सौगात – दीपा साहू “”प्रकृति”

इतनी लंबी उम्र गुजर गई और कृष्ण तुम वहां बैठे – बैठे मुस्कुराते रहे और बस देखते रहे।हाँ मानती हूँ तुमने मुझे हमेशा मुसीबतों से बचाया है।पर कभी तुम्हें मेरे अंदर निरन्तर पलते दर्द पर कभी दर्द नहीं होता ? हाँ कृष्ण तुम्हें नहीं होता! तुम बस बाँसुरी बजाते अपनी लीला रचते रहो।क्या मेरे कर्म इतने बुरे थे कि इतनी लंबी सज़ा अनवरत चलती ही जा रही है ? बोलो न कृष्ण बोलो कृष्ण बोलो क्यों नहीं बोलते तुम क्यों पत्थर की मूरत में पत्थर बने बैठे रहते हो? आखिर क्यों ? “कृति” भगवान कृष्ण की मूरत से झगड़ते उनसे बाते कर रही थी।

आंसुओ  की धार धर ,

सुर्ख कपोलों में निर्झर गिरते,

समुन्दर का वो खारा पानी लहर् बन

श्वेत लकीर दिवस साँझ बनते ।

 

   खारे समुन्दर में झील का मीठा पानी कैसे मिले समुन्दर की गहराई में सबकुछ खो चुका है।गहरे अवसाद में “कृति” ने एक नवजात को जन्म दिया।उसके पालन पोषण में खुद को रमा दिया।वक़्त तो गुज़र गया पर

मन का सूनापन हर वक़्त साथ रहा।उस अकेलेपन में जिसमें पति का साथ होना था वो तो कृति का था ही नहीं।उसने उसे कभी चाहा ही नहीं।बेड शेयर के अलावा रिश्ता ही क्या था।हाँ इसमें दोनों की मर्जी होती है पर 

प्यार हो अपनापन हो कोई ज़रूरी नहीं।ये कभी कभी सिर्फ एक डयूटी बनकर रह जाती है।पत्नी का पति के लिये।जिसे हर लड़की को  सिखाया जाता है कि पति ही तुम्हारा सबकुछ है।हर हाल में उसके संग रहना।अपनी किसी भी हरकत से पिता का सर नीचा न करना।


उफ़्फ़फ़ “कृति” ने आहें भरी क्यों कृष्ण ……

डोरबेल बजी-बेटे ने कहा मम्मी कोई आया है।बेटे की आवाज़ सुन “कृति” ने अपने आप को सहज करते हुए दरवाजे की तरफ कदम बढ़ाया।तब तक बेटे ने दरवाजा खोल लिया।

सहसा कृति एकदम जड़ सी मूक खड़ी हो दरवाजे की तरफ देखने लगी ।बेटे ने कृति का हाँथ खींच कहा-“माँ माँ कौन है ये माँ”वो कृति का हाँथ हिलाता रहा ।कृति सहसा बोली-“कार्तिक तुम , कार्तिक आज यहां ओह्ह माय गॉड कार्तिक “कुछ देर वही खड़ी ही रह गई उसकी ख़ुशी का कोई किनारा ही नहीं था वो ठहर ही न रही थी।कार्तिक ने कहा- “कृति अब अंदर भी बुलाओगी की यहीं पर सारी बातें कर लोगी सफर से थक गया हूँ यार बैठने तो दो”।कृति-“ओ माफ करना आओ अंदर आओ बैठो,सोफे के कवर को झाड़ते हुए बेटा जाओ अंकल के लिए पानी ले आओ”।कार्तिक-“अरे बस कर कृति इतनी भी धूल नहीं है यार जितनी तेरी ज़िंदगी की किताब पर जम गई है।पहले  उसे झाड़ ले कृति”

“क्या बोल रहे हो कार्तिक” – कृति ने कहा।

“मैं क्या बोल रहा हूँ तुम अच्छे से समझ रही हो कृति” – कार्तिक ने कहा।”मैं सबकुछ जानता हूँ मुझसे कुछ छुपा नहीं और छुपाने की कोशिश भी मत करो।”मैं तेरी शादी के बाद इस शहर से क्या गया तुनें तो मुझे भुला ही दिया।पर मैं तुम्हें नहीं भुला ।मुझें आज भी याद है जब मैंने तुम्हें……….तभी “अंश” पानी लेके आ गया।और बोला – “माँ मेरे दोस्त आ गए मैं जा रहा आधी बात कहकर भाग गया।”कृति- आवाज़ देती रह गई अरे सुन…….। 

