पायल – निभा राजीव

शिप्रा माता-पिता के देहांत के बाद पहली बार रक्षाबंधन पर मायके जा रही थी। यूं तो भैया भाभी ने बहुत प्यार से बुलाया था। भाभी ने बड़े मनुहार से कहा था कि “सोच ले शिपू कि मां के पास आ रही है।”  पर फिर भी मन न जाने कितनी शंकाओं से घिरा हुआ था। कि पता नहीं मायके में उसका स्वागत कैसे होगा।

स्टेशन पर भैया आए थे उसे लेने। एक दूसरे को देख कर दोनों की आंखें भीग गई। रास्ते भर दोनों भाई बहन बातें करते रहे। घर पहुंचते-पहुंचते शाम हो गई। भाभी ने भी हुलस कर उसे हाथों हाथ लिया और उसके स्वागत में कोई कमी ना रखी।

         कॉफी के साथ विविध प्रकार के नाश्ते का प्रबंध भाभी ने कर रखा था। बातचीत और हंसी मजाक में कब समय निकल गया पता ही ना चला। रात को चली थी। भाभी ने कहा- “चल शिपू, अब जल्दी से खाना खा कर सो जा। कल रक्षाबंधन भी तो है, जल्दी जागना है।” खाना लगाने में वह भी भाभी का हाथ बंटाने लगी। भाभी ने उसकी पसंद के दम आलू, मसाला भिंडी, रोटी, रायता और सूजी का हलवा बना रखा था। एकदम से मां की याद आ गई और पलकें भीग गई। झट से भाभी ने पास आकर गले से लगा लिया एक निवाला अपने हाथों से उसके मुंह में रख दिया। वह निहाल हो गई इतना स्नेह पाकर।



उसे वह दिन याद आ गया, जब मातृविहीना भाभी ब्याह कर ससुराल पहुंची थी। गृह-प्रवेश के बाद अम्मा ने झट भाभी को अपने गले लगा लिया और माथा चूम कर कहा-

“आज से तुझे तेरी माँ मिल गई बिटिया रानी।”…….उसके बाद से अम्मा ने शिप्रा और भाभी में कोई भेदभाव नहीं रखा। अम्मा थीं ही इतनी सरल और ममतामयी कि उनके हृदय से ममता के अलावा जैसे कुछ निकलता ही न था। पर नियति कभी-कभी इतनी कठोर हो जाती है,जो किसी का सुख नहीं देखा जाता। कैसा अपशकुनी दिन था, जिस दिन पता चला कि अम्मा को रक्त का कैंसर है, वह भी अन्तिम अवस्था! उस दिन किसी से खाना नहीं खाया गया। अम्मा का हरसंभव इलाज करवाया गया मगर कोई फायदा नहीं हुआ। अंतिम दिनों में उन्होने अस्पताल में रहने से साफ मना कर दिया। और बच्चों के समान हठ करके घर में ही रहने लगी। घर के सभी सदस्य यथासंभव अम्मा का बहुत ध्यान रखते थे। पर काल की निष्ठुर गति जाते देर नहीं लगती। अंतिम समय में अम्मा ने कांपते हाथों से शिप्रा का हाथ भाभी के हाथों में थमा दिया। भाभी भावुक होकर रो पड़ी और कहा- “अम्मा, आप चिंता न करो। आज से मैं शिपू की माँ। पर आप बहुत जल्दी ठीक हो जाओगी।”

इतना सुनते ही अम्मा के चेहरे पर वही ममता से भरी मुस्कान खेल गई। और उन्होंने अपनी आंखें असीम शांति से सदा के लिए मूँद लीं।घर की नींव का पत्थर मानो हिल गया। ऐसा लग रहा था जैसे घर का कोना-कोना रो रहा हो। इसके बाद से धीरे-धीरे पिताजी का स्वास्थ्य भी खराब रहने लगा और छ: महीने के अंदर ही उन्होंने भी इस संसार से विदा ले ली। भैया भाभी ने शिप्रा को कभी माता पिता की कमी का अनुभव नही होने दिया। अम्मा की तरह अब भाभी उसका पूरा ध्यान रखने लगी थीं। पढ़ाई पूरी होते ही भैया ने अच्छा सा इन्जीनियर लड़का देख कर उसका ब्याह कर दिया।अपने घर में भी बहुत सुखी थी वह। आज भाभी का स्नेह देख फिर से अम्मा की ममता याद आ गई। उसने भरे मन से खाना खाया।खाना खा कर फिर वह जल्दी ही सो गई। थकी हुई तो थी ही।

