सच्चा साथ – लतिका श्रीवास्तव 

  नई नवेली दुल्हन मानसी  सौरभ के साथ जैसे ही अपनी सासू मां सुनंदा देवी के चरण स्पर्श करने के लिए झुकी ,सुनंदा देवी ने अपने पैर तत्क्षण तेजी से पीछे हटा लिए यह सौरभ की तेज नजरों से अछूता नहीं रहा….मानसी की खूबसूरत आंखों के अनमोल  आंसू उसके हाथो के आश्वासन भरे स्पर्श से पलकों में ही ठहर से गए थे।तब तक सौरभ के पापा ने आगे बढ़ कर नई बहू मानसी का उत्साह से स्वागत किया और पूजा कक्ष में ले जाकर उसके हाथ से नवीन खुशियों का दीप प्रज्वलित करवाया और थोड़ी देर में आयोजित होने वाले भव्य बहू भोज के लिए तैयार होने हेतु मानसी को उसके सुसज्जित कक्ष में भिजवा दिया…

मानसी अपने सुसज्जित कक्ष में बैठ कर उस दिन में पहुंच गई जब उसके अनाथालय में आयोजित एक बृहद परिचर्चा ,” नारी की दशा और दिशा :वर्तमान संदर्भ ” में शहर की प्रतिष्ठित सामाजिक संस्था  ” पुकार” की संस्था प्रमुख सुनंदा देवी अपने इकलौते पुत्र सौरभ के साथ मुख्य अतिथि के रूप में आई थीं।मानसी ने परिचर्चा के विषय पर खुल कर तथ्यात्मक रूप से अपने अकाट्य तर्क प्रस्तुत किए थे और निष्कर्ष वाक्य के रूप में कह दिया था कि “…. नारी की दशा सुधारने और उनकी जिंदगी की दिशा बदल देने के वादे करना अलग है और व्यवहारिक रूप से अमल कर पाना अलग…जैसे..हम अनाथालय की युवतियों की जिंदगी संवारने के वादे करना अलग है और वास्तव में उनका हाथ थाम कर समाज की मुख्य धारा में जोड़ने का साहस कितने प्रतिष्ठित परिवार के युवक और उनके माता पिता कर पाएंगे ये उल्लेखनीय और विचारणीय है…”



 मानसी के बिंदास और तथ्यपरक विचार ,उसका आत्मविश्वास,संतुलित सधी मर्यादित शब्दावली,सादगी और विनम्रता से सौरभ प्रभावित होता चला गया और परिचर्चा के अंत में प्रथम पुरस्कार प्राप्त विजेता मानसी को ट्रॉफी देते हुए उसके दिल में जो निश्चय दृढ़ता से आया उसे अपने मुख्य अतिथि भाषण में स्पष्ट होकर उसने मानसी का हाथ स्वयं थामने की घोषणा कर दी…अगर मानसी की सहमति हो…!।

“सुनंदा देवी और मानसी दोनो सौरभ के निश्चय को सुनकर अचंभित थे।सुनंदा देवी की नाराज़गी सार्वजनिक रूप से प्रकट हो चुकी थी,।सारे समाचार पत्रों ने प्रमुखता से सुनंदा देवी सौरभ और मानसी की खबरे फोटो सहित हेडलाइन में छापी …विवाह से पहले मानसी ने सौरभ से मुलाकात करके अपनी अनाथ पृष्ठभूमि और मां सुनंदा देवी की नाराज़गी के दृष्टिगत उसे अपना निश्चय बदलने के लिए दबाव भी दिया था…

पर सौरभ खुले प्रगतिशील विचारों का ही नहीं विचारों को मूर्त रूप देने को भी संकल्पित युवा था वह मानसी से विवाह कर हर मुश्किल में उसका सच्चे दिल से साथ निभाने का सच्चा संकल्प कर चुका था..।

आज पहले ही दिन अपनी मां के मानसी के प्रति किए गए व्यवहार से वो आहत था ,मानसी को उसके कक्ष में तैयार होने के लिए पहुंचा कर वो सीधे अपनी मां के कक्ष में गया और अपनी मां सुनंदा देवी के हाथो को पकड़ कर उनके पास बैठ ही गया,”मां आप मुझसे बहुत नाराज़ है क्या!”सौरभ की बात सुनते ही सुनंदा देवी के दिल का रुका हुआ ,भरा हुआ गुबार फूट पड़ा,”सब कुछ जान कर भी अंजान बन रहा है !



नही अब मेरा क्या हक है तुझ पर नाराज़ होने का !मुझसे पूछा भी नही एक बार तूने और अपनी शादी का निर्णय कर लिया …अरे तू मेरा इकलौता पुत्र है कितने अरमान थे मेरे…पर तुझे मेरी क्या परवाह तूने तो अपने मन की  कर ही ली ना…एक अनाथ को बहु बना लाया …ना घर का पता ना जात पात का…. ना माता पिता कुल गोत्र का!…समाज में कितना नाम है मेरा अब सबको मैं क्या मुंह दिखाऊंगी….कहते कहते सुनंदा देवी रो पड़ी..सौरभ ने मां की गोदी में सिर रख दिया,” मां तुझे अपने बेटे पर भरोसा है कि नही ये बता!!तूने ही तो मुझे अपनी जिंदगी के अहम फैसले खुद ही लेना सिखाया है ,फिर आज मेरे लिए इस अहम फैसले पर इतना गुस्सा क्यों?

अविश्वास क्यों? मां सुनंदा के अनाथ होने में उसकी क्या गलती है,वो बेहद विनम्र सुशील लड़की है और फिर उसे अभी तक आप जैसी दुलार करने वाली प्यारी मां की स्नेह छांव भी कहां मिल पाई है ,मां मुझे यकीन है वो आपकी सारी अपेक्षाओ पर खरी उतरेगी…और ..समाज का क्या है मां या तो वो बहु बेटे के प्रति आपकी नाराजगी को भुना कर मसालेदार  खबर के रूप में परोसे या आपकी प्रसन्नता भरी सहमति को आपकी समाज सुधार की दिशा में एक   उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर आपको मसीहा बना दे ये आपके ऊपर है….।है कि नहीं मां आप बताओ..!” कहते हुए सौरभ की आंखों में आंसू आ गए ,सुनंदा देवी की भी सारी नाराजगी अपने लाडले पुत्र की सुलझी हुई बातो से दूर हो गई …..

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वो तुरंत खड़ी हो गई  “बेटा मुझे तेरे और तेरे इस सार्थक साहसिक कदम पर गर्व है !चल बेटा, मुझे मेरी बेटी मानसी के पास ले चल अभी तो मुझे उससे माफी भी मांगनी है और खुले दिल से स्वागत करना है,”और वो सौरभ के साथ चिंतित आहत मानसी के पास पहुंच गई “बेटी मुझे माफ कर दे तेरा दिल दुखाया..”.उन्होंने मानसी को अपने सीने से लगा लिया….और मानसी इस अप्रत्याशित सुखद परिवर्तन से भाव विवहल हो उनके सीने से लग गई ,उसे ऐसा लगा मानो जिंदगी में आज उसे अपनी मां मिल गई है ….वो निहाल थी सौरभ जैसे जीवन साथी पर जिसने उसकी व्याकुलता चिंता और उलझन को ऐसी ममता की छांव भी दिला दी और जिंदगी भर का सच्चा साथ भी।

सादर

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