Moral stories in hindi: किरण आज दफ्तर में मोहन आया था …..मोहन……
यशवंत जी अपनी पत्नी को कुछ बताते उससे पहले ही किरण उछल कर….. वह मोहन आपका दोस्त जो अमेरिका में रहता है ….. वह यहां आया है…उसका बेटा बड़ा हो गया होगा…..?
यशवंत हां किरण बात तो सुनो…..
किरण लता तो मन ही मन अपनी बेटी मीनू के लिए शादी का ख्वाब देखने लगी ।
यशवंत किरण तुम कहां खो गई ।
किरण लता- कहां उनकी किस्मत और कहां मेरी किस्मत …..
तभी किरण लता मीनू को ढूंढने लगती है……
अरे मीनू तुम रोज-रोज मां के सोते ही मेरे कमरे में क्यों आ जाती हो…… मां को पता लगेगा तो तुम्हें बहुत डांटेंगी……….
जयंती मीनू को समझाते हुए ।
मीनू- दीदी मुझे आपके साथ रहना अच्छा लगता है…. मुझे नहीं पता मां आपको गलत क्यों कहती है , लेकिन मैं जानती हूं आप मुझसे कितना प्यार करती हो मुझसे सगी बहन की तरह प्रेम करती हो… जबकि मां आपसे कितना सौतेलेपन का व्यवहार करती हैं मुझे अच्छा नहीं लगता लेकिन मैं क्या करूं मैं कहती हूं , तो मुझे ही सही….. गलत का पाठ सिखाती है ।
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जयंती- तू तो मेरी जान है ….और खबरदार जो दुबारा सगी बहन और सौतेली बहन की बात की…..
मीनू….. मीनू……. किरण लता अपनी बेटी को आवाज देते हुए जयंती के कमरे में आ जाती है ।
किरण लता- मीनू तुम्हें कितनी बार मना किया है सोने के समय पर सोया करो बातें मत किया करो पता नहीं इस जयंती ने क्या पट्टी पढ़ा दिया इसे ………अब चलो यहां से…
मीनू- हां हां मां मैं जा रही हूं….. सोने दीदी से सुबह क्लास की बातें पूछने आई थी….
किरण लता- जल्दी सो जाओ….. दोबारा ना देखूं मैं तुम्हें यहां वहां और जयंती तुम तुम क्यों नहीं सो रही हो…..
जयंती मां मैं भी सोने ही जा रही हूं , मैं कॉलेज का काम कर रही थी….
किरण लता- बड़ी आई पढ़ने वाली…. सो जा चुपचाप से ।
मीनू जयंती को इशारे में गुड नाइट कहते हुए , और मुस्कुराते हुए चली जाती है…….
सुबह-सुबह जयंती और मीनू दोनों तैयार होकर कॉलेज जाने लगती है तभी किरण लता जयंती को रोकते हुए……. जयंती तुम कहां जा रही हो ।
जयंती- मां मैं कॉलेज जा रही हूं , आज मेरा पेपर है
किरण लता- जयंती तुम्हें दिख नहीं रहा है, मेरी तबियत कितनी खराब है……
जयंती- मां क्या हुआ….?
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मीनू – मां क्या हुआ. ……?? तुम्हें
किरण लता – मेरे सर में दर्द है……
मीनू बस सर में दर्द है यह तो थोड़ी देर में ठीक हो जाएगी मां हम दोनों चलते हैं
किरण लता- तुम चुप हो जाओ तुम अभी छोटी हो , तुम्हें नहीं पता मेरे सिर में कितना दर्द हो रहा है ।
जयंती – मां कोई बात नहीं मैं आपका सर दबा देता हूं और आपको चाय पीनी है तो मैं चाय बना देती हूं ।
किरण लता – तू तो जहर दे दे….. या मेरा गला दबा दे…
जयंती – मां ऐसा मत बोलो…..
मीनू – दीदी मैं मां का सर दबा देती हूं…. आप चाय बना दो ।
किरण लता – मीनू तुम कॉलेज जाओ ।तुम लेट हो जाओगी… जयंती है ना वह मेरे पास रहेंगी।
मीनू- पर मां दीदी का तो पेपर है….. मैं रुक जाती हूं , मेरा तो आज पेपर नहीं है ।
किरण लता- मीनू तुम जाओ तुम्हारी आज एक्स्ट्रा क्लास है….