        सुबह से फिर उसने हुलस हुलस कर खूब उत्साह से रक्षाबंधन की तैयारी की और राखी का थाल सजाया। आज भाभी के भाई भी आने वाले थे रक्षाबंधन पर। दोनों ननद भाभी ने मिलकर नाश्ते और खाने की तैयारी की। तब तक भाभी के भैया भी आ गए।



                दोनों ननद भाभी अपने अपने भाइयों के सामने राखी का थाल लेकर आ गईं। शिप्रा ने बड़े प्यार से भैया को राखी बांधी, टीका किया, आरती उतारी और हंसते हुए मिठाई का एक बड़ा सा टुकड़ा उनके मुंह में ठूंस दिया। भैया ने भी हंसकर उसकी नाक खींची और उपहार में कानों के सोने के प्यारे से बुंदे दिए, जो शिप्रा को खूब पसंद आए।

          फिर भाभी ने भी अपने भैया को राखी बांधी। भाभी के भैया ने भी उपहार में उन्हें एक डब्बी थमाई। उसके अंदर चाँदी की पायल की एक जोड़ी थी। नन्ही नन्ही अर्धवृत्ताकार मुड़ी हुई धवल मछलियों की लड़ी से बनी हुई पायल! बीच बीच में नन्हें-नन्हें घुंघरू! इतनी प्यारी बनावट कि शिप्रा का मन उन्हीं मछलियों में उलझ कर रह गया। भाभी के भैया ने भाभी से कहा-  “चल एक बार पहन के दिखा दे।” भाभी ने मुस्कुराकर झट से पायल पहन ली। उफ्फ़! बिजलियों सी कौंध रही थी वह मछलियां! शिप्रा की दृष्टि वहीं जमकर रह गई। तभी भाभी के भैया ने कहा कि उन्हें बिजनेस के सिलसिले में तुरंत कहीं जाना है। इसलिए अभी उन्हें जाना होगा। भाभी ने फिर जिद करके उन्हें जल्दी जल्दी नाश्ता करवाया। फिर वह सब से विदा लेकर चल पड़े। भाभी की आंखें भीग गई जिन्हें उन्होंने चुपके से आंचल के कोर से पोंछ लिया। शिप्रा ने देखा तो भाभी को अपनी बाहों में बांध लिया। इस पर भाभी मुस्कुराहट दी और सब अंदर आ गए। फिर भैया भी ऑफिस को रवाना हो गए।

         अब शिप्रा और भाभी भी खाने बैठ गई। खाना खाने के बाद भाभी ने शिप्रा को अपने कमरे में बिठा लिया “चल थोड़ी देर यहीं रह,गप्पे लड़ाएंगे।”



दोनों ननद भाभी वहीं बातें करने लगीं।बातें करते-करते ही भाभी अपनी पैरों से पायल उतारने लगी यह देख शिप्रा ने कहा- ” अरे भाभी, पायल क्यों उतार रही हो?”

भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा-“ना री, पायल पहन कर मुझसे काम नहीं होता। अब सीधे तीज के दिन पहनूंगी।” फिर उन्होंने उठकर पायल को डिब्बी में डालकर अलमारी के अंदर रख दिया। पायल की वह धवल मछलियां मानो मचल मचल कर शिप्रा के मन को अपनी ओर खींच रही थी। मन किया भाभी से वह पायल मांग ले। पर भाभी को उनके भैया ने वह पायल उपहार में दी थी तो वह कैसे मांग सकती थी। भाभी अधलेटी हो कर बातें करने लगी। थकान तो थी ही धीरे-धीरे उनकी आंख लग गई। शिप्रा धीरे से वहां से उठी तो मगर वह मनभावनी पायल जैसे मन में एक पाश डाले बैठी थी। अचानक मन ने सोचा- ‘चल शिप्रा, उठा ले पायल, भाभी सोई तो हैं। उन्हें क्या पता चलेगा।’ कुमति ने शिप्रा पर मानो सम्मोहन कर दिया।

