पश्चाताप के आंसू – मंजू ओमर : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: सुबह के नौ बज रहे थे अनु की छोटी बहन और बहनोई आए हुए थे अनु के घर पर ।सब मिलकर चाय पी रहे थे । तभी अनु के पति शेखर के पास शेखर के बड़े भाई का फ़ोन आता है कि जल्दी आ जाओ तुम्हारे भाभी की तबीयत बहुत खराब हो गई है।अनु यानि ,मैं बहन को घर पर छोड़ कर भाई साहब के घर गई, वहां देखा तो जिठानी की तबियत तो बहुत ज्यादा खराब हो रही थी उनको फिट पड़ रहे थे थोड़ी थोड़ी देर में।

भाई साहब बहुत घबरा रहे थे । भाभी जी अक्सर बीमार ही रहती थी उसका कारण अपनी शानो शौकत का हवाला देना और ज्यादा तर बाजार का खाना पीना ऐसे समय में मैं ही उनकी देखभाल करती थी । हालांकि वो मुझे बात बात पर ताने मारती थी । भाभी जी के दो बेटे थे बड़ा बेटा पूना में नौकरी पर था और छोटा अमेरिका में पढ़ाई कर रहा था। इसलिए अक्सर मुझे ही देखभाल करनी पड़ती थी ।

                भाभी जी को किसी तरह उठा कर अस्पताल ले गए, कुछ देर इलाज करने के बाद भी स्थिति कंट्रोल नहीं हो रही थी डाक्टर ने हाथ खड़े कर दिए कि हमारे वश में नहीं है कुछ आप इनके रिश्ते दारों को बुला ले या किसी और अस्पताल में ले जाएं।उनको बराबर फिट पड़ रहे थे और बेहोशी की हालत में थी ।
डाक्टर के इतना कहने पर भाई साहब आंखों में आंसू भर कर बोले अनु शेखर अब तुम लोग देखो जो करना हो करों मुझसे तो कुछ नहीं होगा । शेखर थोड़े हिम्मत वाले थे फिर बच्चों को फ़ोन किया और भाभी जी को दूसरे अस्पताल में ले जाने की तैयारी करने लगे। दूसरे अस्पताल में डाक्टर ने देखने के बाद 48 घंटे का समय दिया और इलाज चालू कर दिया । कोशिश करते हैं ठीक होता है तो ठीक नहीं तो ,,,,,।
           लेकिन 30 घंटे के बाद भाभी जी के शरीर में थोड़ी हरक़त शुरू हुई सबके मन में एक उम्मीद की किरण जाग गई ।48घंटे के बाद भाभी जी को थोड़ा थोड़ा होश आना शुरू हुआ। तीन दिन ऐसे ही बीता फिर भाभी जी ने आंखें खोली । भाभी का छोटा बेटा तो अमेरिका में था तो वो तो इतनी जल्दी नहीं आ सकता था लेकिन बड़ा बेटा और बहू चौथे दिन पूना से आ गये तब तक स्थिति काफी कंट्रोल में आ गई थी ।
अनु जी जान से जुटी हुई थी। दिनभर अस्पताल में रहती।अपना शेखर का और भाई साहब का खाना बना कर ले जातीं सारे दिन भाभी जी की देखभाल करती फिर रात दस बजे तक घर आ पाती।
                 बेटे बहू के आने पर अनु ने सोचा चलो अब थोड़ा आराम मिलेगा बहू बेटा आ गये है अनु भी इस भागदौड़ से काफी थकान महसूस कर रही थी । लेकिन बहू अस्पताल जाती ही नहीं मैं घर संभाल रही हूं ऐसा कहकर बहाना बना देती।रात नौ बजे के करीब बेटा बहू जाते आधा एक घंटा रूककर वापस आ जाते ।
बेटा भी अस्पताल में नहीं रूकना चाहता था। लेकिन भाभी जी के पास रात में रूकने को भी कोई चाहिए था । मजबूरी में बेटा वहां रुकता तो आराम से गहरी नींद सोता और सुबह सुबह वापस घर आ जाता ।रात में भाभी जी आवाज देती तो वो उठता ही नहीं था ।घर आकर अनु को फोन करने लगता कि चाची आप जल्दी से आ जाओ मम्मी अकेली है आप खाना के चक्कर में न पड़ बाजार से खाना ले आयेंगे आपको । मतलब मम्मी के पास बहू तो बहूं बेटा भी नहीं रहना चाहता था ।
बेटा बोलता अस्पताल का माहौल अच्छा नहीं लगता दवाओं की महक आती है।अब बताइए अस्पताल में किसको अच्छा लगता है । शाम को जब बहू आती थी तो मैं उसको कुछ बताती कि ये दवा देनी है या मम्मी की कंघी कर दो कपड़े बदल दो तो दूर खड़ी हो जाती थी कि चाची हमसे तो नहीं हो पायेगा आप कर दो । फिर मुझे ही सब करना पड़ता था ।अब भाभी जी को हल्का खाना भी बोला डॉक्टर ने देने को तो वो भी मैं बना कर ले जाती ।
              इतनी सेवा और देखरेख देखकर बगल वाले बेड पर जो दूसरी महिला थी उन्होंने मुझसे पूछा लिया कौन है ये तुम्हारी मम्मी है क्या तो मैंने कहा नहीं मेरी जिठानी है ,तो वो महिला बड़े आश्चर्य से बोली जिठानी , जिठानी के लिए कौन करता है इतना ।
          फिर पंद्रह दिन बाद भाभी जी घर आ गई। भाभी जी हमेशा खूब सारे जेवर पहनकर रखतीं थीं अस्पताल में डाक्टर के कहने पर मैंने सब उतार लिए थे अपने पास रख लिए थे ।
जब भाभी जी वापस घर आ गई तो मैं वो जेवर वापस करने गई । आंखों में आंसू भरकर जेठ जेठानी बोले अनु तुमने जो समर्पण भाव से भाभी की सेवा की है वो अपने बेटा बेटी भी नहीं कर सकते, तुमने नई जिंदगी दी है भाभी को । तुम्हारी वजह से आज जिंदा है भाभी । मैंने कहा मैंने तो अपना फर्ज निभाया है बाकी जिंदगी देने वाला तो ऊपर वाला है ।हर समय मुझे नीचा दिखाने वाली भाभी की आंखों में आज पश्चाताप के आंसू थे ।सच है कब किसी की मदद से किसी को नई जिंदगी मिल जाती है कोई नहीं कह सकता ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश

        #समर्पण #

 

 

 

 

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