जयंती – हा मीनू कोई बात नहीं तुम जाओ मैं जल्दी-जल्दी यह सब करके कॉलेज पहुंचती हूं ।
तभी वहां यशवंत जी आ जाते है …..
किरण क्या….. हुआ तुम्हें , जयंती और मीनू तुम दोनों पढ़ने जाओ लेट हो रहे हो मैं हूं आज घर पर मैं तुम्हारी मां का ख्याल रखूंगा ।
जयंती और मीनू दोनों कॉलेज चले जाते हैं….
यशवंत जी किरण जो बात तुम्हें मैं कल बता रहा था वह तो तुम ने सुनी ही नहीं आज शाम को मोहन और उसका बेटा डिनर पर आ रहा है……..
किरण लता – मोहन और उसका बेटा भी आ रहा हूं……
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किरण लता मन ही मन सोचने लगती है, आज तो मैं मोहन से अपनी बेटी मीनू के साथ रिश्ता फिक्स करवा कर ही रहूंगी ।
यशवंत जी किरण तुम ठीक हो…. अगर तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है तो मैं आज मोहन को मना कर देता हूं ।
किरण लता – नहीं नहीं यशवंत मैं ठीक हूं ।
यशवंत जी- किरण मेरी बात सुनो …….?
किरण लता – अरे यशवंत मुझे तैयारी करनी है , तुम अपनी बात को रहने दो अभी ……..मैं बाद में सुन लूंगी ।
यशवंत जी किरण को हो क्या गया है अभी तो उसकी तबीयत ठीक नहीं थीं, जब से सुना है कि मोहन इंडिया आया है तब से यह कुछ अलग ही व्यवहार कर रही है । इसके मन में चल क्या रही है……
यशवंत जी सोचते हुए….चलो जो भी है मेरी बेटी जयंती की शादी मोहन के बेटे कुणाल से हो जाएगी मेरी जयंती की जिंदगी बदल जाएगी । उसने बहुत दुख देखे हैं…. यशोदा तुम देख रही हो ना तुम्हारी बेटी के लिए खुद अमेरिका से मोहन रिश्ता लेकर आया है….. तुम्हारी कमी मैं जयंती को महसूस नहीं होने दूंगा । आंखें नम करते हुए यशवंत जी जयंती कि मां यशोदा की तस्वीर से बात करते हुए ।
तभी किरण लता अरे यशवंत तुम यहां क्या कर रहे हो , इस तस्वीर के साथ छोड़ो इसे……जल्दी से बाजार जाओ इसमें जो जो सामान लिखा है यह सब सामान ला दो ।
यशवंत अच्छा ठीक है मैं थोड़ी देर में जाऊंगा , और आते वक्त जयंती और मीनू को भी लेते हुए आऊंगा ।
किरण लता – यशवंत सुनो ना तुम एक काम करना जयंती को आज उसकी नानी के यहां छोड़ आना……
यशवंत जी- क्यों…… जयंती यहां रहेगी तो तुम्हें क्या दिक्कत है ।
किरण लता- अच्छा-अच्छा ठीक है तुम दोनों को ले आना अब मूड मत खराब करो और जाओ……
शाम हो जाती है किरण लता- उत्सुकता के साथ यशवंत मोहन जी आए नहीं अभी तक…..
यशवंत- हां मैंने फोन किया था आधे घंटे में आ जाएगा और जयंती कहां है…..
किरण लता – आ रही है जयंती भी मैंने आइसक्रीम के लिए भेजा है…..
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यशवंत जी- किरण तुम्हें जयंती को नहीं भेजना था…?
किरण लता अरे यशवंत तुम तो ऐसे रियट कर रहे जैसे मैंने उसे शहर से दूर भेज दिया है।
यशवंत जी- सुनो किरण जयंती जब आए उसे बढ़िया कपड़े………
किरण लता – अरे मोहन जी आप आ गए यशवंत उठो जयंती आ जाएगी तुम चिंता मत करो ।
मोहन जी – अरे मेरा जिगरी यार कैसा है…. और भाभी जी आप कैसी हो यशवंत बच्चे कहां है अब तो मीनू भी बड़ी हो गई होगी…..
झट से किरण लता हा हा मोहन भाई साहब मीनू बड़ी हो गई है और सुंदर भी और संस्कार की तो बात ही ना करें…..
