सौतन का समर्पण – गीता वाधवानी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: ममता स्कूटी पर अपनी बेटी आशी को स्कूल छोड़ने जा रही थी। उसके पति आशीष पास के अस्पताल में ही डॉक्टर थे। आशी  8 -9 साल की एक होशियार लड़की थी। स्कूटी पर बैठे-बैठे आशी ने कहा-“मम्मी मम्मी, वह देखो पापा की कार, पापा के साथ कोई आंटी बैठी है।” 

ममता-“बेटा, पापा तो इस समय ऑपरेशन थिएटर में ऑपरेशन कर रहे होंगे, तुमने किसी और की गाड़ी को देखा होगा।” 

आशी-“क्या मम्मी, गाड़ी को पहचानने में गलती कर सकती हूं लेकिन पापा को पहचानने में नहीं।” 

ममता-“हो सकता है किसी पेशेंट को देखने जा रहे हो।” 

आशी-“हां , यह तो आपने सही कहा।” 

बात आई गई हो गई। थोड़े दिनों बाद आशी को स्कूल से वापस लाते समय लाल बत्ती पर रुके हुए अपने आगे खड़ी टैक्सी पर ममता का ध्यान गया, तब उसे लगा कि अंदर आशीष किसी के साथ बैठा है, पर फिर उसने सोचा कि हमारे पास तो अपनी कार है तो आशीष टैक्सी में क्यों कहीं जाएगा। यह सोचकर उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। 

अगले दिन आशी की सहेली वेदिका का जन्मदिन था। वेदिका की मम्मी ने ममता को भी जन्मदिन पार्टी के लिए बुलाया था। ममता ने आशीष से सुबह ही कह दिया था कि हम दोनों शाम को थोड़ी देर से वापस आएंगे, आप घर की चाबी पास वाले पड़ोसी से ले लेना। 

दोनों निश्चिंत होकर जन्मदिन पार्टी में चली गई। दोनों जब वापस घर के लिए वेदिका के फ्लैट से नीचे उतरी तो उन्होंने देखा कि आशीष की गाड़ी खड़ी है और उसमें से कोई उतर रहा है आशीष उसे बाय-बाय कर रहा है। गाड़ी से उतरने वाली सुंदर लड़की लगभग 25- 26 साल की थी। ममता और आशीष वापस घर आ गई ,उनके पहुंचने से पहले आशीष घर पहुंच चुका था। 

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ममता ने आशीष से पूछा-“आज का दिन कैसा रहा?” 

आशीष-“बहुत थकने वाला था। सीधा ओ टी से निकल कर आ रहा हूं। खाना लगा दो,खाकर आराम करूंगा।” 

ममता-“अस्पताल तो आपका आशी के स्कूल की तरफ है पर मुझे लगा कि आपकी गाड़ी को मैंने अपोजिट साइड से आने वाली सड़क पर जो सोसाइटी है वहां देखा।”ऐसा कहते कहते वह आशीष के चेहरे की तरफ ध्यान से देख रही थी। 

आशीष-“अरे ! तुम वहां थी क्या? मैं तो अपने अस्पताल की नर्स जूली को वहां छोड़ने गया था। वह वहां किराए पर रहती है।”ममता को सब कुछ ठीक लगा उसने कहा-“अच्छा”बात वही खत्म हो गई। 

थोड़े दिनों बाद आशी के स्कूल की छुट्टियां होने वाली थी। आशी, ममता के पीछे पड़ी हुई थी कि इस बार कहीं और घूमने नहीं जाना। बस नानी के घर मुंबई ही जाना है। आशीष ने दो टिकट एरोप्लेन की बुक करवा दी थी। 

छुट्टियां होते ही दोनों मां बेटी सामान पैक करके खुशी-खुशी मुंबई के लिए निकल पड़ी। एयरपोर्ट पर जाकर पता लगा कि मुंबई में अचानक भयंकर बारिश के कारण फ्लाइट रद्द कर दी गई है। अब ममता और आशी के पास घर लौटने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। दोनों टैक्सी लेकर वापस घर आ गई।

घर पहुंच कर दरवाजे पर घंटी बजाई तो दरवाजा एक लड़की ने खोला, जो कि दरवाजा खोलने के साथ-साथ पीछे मुड़कर आशीष से कह रही थी कि देखा आपने मैंने कहा था ना कि”20-25 मिनट में केक आ जाएगा।”ऐसा कहते हुए जैसे ही उसने सामने की ओर देखा तो वह ममता और आशी को देखकर भौचक्की रह गई। उसके चेहरे का रंग सफेद हो चुका था मानो उसकी कोई चोरी पकड़ी गई हो। साथ ही ऐसा ही हाल आशीष का भी था। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि ममता ऐसे अचानक वापस आ जाएगी। 

     ममता ने परिस्थिति को समझते हुए, आशी को सोने के लिए भेज दिया और फिर आशीष से पूछा-“यह कौन है और यहां क्या कर रही है?” 