‘”अच्छा कार्तिक तुम फ्रेस हो जाओ फिर बाते करते हैं मुझे तुमसे ढेर सारी बाते करनी है।”

“पर कृति ” “अरे जाओ न कार्तिक मैं कुछ बना लेती हूँ”।

कृति के अंदर की ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था।जैसे उसको सुनने उसको पढ़ लेने वाला आ गया हो।पल भर के लिए वो सब भूल गई थी सब सबकुछ ,सिर्फ उसे कार्तिक याद था।और सब्जियाँ छोकते वक़्त तेल के छींटें बर्तन से उछल कर उसके हाँथों में जा लगे।वो चिल्लाई।कार्तिक बाथरूम से बाल पोंछते निकल रहा था कि उसने चीख सुनी दौड़कर कर आवाज़ की तरफ भागा।और  कृति के हाँथों को तेल से जलते देख भावनाओं की लहर उमड़ पड़ी- “उफ़्फ़फ़ कृति ये क्या कर लिया दिखाव यार अपना ध्यान नहीं रख सकती हो “कृति-“आहह” वो हाँथ पानी की तरफ ले जाने लगी।कार्तिक-“बेवकूफ रुक पानी नहीं डालना फफोले पड़ जाएँगे रुक थोड़ा कुछ क्रीम हैं क्या ? “हां वहां दराज़ में है”- कृति बोली।

कार्तिक डाँटते हुए बोला-“तुम यहीं रुको हिलना नहीं हां मिल गई दिखाव हाँथ ,पागल कहाँ ध्यान था” कृति चिल्लाने लगी “कार्तिक बहुत दर्द हो रहा है”रुको वो फूकते हुए क्रीम लगाने लगा हां #बेटा रुक हो गया बस इतना जला लिया।””आह उफ़्फ़फ़ कार्तिक बहुत जल रहा है “

इससे पहले भी कृति ने कितनी ही चोट खाई पर कभी उसे दर्द का एहसास नहीं होता था दवा बिन दर्द सह जाया करती थी। आज कार्तिक के लाडदुलार ने कृति के अंदर के बच्चे को वापस जैसे जीवन दान दे दिया था।

वो उसे बातों से सहलाते रहा और कृति का दर्द कम होता गया कृति कार्तिक को नज़र भर देखती और सुनती रह गई।

“ले अब मेरा एक काम और बढ़ गया न”- कार्तिक ने कहा।

“क्या” ? कृति ने कहा।

कार्तिक-“मैं तेरे हाँथों से खाऊंगा सोचा था अब मुझे ही बनाना पड़ेगा और खिलाना पड़ेगा  उफ़्फ़फ़फ़ “

कृति रूठते हुए-“अच्छा मुझे इतनी चोट लगी और तुम्हे खाने की सूझी है।जाओ अब तो बात भी नहीं करूंगी और खाना भी नहीं बनाऊंगी।

कार्तिक बोला-“अरे अरे मेरा बच्चा रूठ गया 

मुझे भूख लगी है सॉरी बाबा कान पकड़े माफ कर दो।बेटा मान जा।मैं तो बस मज़ाक  कर रहा था।”

कृति- बस बस नावटंकी कॉलेज में जैसे थे तुम आज भी वैसे ही हो न कार्तिक ज़रा भी नहीं बदले- भावुक होकर।


कार्तिक-हां मैं वैसा ही हूँ पागल  कभी नहीं बदलूँगा।तुम जानती हो न………कहकर रुक गया।

‘क्या कार्तिक क्या जानती हूँ” ?

रहने दो कृति पुरानी बातें दर्द देती हैं।कुछ दिन के लिए आया हूँ अच्छी यादें समेटकर जाना चाहता हूँ।

कृति-वापस साँझ की डूबती मध्यम रौशनी से घिर आई ।”अच्छा तुम चले जाओगे कब जाओगे वापस ? कृति के प्रश्न में उदासी थी।

“पता नहीं पर जाना तो है चल अपना ख्याल रखना  मैं चलता हूँ।”कार्तिक भी उदासी भरे स्वर में बोल गया।

 अरे रुकोगे नहीं यहीं रुक जाओ तुम्हारे घर भी तो कोई नहीं है।खाना यहीं खा लेना।अचानक मुस्कुराते हुए बोली-मुझे कौन खिलायेगा सी मेरे हाँथ जल गए न।

