प्रारब्ध* – रेखा मित्तल

आंसू झरझ़र बहे जा रहे थे!!

कल्याणी देवी बहुत परेशान थी। बार-बार यही बोले जा रही थी,

“मेरा बेटा आने वाला है वह बोल कर गया है, कुछ खाने के लिए लेकर आएगा!”

     बस स्टैंड पर सुबह से कल्याणी देवी बैठी हुई थी। जब बहुत देर हो गई हो गई तो उसने पुणे जाने वाली बस के बारे में पूछा। तभी वहां पर तैनात महिला पुलिस को कुछ आशंका सी हुई। उसने जाकर कल्याणी देवी से पूछा,

     “माताजी,आपको कहां जाना है? आप किसका इंतज़ार कर रही हो?”

     “अरे,मेरा बेटा विकास मुझे अपने पास ले जाने के लिए आया है। वह पुणे में रहता है।बस आता ही होगा।”

    मैं इतने बड़े घर मेंअकेली रहती थी। बेटे ने बोला ,”मां ,अब तुम हमारे साथ ही रहोगी।”

     घर मकान सब बेच दिया। मुझे क्या करना था ,सब रुपया पैसा विकास को ही दे दिया। अब तो जिं़दगी के आखिरी पड़ाव पर हूं ।


    सीमा जो पुलिस विभाग में पिछले 5 वर्षों से कार्यरत थी उसको समझते देर न लगी। आज भी एक स्नेही मां का  बेटा उसको धोखे से उसकी जमा पूंजी लेकर ,बस स्टैंड पर अकेला छोड़कर चला गया है। महानगरों में अक्सर ऐसे केस आते ही रहते हैं जहां बच्चे बुजुर्ग होते माता पिता को अपने साथ रखना नहीं चाहते।

    सीमा ने कल्याणी देवी को पानी पिलाया और समझाने की कोशिश की। सीमा ने उनसे विकास के बारे में पूछताछ की ,परंतु कल्याणी देवी को न तो घर का पता था और न ही उसके ऑफिस का। कल्याणी देवी ठहरी एक सीधी ,सरल ,कम पढ़ी-लिखी महिला!!!!

        सीमा बोली,”पास में ही एक नारी निकेतन है मैं आपके रहने की व्यवस्था वहां पर कर देती हूं। वहां बहुत सी महिलाएं रहती हैं जिनको अपनों ने ही बेसहारा कर दिया है।”

        सीमा कल्याणी देवी का हाथ पकड़कर बहुत स्नेह से लेकर जा रही थीं। कल्याणी देवी की आंखों से अश्रु धारा बह रही थी । मन ही मन सोच रही दी इस पुत्र को पाने के लिए दो कन्याओं की भ्रूण हत्या की थी, तो सजा तो मिलनी ही थी। अपने कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है। वही पुत्र आज उसको बीच रास्ते में छोड़ गया। एक यह सीमा है जिससे उनका कोई रिश्ता नहीं, वह एक फरिश्ते की भांति लग रही थी।

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