शिप्रा ने बहुत सावधानी से भाभी के सिरहाने से चाबी निकाली और अलमारी खोलकर पायल की डिब्बी झट अपनी कमर में खोंस ली और चाबी को वापस भाभी के सिरहाने रखा और दबे पाँव अपने कमरे में आ गई। खूब संभाल कर उसने पायल की डिब्बी अपने सूटकेस में सभी कपड़ों के नीचे दबा कर डाल दी। मन में बहुत अपराध भाव जागृत होने लगे मगर तरह-तरह के कुतर्कों से वह अपने मन को समझाने का प्रयत्न करने लगी। थोड़ी देर बाद भाभी उठ गईं। उनके व्यवहार से लग रहा था कि उन्हें कुछ पता नहीं है पूरा दिन बोलते बतियाते बीत गया शाम को भैया भी आ गए खूब हंसी मजाक करते हुए दिन बीत गया। रात को खाने के बाद यह अपने कमरे में सोने गई तो अपराध बोध का नाग फिर से फण काढ़कर बैठ गया। वह सोना तो चाह रही थी पर सो नहीं पा रही थी। बार-बार यही विचार खाए रहा था कि जिस भाभी ने उसे माँ की तरह स्नेह दिया, वह उसी को छल रही है। वह अपराध बोध से पसीने से तरबतर हो गई उसने एक क्षण में निर्णय लिया। उसके बाद वह शांतिपूर्वक सो गई।

               शिप्रा ने सुबह उठ कर तरोताजा होने के बाद सबके साथ चाय पी। फिर दोनों ननद भाभी ने मिलकर नाश्ता तैयार कर लिया।



शिप्रा ने मनुहार से कहा-“भाभी, अपने हाथ के दही भल्ले बना दो ना!” भाभी ने मुस्कुराकर उसके गाल पर चिकोटी काटी और दही भल्ले बनाने की तैयारी करने लगी। अवसर पाकर शिप्रा झट अपने कमरे में गई और सूटकेस से पायल की डिब्बी निकाल ली। वह दबे पाँव भाभी के कमरे में पहुंची और सिरहाने से चाबी निकाल ली। पायल को वापस यथास्थान रख दिया। अब उसका मन शांत हो गया। अगले 2 दिन बहुत हंसी खुशी से उसने मायके में बिताए। अगली सुबह के पति सुमित उसे लेने आ गए! भैया भाभी ने उपहारों से उसे और सुमित को लाद दिया । शाम की गाड़ी से दोनों रवाना हो गए।

रात भर की रेल यात्रा के बाद शिप्रा सुबह अपने घर पहुंच गई। घर पहुंच कर वह अपने पर्स में चाबी टटोलने लगी जो उसके पति ने उसे रखने को दी थी। अचानक उसके हाथ में एक डिब्बी आ गई इतने धीरे से पर्स में झांक कर देखा तो पाया कि यह तो वही भाभी की वाली पायल की डिब्बी है। वह हतप्रभ रह गई।उसने पति से कुछ नहीं कहा। चुपचाप घर खोल कर दोनों अंदर आ गए। थोड़ी देर के बाद नाश्ता करके जब पति ऑफिस चले गए, तब उसने पर से वह डिब्बी निकाली। डिब्बी में पायल के साथ एक पर्ची भी पड़ी थी। उसने कांपते हाथों से पर्ची खोली तो भाभी की मोतियों जैसी लिखावट आंखों के सामने आ गई।

” यह तेरे लिए एक प्रेमोपहार है शिपू। सच कहूं तो एक बार को मन में आया था कि यह तो मेरे भाई का दिया हुआ उपहार है, यह मैं तुझे क्यों दूं । पर आज अगर तुझे यह न देती तो मन सदा के लिये कचोटता रह जाता। मैं तो कभी तेरी माँ न बन पाती री। इसे जरूर पहन लेना मेरी बिट्टो – तेरी भाभी माँ”…….. वह समझ गई कि भाभी ने सब कुछ देख लिया था, तभी यह डिब्बी वापस उसके पर्स में रख दी। उसने डिब्बी को भींचकर अपने सीने से लगा लिया, आँखें अविरल बहने लगीं और उसके मुंह से निकला “अम्मा, तू आज भी जिंदा है।”

निभा राजीव

सिंदरी धनबाद झारखंड

स्वरचित और मौलिक रचना

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