यशवंत जी- आओ मोहन आओ बैठो बैठकर बातें करते हैं किरण चाय नाश्ता लेकर आओ।
किरण लता – चाय नाश्ता ही क्यों मैं तो 56 भोग लगाऊंगी मोहन भाई साहब के लिए । और बोलते हुए किचन की तरफ चली जाती है ।
मोहन जी – जयंती बेटी कहा है ……
यशवंत – मोहन वो आ रही है , किसी काम से बाहर गई है।
तभी किरण लता आती है और कुणाल के बारे में पूछती है अरे मोहन भाई साहब कुणाल बेटा कहां है…..?
मोहन – भाभी जी आ रहा है गाड़ी पार्क कर रहा था ।
किरण लता- अच्छा-अच्छा भाई साहब . ….
तभी वहां कुणाल और जयंती एक साथ घर में आते हैं….
यशवंत जी – अरे कुणाल बेटा जयंती कहां मिली तुम्हें….
कुणाल वह अंकल मैं जहां गाड़ी पार्क कर रहा था वहां पर किसी दूसरे की गाड़ी से मेरी गाड़ी टच हो गई और वह मुझसे झगड़ने लगा…….. तभी वहा पर जयंती ने आकर बातों को संभाल लिया ।
मोहन और यशवंत मंद मंद मुस्कुराने लगे।
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किरण लता बस बस कुणाल बेटा इसकी इतनी तारीफें मत करो। कौन सा पहाड़ खोद दिया इसने……जयंती तुम अपने कमरे में जाओ और मीनू को देखो तैयार हुई या नहीं ।
जयंती वहां से चली जाती है …..
मोहन जी- अरे यशवंत मैं जिस काम के लिए यहां आया हूं। वह तो करो ।
यशवंत जी – हां हां मोहन ……
तभी वहां मीनू तैयार हो कर और जयंती उन्हीं सादे कपड़ों में आती है ।
किरण लता – अरे मीनू आ गई …..चाय नाश्ता दो सबको और जयंती तुम किचन में देख लो । अरे मोहन भाई साहब मेरी बेटी मीनू से मिलो, है ना लाखों में सुंदर ना…..ना लाखों में नहीं करोड़ों में ।
यशवंत और मोहन कुछ समझ पाते तब तक किरण लता मोहन भाई साहब मैं क्या सोच रही हूं कि आप यशवंत के इतने अच्छे दोस्त हैं क्यों ना इस दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल दिया जाए ।
यशवंत सोचने लगता है कि मैं तो किरण को बता ही नहीं पाया….. मोहन यहां क्यों आ रहा है किरण ने खुद ही प्रस्ताव रख दिया । वाह …..वाह
मोहन – हा हा भाभी जी मैं यहां इसी काम के लिए तो आया हूं ।
यशवंत – किरण तुम कैसे जान गई कि मोहन यहां कुणाल के रिश्ते की बात करने आए हैं ।
किरण लता -बोलिए ना भाई साहब आपको यह रिश्ता मंजूर है मेरी बेटी आपके घर की बहू बनेगी इससे और अच्छी बात क्या होगी….??
मोहन- अरे भाभी जी मैं तो बेसब्री से इंतजार कर रहा हूं ।
किरण लता -अरे मीनू इधर आओ , और आकर पैर छुओ सबका ।
यशवंत और मोहन एक दूसरे को देखते हुए क्या मीनू……..?
नहीं नहीं भाभी जी मैं तो जयंती की बात कर रहा हूं।
किरण लता – अरे यशवंत , मोहन भाई साहब मैं बताना भूल गईं थीं कि मैंने जयंती का विवाह अपने दूर की मुंहबोली बहन के बेटे से तय कर दिया है ।
यशवंत- तुम्हारी बहन कौन सी बहन मैं तो आज तक नहीं मिला ।
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जयंती और मीनू यह सब देखकर हैरान हो जाती है ।
किरण लता – यशवंत तुम इधर आओ अंदर चलो मुझे तुमसे बात करनी है । अगर कुणाल से मीनू का विवाह नहीं हुआ तो मैं जयंती का भी विवाह नहीं हूं , और मैं जहर खाकर मर जाऊं।
तभी जयंती आ जाती है पापा मुझे अभी शादी नहीं करनी है मुझे पढ़ाई करनी है और मां ठीक ही तो कह रही है , अगर मीनू की शादी हो जाएगी इससे बड़ी खुशी की बात क्या होगी।
जयंती बाहर जाकर अंकल मुझे यह रिश्ता मंजूर नहीं है, मुझे अभी पढ़ना है ।
मोहन – जयंती बेटा तुम शादी के बाद भी पढाई कर सकती हो मुझे इससे कोई दिक्कत नहीं है ।
जयंती – अंकल मैं क्षमा चाहूंगी, लेकिन मेरी मां ने जहां मेरी शादी तय की है मैं वही करूंगी ।
मीनू – क्या कोई मुझसे पूछेगा कि मुझे क्या करना है….?
