*बचपन * – अनु ‘इंदु’

” अरे कानन तुम ? आज़ इतने दिनों बाद याद आई मेरी ? जब से यहाँ से मॉडल टाउन में शिफ्ट हुई हो , तुमने तो मिलना ही छोड़ दिया । चलो दिवाली के बहाने से सही तुम आई तो सही । बहुत सुँदर है बेटी तुम्हारी , कितनी बड़ी हो गई । जब तुम यहां से गई थी , यह मुश्किल से चार महीने की थी । अब तो चलने लग गई है,आओ अंदर बैठ कर बात करते हैँ

इतना कह कर रितु उसे अंदर बेडरूम में ले गई । उसकी बेटी आराध्या और रितु की बेटी रीमा दोनों हमउम्र थीं । दो साल की हो गईं थीं , दोनों आपस में खेलने लगीं । थोड़ी देर बाद कमला चाय ले आई , साथ में कुछ नमकीन भी । इतने में कानन की बेटी आराध्या अपनी मम्मी के पास आकर खड़ी हो गई । दे दो इसे भी , इसमें मिर्च नहीँ है” रितु ने कहा । आराध्या को कानन ख़ुद चम्मच से नमकीन सेवियाँ खिलाने लगी ।बार  बार वो आराध्या को टोक रही थी । आराध्या बार बार प्लेट से ख़ुद लेना चाहती थी मगर कानन उसे चम्मच से खिला रही थी । रितु से देखा नहीँ गया । वो अंदर गई और एक मैट ले आई । बेड रूम में ही एक तरफ़ उसने मैट बिछा दी,  दोनों बच्चों को प्लेट में अलग अलग नमकीन दे कर बिठा दिया । कानन ने देखा कि मजे से दोनों अपने हाथ से खाने का आनंद ले रहीं थीं , खाते खाते कुछ गिर भी जाता तो वो ख़ुद ही उठा कर खा लेती । “तुम्हें नहीँ पता रितु , यह कुछ नहीँ खाती , बस बिखेर देगी सब कुछ “,कानन ने कहा । “मैं भी तुम्हारी तरह सारा दिन बच्चों में ही लगी रहती थी । लेकिन जब से मम्मी ने मुझे समझाया है , मुझे अक्ल आ गई है” ,


रितु ने कहा ‘”अक्सर हम अपनी सोफिस्टीकेशन के चक्कर में बच्चों से इनका बचपन छीन लेते हैँ । क्या होगा अगर थोड़ा बहुत बिखेर देंगे तो ? साफ हो जायेगा । मगर बच्चे को तृप्ति ख़ुद खा कर ही होती है । बच्चों को पहले खिलाने की बजाये अपने साथ बिठा कर अलग प्लेट में डाल कर उनको खाना दें , वो सब कुछ जो आप खा रही हैं , वही उसको भी थोड़ा थोड़ा डाल कर दें । बच्चा अपने आप आपको खाता देख कर वैसे ही खाना सीख जायेगा धीरे धीरे । उन्हें हर चीज़ खाने की आदत भी पड़ेगी । क्यूंकि बच्चे अपने अनुभव से सीखना चाहते हैँ । उन पर नज़र ज़रूर रखें मगर उन्हें फ्री छोड़ दें”, यह कह कर रितु चुप हो गई । कानन बड़े ध्यान से उसकी बातें सुन रही थी और देख रही थी कि आराध्या ने प्लेट की सारी नमकीन खा ली थी । फिर रीमा ने बड़ी सी लॉन्ड्री बास्केट में रखे कई तरह के खिलौने उसे निकाल दिये दोनों मजे से खेलने लगीं ।

“मैं तुम्हें एक किस्सा सुनाती हूँ “रितु बोली। थोड़े दिन पहले हम लोटस टेंपल देखने गये थे । वहाँ ऊपर जाने की बहुत सी सीढ़ियां थी । रीमा ख़ुद सीढ़ियां चढ़ने के लिये मचल रही थी , मगर जल्दी के चक्कर में उसके पापा ने उसे गोद में उठाया और मंदिर की सीढियां चढ़ कर जैसे ही जूते रख कर फ्री हुये तो रीमा वहाँ नहीँ थी । हम घबरा गये चारों तरफ़ ढूंढ़ा मगर नहीँ मिली । हम पागलों की तरह उसे ढ़ूँढ रहे थे कि अचानक उसके पापा की आवाज़ आई “वो देखो “मैंने चौंक कर उधर देखा जिधर  वो इशारा कर रहे थे । रीमा नीचे से ऊपर सीढियां चढ़ रही थी । पचास साठ सीढियां पहले वो नीचे उतरी होगी और फिर दोबारा सीढ़ियां चढ़ कर ऊपर आते देख हम हैरान रह गये । दौड़ कर उसके पापा ने उसे गोद में उठा लिया । आँखों में आँसू लिये वो उसे चूमते ही जा रहे थे । “तुमने तो हमारी जान ही निकाल दी थी “उन्होंने रीमा को मेरी गोद में देते हुये कहा । पसीने से लथपथ रीमा मेरे सीने से लग गई”  । कानन को बात समझ में आ गई थी । उसने आराध्या को आवाज़ दी । “आओ बेटा , घर चलें “,तभी देखा कि रीमा के पीछे पीछे वो भी सारे खिलौने वापिस बास्केट में डाल रही थी ।

अनु ‘इंदु’

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