मैं नाराज़ नहीं हूं पापा – सुषमा यादव

एक बेटी के मन के भाव,,जो वो ना कह‌  सकी,,

,, बेटी दिल्ली में अपने पापा के साथ , मेडिकल प्रवेश की काउंसिलिंग में आई थी,, वहीं पर एक लड़के ने उससे बात करते हुए कुछ जानकारी चाही,, उसके पापा ने दूर से देखा और आकर गुस्से से कहा,, कि, ये लड़का तुमसे क्यों बात कर रहा था,, तुम कब से इसे जानती हो,,

,, नहीं पापा, मैं इसे नहीं जानती,

सच में,, ये मुझसे कुछ पूछ रहा था,,पर वो संतुष्ट नहीं हुए,, वैसे मेरी बेटी कभी झूठ नहीं बोलती है,। इसी बीच काउंसिलिंग में बारहवीं कक्षा की सार्टिफिकेट मांगी गई,,पर शायद जल्दी में वो कोटा में ही भूल गई थी,, फिर क्या था, पापा का पारा आसमान में चढ़ गया,, उन्होंने दूसरी तारीख दी, और दोनों वापस कोटा आये,पर पूरे रास्ते और ट्रेन में उसे

खूब सुनाते रहे,,सबके सामने वो

बहुत ही अपमानित महसूस कर रही थी,, आंखों में आसूं भरे थे,,उस समय से उसने पापा से बोलना बिल्कुल छोड़ दिया,, फोन पर भी वो बस हूं हां करती, ये कहते,बेटू हमसे बहुत ही नाराज़ है, मुझसे बात ही नहीं करती,,

फिर उसके बीमार होने पर मैसूर गये,पर बेटी के दिल को शायद गहरी चोट लगी थी,, पापा के आंसू बह रहे थे,, वो ख़ामोश देख रही थी,,

**** इससे संबंधित मेरी कहानी आप ,, दुखद संस्मरण में, पढ़ चुके हैं,,ना पढ़े हों तो कृपया पढ़िएगा,,***


पापा वापस लौट आए,,

,, बेटी को अहसास हुआ, बंगलौर से फ्लाइट में बैठ कर इंदौर आ गई,, हमें सुबह ही उसकी सहेलियों ने फोन पर बता दिया था,, बाहर से देखा, कुछ लोग चुपचाप खड़े थे,, उसने सोचा, पापा, संभागीय अधिकारी हैं, तो अक्सर लोग पापा से मिलने आते हैं,, खिलखिलाते हुए बांहे फैलाए दौड़ कर चिल्लाते हुए,,, पापा, मैं आ गई,,आपकी बेटू आ गई,, मम्मी, मैं आ गई,, सरप्राइज़,,, कमरे के अंदर आते ही नजर पड़ी,,, उसके पापा जमीन पर फूल माला लादे पड़े हैं, वो हक्का बक्का रह गई

मैं जोर से लिपट कर रोने लगी,,पर वो तो पत्थर बन चुकी थी,, ये लिखते लिखते उस दिन का वो‌ दर्दनाक मंजर याद करके मेरे आंसू बहने लगे हैं,,

, एक ने उसके हाथ में जल्दी से माला फूल दिया,,बेटा, पापा को चढ़ा दो,, और पैर छूकर प्रणाम करो,सब यंत्र वत करती गई,, फिर एकदम से चिल्ला पड़ी,,

,, पापा, मैं आपसे बिल्कुल नाराज़ नहीं हूं,, आपने मुझे ह्रदय से याद किया, मैं बीमारी हालात में भी भाग कर आपसे मिलने आई हूं,,

पापा मुझसे बात करो,, मुझे इतनी बड़ी सज़ा मत दो,, प्लीज़ पापा,, उठिए,, मैं अब आप से कभी भी नहीं नाराज़ होऊंगी,,सब लोगों ने उसे अलग किया और एक झटके में इनको उठाकर ओंकारेश्वर चले गए,,

*** तब से ये दर्द उसके दिल का नासूर बन गया है,, कहती है, मम्मी, आपने सब छुपा कर अच्छा नहीं किया,,काश, मैं पापा से पहले ही बात कर लेती,, मुझसे बात किये बगैर पापा चले गए,,

ये घाव मेरे दिल में हमेशा बना रहेगा,,, तब से वह बहुत ख़ामोश हो गई है,, आज़ बरसों बीत गए हैं,,पर पापा से ना बोलने का मलाल आज़ भी जिंदा है,,

** आप मुझसे कुछ सवाल करें, तो अनुरोध है कि वो मेरी कहानी जरूर पढ़ें,आपको अपने सभी सवालों के ज़बाब मिल जाएंगे,***,,, दुःखद संस्मरण,,,

सुषमा यादव, प्रतापगढ़ उ प्र,

स्वरचित मौलिक,,

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