किरण लता – मीनू तुम अभी यहां से जाओ।
मीनू नहीं मां मैं नहीं जाऊंगी मुझे यह शादी मंजूर नहीं ।
जयंती – मीनू ऐसा नहीं बोलते , और तुम चिंता क्यों करती हो मां ने जिस लड़के से मेरी शादी तय की है वह भी लड़का अच्छा ही होगा ।
किरण लता-हां हां जयंती बहुत अच्छा रिश्ता है तेरे लिए ।
यशवंत – जयंती तुम चुप हो जाओ ।
किरण लता- तुम जयंती को कुछ मत कहो तुमसे समझदार जयंती है ।
यशवंत चुप हो जाता है, और यह शादी मीनू के साथ तय हो जाती है।
शादी वाले दिन किरण लता जयंती को समझाते हुए देखो जयंती तुम शादी में मत आना ।
जयंती – मां ठीक है आप जैसा कहोगे मैं वैसा ही करूंगी मैं नहीं आऊंगी शादी में लेकिन मैं मीनू को घर पर तो तैयार कर सकती हूं ।
जयंती का सोतेली मां के प्रति समर्पण देखकर मीनू हैरान हो जाती है , कि मेरी मां जयंती के साथ कितना गलत करती है फिर भी जयंती अपने अधिकार के लिए क्यों नहीं कुछ कह पाती है । अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा ।
मीनू – दीदी आप ही मुझे तैयार करोगे ।
जयंती और मीनू कमरे में चली जाती हैं ।
सब मंडप में दुल्हन का इंतजार कर रहे हैं ,
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किरण लता- मैं मीनू को लेकर आती हूं,
यशवंत जी लो मीनू भी आ गई, अपनी सहेलियों के साथ।
किरण लता यह सब देखकर के बहुत खुश होती है,
शादी की सभी रस्में पूरी हो जाती है
पंडित जी-नव वर वधु सभी बड़ों का अब आशीर्वाद ले ।
दूल्हा दुल्हन पंडित जी का आशीर्वाद लेकर किरण लता के पास पहुंचते है
किरण लता मीनू को गले लगा कर मीनू मेरी बच्ची तू खुश है ना,
मीनू कुछ भी जवाब नहीं देती है,
किरण लता मीनू बोलना तू खुश है ना मेरी बच्चे ।
मीनू की आवाज आती है हां मां मैं बहुत खुश हूं ।
सब मीनू की तरफ देखकर हैरान रह जाते हैं ।
किरण लता घूंघट उठाकर जयंती तुम ।
मीनू हां मां यह जयंती दीदी है आप उनका अधिकार कैसे छीन सकती हो , वह मेरी बड़ी बहन है और बड़ी बहन से पहले मैं शादी कैसे कर सकती थी ।
किरण लता को ऐसा लग रहा था जैसे मानो पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई हो ।
किरण लता – मीनू तुमने यह सब क्यों किया जरूर इस जयंती ने पट्टी पढ़ाई होगी ।
मीनू मां दीदी को कुछ मत कहो मां अपने दीदी की शादी जिस लड़के से तय किया , मैंने उसके बारे में पता लगाया है , वह मेंटली पागल है । आपने ऐसा सोचा भी कैसे ।
किरण लता- मीनू तुम नादान हो ना समझ हों, तुम्हें सही गलत का अंदाजा भी नहीं है।
मीनू – मां मैं सब जानती , अब आप चिंता ना करें ,
यह शादी हो चुकी है ।
लोगों ने मीनू का अपने बहन के प्रति समर्पण देखकर बहुत तारीफ की ,
कि दोनों बहनों में प्रेम हो तो ऐसी , एक दूसरे के लिए दोनों ने अपनी खुशियों के लिए बलिदान देने चली थी ।
कामिनी मिश्रा कनक
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