आशीष-“ममता, यह जूली है और मैं इसे प्यार करने लगा हूं।” 

ममता गुस्से से बोली-“कहते हुए शर्म भी नहीं आ रही तुम्हें, कम से कम अपनी बेटी के बारे में तो सोचा होता, क्या असर पड़ेगा उस पर, मेरी सेवा और समर्पण में कौन सी कमी रह गई थी?” 

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फिर जूली से बोली-“और तुम, तुम तो पढ़ी लिखी समझदार लड़की हो, नर्स भी हो। तुम्हें तो समझना चाहिए कि यह एक विवाहित पुरुष का आकर्षण है प्यार नहीं। तुमने तो मेरा घर ही तोड़ दिया। तुम जीवन में कभी खुश नहीं रहोगी।” 

जूली-“ऐसा मत कहिए, प्यार तो किसी से भी हो जाता है, प्यार विवाहित अविवाहित, जात पात, काला गोरा कुछ नहीं देखता।” 

ममता गुस्से में-“तुम क्या समझोगे प्यार के बारे में, तुम तो आकर्षण में पड़ी हुई अंधी लड़की हो। प्यार सिर्फ पाना ही नहीं होता, प्यार त्याग भी होता है। इतनी ही समझदार हो तो, आशीष को अपनी तरफ बढ़ने से पहले रोका क्यों नहीं। देख लेना एक ना एक दिन मेरी बद्दुआ तुम्हें जरूर लगेगी और तुम्हारे मां बाप जिन्होंने तुम्हें संस्कार दिए ही नहीं वह भी कभी खुश———-” 

ममता ने अभी अपना वाक्य पूरा भी नहीं किया था कि जूली चीखी-“प्लीज ममता जी, मेरे माता-पिता को कोई बद्दुआ मत दीजिए। उन्होंने जीवन भर बहुत दुख उठाए हैं बस अब और नहीं। मुझे पता नहीं था कि मेरी करनी मेरे माता-पिता पर भारी पड़ेगी। मुझे माफ कर दीजिए ,मैं यहां से चली जाऊंगी।” 

ममता चुप हो गई लेकिन उसे लग रहा था कि आशीष शायद जूली को जाने नहीं देगा। 

सुबह होते ही जूली घर से निकलने लगी तो उसने सोचा कि जाते-जाते एक बार फिर से ममता से माफी मांग लेती हूं। वह ममता के कमरे में जाकर उसे पुकारने लगी, पर उसने कोई जवाब नहीं दिया। जूली ने उसे छुआ। तब उसे संदेह हुआ कि जरूर कुछ गड़बड़ है। उसने तुरंत आशीष को बुलाया। ममता बेहोश थी। उसे तुरंत अस्पताल ले गए और पता चला कि ममता ने कोई जहरीला पदार्थ खा लिया है। उसके जीवन को तो बचा लिया गया लेकिन जहर ने अपना असर दिखा दिया था और वह दोनों पैरों से अपाहिज हो चुकी थी। 

जूली आत्मग्लानि के कारण बहुत रो रही थी। तब उसने फैसला लिया कि आशीष से दूरी बनाते हुए वह उन्हीं के घर में रहकर, आशी को पालेगी और ममता की सेवा तब तक करेगी, जब तक कि वह पूरी तरह ठीक ना हो जाए। 

जूली कई वर्षों तक ममता की सेवा करती रही। ममता  पहले कुछ वर्षों तक जूली से बहुत नाराज रही।वह जूली से बात भी नहीं करती थी, पर बाद में अपनी सौतन का समर्पण देखकर ममता का दिल पिघलने लगा था। उसे  लगने लगा था कि जूली एक अच्छी लड़की है। अपने अपराध बोध के कारण उसने किसी और जगह पर शादी के लिए कभी हां नहीं की थी और पूरी सच्चाई अपने माता-पिता को बताकर उनसे भी माफी मांगी थी। अब ममता धीरे-धीरे दिल से उसे माफ करने लगी थी। 

स्वरचित अप्रकाशित 

गीता वाधवानी दिल्ली

        #समर्पण #

 

 

 

 

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