे अपना समझता तो मेरे से हक से कहता ऐसे विनती नही करता।जानता हूँ !! ” तू अब शहरी बाबू बन गया है , एकदम बड़ा आदमी इसलिए इतनी बड़ी बड़ी बाते कर रहा था …!! 

 

तू फ़िक्र मत कर यार । तेरा ये दोस्त अंकल जी को कुछ नही होने देग , अब अंकल भी ठीक है ।। तू चिंता मत कर मै अभी ज़िंदा हूँ ।। बस जरा मजे ले सकू इसीलिए काल कट किया … अब आने के बाद बड़ी पार्टी लगेगी ।।

 

रोहित को गर्व था कि उसे जीवन मे ऐसा मित्र बनाया जो कठिन से कठिन परिस्थितियों व मुसीबत में  हमेशा साथ देता हैं ।। 

 

शिक्षा-जीवन मे मित्र ऐसे बनाओ जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी साथ न छोड़ें ।।

 

ममता गुप्ता

मौलिक व स्वरचित

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