‘ राम तो बनो ‘ – विभा गुप्ता 

     ” आप मेरी बात तो सुनिए…” सुनंदा ने कहना चाहा लेकिन सुमेश ने उसे बाहर करते हुए कहा, “मुझे कुछ नहीं सुनना, इस घर में अब तुम्हारी कोई जगह नहीं है।” और भड़ाक से दरवाज़ा बंद कर लिया।

         सुनंदा को कुछ समझ नहीं आया,क्या करे,कहाँ जाए।उसने एक फोन लगाया और पूरी बात बताई।उधर से आवाज़ आई, ” आप यहीं आ जाइए।”

           अगले दिन सुमेश से मिलने उसका मित्र अंकित आया तो देखा कि सुमेश नशे में धुत्त बैठा था,पास में दो बोतलें रखी थीं और गिलास ढ़ुलकी पड़ी थी।अंकित ने पूछा कि यार,भाभी कहाँ हैं।सुनकर वह फट पड़ा, “नाम मत लो उस कुलटा का, परसों रात भर पता नहीं कहाँ अपना मुँह काला करती रही,मैंने उसे घर से निकाल दिया।”

” तुमने कारण नहीं पूछा।” 

” पूछने की ज़रूरत क्या थी ” कहकर उसने बोतल की बची शराब गटक गया।

    अचानक सुमेश को कुछ याद आया,उसने अंकित से पूछा कि अब तेरी पत्नी की तबीयत कैसी है? अंकित बोला, ” वही तो बताने आया हूँ।परसों रात अचानक अनु की तबीयत बहुत बिगड़ गई, मैंने तुझे फ़ोन लगाया,लेकिन तूने नहीं उठाया तो फिर सुनंदा भाभी को फ़ोन किया,वह तो बहुत घबरा गईं, उन्होंने ही डाॅक्टर को मेरे घर का पता बताया और मेरे घर आ गईं।उन्होंने भी तुझे चार-पाँच फ़ोन किया था,तेरे से बात न होने पर वो बेचारी बहुत परेशान थी कि तेरे साथ कोई अनहोनी न हो गई हो।डाॅक्टर ने अनु का चेकअप करके बताया कि सही समय पर मुझे इन्फार्म कर दिया वरना…।देर बहुत हो गई थी तो हमने ही उन्हें रोक लिया था।मैं तो उनका धन्यवाद करने आया था परन्तु तुमने तो…।” 



         ” हे भगवान! ये मुझसे क्या अनर्थ हो गया।” कहकर वह रोने लगा।रोते-रोते उसने अपना फ़ोन देखा,सुनंदा के कई मिस्ड काॅल थें।सायलेंट मोड पर होने के कारण उसने नहीं सुना।वह अपने को कोसने लगा तब अंकित बोला, ” खुद को अब कोसने से क्या फ़ायदा,याद है,भाभी कभी तुम्हारा फ़ोन नहीं उठा पाती तो तुम कितना चिल्लाते थे।उन्हें बिना बताए कहीं चले जाते, देर रात घर लौटते, कभी-कभी तो तुम अगली सुबह आते, लेकिन उन्होंने कभी तुमसे कुछ नहीं कहा,वो तुम पर विश्वास करती थीं, इसी विश्वास पर तो उस रात वो हमारे घर ठहर गईं थी लेकिन तुमने उन्हें अपनी बात कहने का एक मौका तक नहीं दिया।लानत है तुमपर।अरे, पत्नी का त्याग कर देने से ही कोई राम नहीं बन जाता।श्री राम में धैर्य था,व्यवहार में सौम्यता थी।क्रोध तो उन्हें कभी छुआ भी न था।तभी तो वे पुरुषोत्तम कहलाए।सीता की इच्छा रखते हो तो पहले स्वयं राम बनो।” 

        अंकित की बात सुनकर सोमेश हाथ जोड़कर  बोला, ” मुझे माफ़ कर दो, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है।अब मैं सुनंदा को कहाँ ढूंढू? मैं पुलिस को फ़ोन करता हूँ।” और वह पुलिस का नंबर डायल करने लगा तो अंकित बोला, ” पहले अपना हुलिया ठीक करके मेरे घर चलो, नाश्ता करो, तब थाने चलेंगे।” सोमेश ने अंकित की बात मान ली और फ़्रेश होकर अंकित के साथ उसके घर चला गया।

           डाइनिंग टेबल पर सुनंदा को नाश्ता सर्व करते देख सोमेश खुशी से उछल पड़ा।बोला, “सुनंदा, मुझे माफ़ कर दो।क्रोध में आकर मैं अपना आपा खो बैठा था, इसीलिए तुम्हारे साथ बदसलूकी कर बैठा।प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो।” सुनंदा ने जब कोई जवाब नहीं दिया तो वह कान पकड़कर उठक-बैठक करने लगा,यह देखकर सुनंदा को हँसी आ गई और सोमेश ने उसे गले से लगा लिया, तभी अंकित आकर सोमेश से बोला, ” मित्र घर प्यार और विश्वास से बनता है, शक का कीड़ा घर की दीवारों में दरारें पैदा कर देती हैं।अपनी गलती दोहराना मत वरना….” “कभी नहीं ” कहकर सोमेश अपनी सीता रूपी सुनंदा को लेकर घर आ गया।

                             —– विभा गुप्ता 

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