रौनक – कंचन श्रीवास्तव

वर्षों से तड़पती भीतर से टूटी मां को कैसे भी करके पहले जैसे बनाना ही होगा चाहे जो भी हो जाए बहुत हो गया तड़पना रोना परेशान रहना।

मैं देखती हूं हर रोज वो तिल तिल होके मर रही हैं 

 मिल बैठकर बात तो करनी ही होगी भले  थोड़ी नोक झोंक  हो  पर हम समझते हैं कि बड़ों के रहते सब ठीक हो जाएगा।

वैसे भी ऐसा पहली बार तो  हुआ नहीं, जहां तक उसे याद है ये तीसरी ,चौथी बार था पर वो गलतफहमियां थी इसलिए सब दूध का दूध पानी का पानी हो जाता था और इस बार  बेबुनियाद इल्ज़ाम लगाकर घर से जाने को कहा गया।

मजे कि बात तो ये है कि सच्चाई नहीं पता बस उड़ती उड़ती खबर मिली थी कि ऐसा हुआ जो कि  सब कुछ खत्म करने के लिए काफी रहा।

पर नैना ने गर्मी  छुट्टी की बात कर तेज रफ्तार वक्त से धुंधली होती यादों को तरोताजा कर दिया।

ऐसा नहीं कि जगह और नहीं है कोई जाने की ।मसला ये है कि वो आजादी , अपनापन,और भाव नहीं मिलता कहीं जाने पर जो मां के यहां।

बात सही भी है बना बनाया खाना ,लगा लगाया बिस्तर और घूमना जैसी सुविधा एक लड़की को जितना अपने मायके में मिलता है उतना और कहीं नहीं।

और सभी जगह थोड़ा संकोच थोड़ा खटना,और संयम इस सबके साथ रहना होता है।


पर स्थिति ही ऐसी हो गई कि हाथ मल के रह जा रही  कुछ कर  नहीं पा रही ।

करें भी कैसे जहां दिन में चार बार बात होती थी वहीं एकदम से बंद जो हो गई।

यही तो दूरियों का कारण बना कि आपस में संपर्क ही टूट गया।

और आज नैना ने जैसे दुखती रग पर हाथ रख दिया हो।

पर कहते हैं ना जो होता है अच्छा ही होता है।

मां को हिलाते हुए उसने कहा मां क्यों न एक फोन अननोन नम्बर से ट्राई किया जाए हो सकता है कुछ मामला ठंडा पड़ गया हो।

जिस पर अपनों के लिए छटपटाती सुगंधा ने एक पल भी गंवाए बिना हां में सिर हिला दिया।

और  जब मां ने फोन उठाया तो अपनी सौगंध धराते हुए फोन नं काटने की बात कही।


और अपने मन की सारी बात जो अब तक उसके भीतर उबल रहा था कह डाली फिर बाद में मां ने भी कुछ ऐसी बातें बताई जो उसे लगा की हां मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि घर अब मां बाप भाई बहन का ही नहीं बल्कि भाभी और भतीजी भतीजों का हो गया है और सब की सोच अलग अलग होती है लिहाजा उसने माहौल को ठंडा करने के लिए  माफी मांगी जिसे 

जिसे पीछे बैठा स्पीकर पर बड़ा भाई सुन रहा था उसकी आंखें भर आईं।

और उसने कहां जो हुआ उसे भूल जाओ – बच्चों की छुट्टियां हो गई हो तो आ जाओ।

ये सुन मानों उसे जिंदगी मिल गई हो और वो फूट फूट कर रो पड़ी।

और सिसकते  हुए बोली अपने खून से बिछड़कर रहना कितना कठिन होता है कोई हमसे पूछे।

ये तो वो ताकत  हैं जो तमाम झंझावातों से लड़ने की शक्ति देता हैं।

भले 

लाख लोग साथ हो पर  रौनक तो चेहरे पे अपने खून के रिश्तों से ही आती है।

जो की नैना  भाई से बात करके मां सुगंधा के चेहरे पर महसूस कर रही है।

स्वरचित

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