अच्छा चल रुकता हूं –  कार्तिक बोला ।

अंश थक गया था वो खाना खाया और सो गया।कृति ने दोनों के लिए थाली लगाई और खाने की नाकामयाब कोशिश की,कार्तिक ने कहा अरे रुक नालायक मैं क्यों हूँ, मैं खिलाता हूँ कृति स्तब्ध थी निवाला मुह में जाते ही आँसू आने लगे।कृति क्या हुआ मिर्ची खा ली क्या ? पानी लो।

नहीं कार्तिक मिर्ची तो इतने बरस  में कई बार भी खाई है पर किसी ने पानी नहीं पूछा।तुम इतने अच्छे क्यों हो तुम्हारा साथ हमेसा से मुझे स्नेह देता रहा।

कार्तिक बोला- कृति ये स्नेह ये लाड़ तो मैं तुमसे हमेसा से रखता हूँ और इसे प्या……..

चुप हो गया।चलो खाओ जल्दी मुझे भी भुख लग रही है।कृति ने कार्तिक का हाथ पकड़ कहा-नहीं कार्तिक पूरी बात बोल दो आज तुम उस दिन भी कुछ बोलना चाहते थे जब मैनें तुम्हे अपनी शादी तय हो जाने की बात बताई थी उस दिन भी खामोश होकर वापस चले गए थे।आज कह दो उस वक़्त तो नहीं समझ पाई थी ।कार्तिक बोलो-

कृति मैं आज भी तुम्हे उतना ही लाड़ दुलार करता हूं पर इसे प्यार में बदल देना चाहता हूँ कृति मैं तुम्हें ………और इतना कहकर कार्तिक बिना खाना खाएं ही छत की तरफ चला गया।कृति आवाज़ देती रही कार्तिक सुनो कार्तिक ।कृति खाने की थाली लेकर उसके पास गई।कार्तिक मेरी तरफ देखो कार्तिक उसकी आँखों मे आँसू कार्तिक तुम रो रहे हो कृति आई एम सॉरी यार मुझे ये सब नहीं कहना था ।कार्तिक ने कृति को गले लगा लिया और बिना कुछ सुने घर चला गया।न कार्तिक रात भर सो पाया  न कृति।

कृति रात भर सोचती रही वो इतने सालों से मेरे लिए तडपता रहा।वो उस शाम यही कहने आया था।उफ़्फ़फ़ और मैंने अपनी शादी की बात उसे बता दी काश उस वक़्त…….।

कृष्ण ये कैसा फेर हैं तेरा उसे कैसे हां करूँ 

अंश को वो अपना पायेगा ? – कृति सोच में डूबी।

सुबह की रौशनी आँखों को मिचती हुई

खिड़की के बाहर कार्तिक की छत नज़र आई।कार्तिक जैसे रातभर वहीं छत पर ही कुर्शी पर लेटा रहा हो।कृति उठी चाय बनाके कार्तिक के पास गई।ये क्या इसने दरवाजा तक बंद नही किया रात।कार्तिक उठो कार्तिक चाय ले लो। वो उठा कृति तुम!


हां मैं चाय लो ।कृति सॉरी यार कल के लिए।

कार्तिक क्यों सॉरी बोल रहे हो मत बोलो।

उसने कृति की हाँथो को अपने दोनों हथेलियों में लिया और बोला-पर कृति क्या आज ये नहीं हो सकता ?

कार्तिक पर अंश को तुम-तभी अंश की आवाज़ आई वो उत्तर सुने बिना ही वापस आ गई।

कार्तिक समझ गया बात और उसे उम्मीद नज़र आ गई।

कार्तिक सामान पैक करके कृति के पास आया ।कृति चौक गई और उसे जाते देख उदास चेहरे से बोली तुम जा रहे हो ?

हां कृति जा रहा हूँ मन भर गया यार् सोचा तुमसे मिल लूँ।आओ न बैठो।कृति सुनो –

हां बोलो -कृति कृति क्या….. हम तीनों एक साथ नहीं रह सकते तुम मैं और अंश ?

कुछ देर की खामोशी।

कृति बोली तो रुक जाओ  कार्तिक ..और उसके गले लग गई।

 

दीपा साहू “”प्रकृति”

रायपुर छत्तीसगढ़

 

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