पितृ दिवस – डा. मधु आंधीवाल

बेटियाँ शायद मां से भी अधिक पिता से जुड़ी होती हैं । कभी कभी मां को टीसता भी है । जब बेटी स्कूल ,कालिज या ससुराल से आते ही पूछती है मां पापा कहां है। फोन पर पहला सवाल पापा कैसे हैं ।  एक पिता का संघर्ष सब सन्तान नहीं समझ पाती । हमारे समय में हम अपने पिताजी बहुत डरते थे । वह दुकान से आये और हम गायब पर उस डर में प्यार के सम्मान रहता था । मेरी जिन्दगी का बहुत दर्दीला पन्ना मेरे जन्म दाता से जुड़ा है । मैं जब केवल 15 साल की थी मेरे पिता का मर्डर हो गया था । हमेशा दिल में टीस रहती है। इसी सन्दर्भ में एक घटना वर्तमान माहौल में लिख रही सत्यता लिये हुये है।

      रेखा अपनी खिड़की में खड़ी सामने रहने वाले मल्होत्रा अंकल को देख रही थी । कुछ दिन पहले कितना रौब था चेहरे पर जब आन्टी जिन्दा थी । अंकल की एक एक बात का ध्यान रखना । खाने में किस चीज से परेशानी होती है कौनसी बात अंकल की सेहत के लिये नुकसान करेगी । पूरी कोलोनी में आंन्टी अपने मधुर स्वभाव और सबकी सहायता करने में मशहूर थी । बेटा और बेटियाँ अपने परिवारों के साथ बाहर रहते थे । त्यौहारों पर सब आते आंटी सबकी जरुरतों और पसंद का ख्याल रखती । इस कोरोना आपदा ने आंटी को निशाना बना लिया । आंटी को गये तीन महीने हो गये अभी बेटा बहू आये दो दिन रुके और चले गये । कल जब मैने पूछा अंकल आप नहीं गये वह बोले बेटा उसका फ्लैट छोटा है। बच्चे के पेपर हैं मै किसी ओल्ड होम का पता लगा रहा हूँ । बेटियों को नहीं पता और बेटियों के यहाँ मै नहीं रहूंगा । 


         सुबह मै उठी सोचा चलो अंकल को चाय और नाश्ता दे आती हूँ क्योंकि उनकी सर्वेन्ट देर से आती है। जब पहुँची तब उनका बेटा मोबाइल पर बात कर रहा था ” Papa happy father’s day ‘ अंकल ने रुंधी आवाज में कहा खुश रहो फिर उसने कहा कि एक ओल्ड होम का पता लगा लिया है मेरे घर से अधिक दूर नहीं है।

      मन करा फोन छीन कर बोलू क्या पितृ दिवस का तोहफा दे रहे हो । दुखी मनसे घर आगयी ।

स्व रचित

डा. मधु आंधीवाल

अलीगढ़

 

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