परम्परा के लीक से हटकर एक नई पहल -सुषमा यादव

,हम भारतीय अपनी जिंदगी में बहुत से पुरानी प्रथाओं , परम्पराओं और रीति रिवाजों से अपने पुर्वजों के जड़ों से जुड़े हुए हैं,, इनमें बहुत सी कुरीतियों और कुप्रथाओं तथा अंधविश्वासों से धीरे धीरे हम मुक्ति पा रहें हैं,,

पर कुछ रीति रिवाज, संस्कार ऐसे भी हैं,जो हमें निभाने पड़ते हैं, लेकिन हम समयानुसार उसमें थोड़ा बदलाव तो कर ही सकते हैं,,जो परोपकार और मानवता की दिशा में हमारा पथप्रदर्शक बने,

,इसी कथन को चरितार्थ करती ये

एक सच्ची कहानी आपको बताने जा रही हूं,,इसे पढ़कर हमें ये सोचने पर मजबूर होना पड़ रहा है कि हम भी तो इसका अनुसरण करके अपने परम्परागत सोच में कुछ तो परिवर्तन ला सकते हैं,, केवल इसी में क्यों,, और भी कई रीति रिवाज हमारे समाज में हैं, उनमें भी,,,

 

,, चलिए,, एक प्रेरक प्रसंग अभी हाल ही का है,आपको बताने जा रहीं हूं,,

,, अपने बेटे की सड़क दुघर्टना में देहांत के बाद पिता ने परम्पराओं के खिलाफ जा कर एक बहुत ही उच्च कोटि की मिसाल कायम की है,,

पिता ने अपने बेटे की आत्मा की शांति के लिए कर्म काण्ड और विधि विधान से पूजा पाठ कराया,

जवान बेटे की असमय हुई मृत्यु से सदमे में आये परिजन ने तय किया कि अपने बेटे की मौत के बाद वो तेरहवीं भोज का कार्यक्रम नहीं करवायेंगे, बल्कि एक अस्पताल में जरुरत का सामान और पीड़ित मरीजों को सामग्री दे कर बेटे की स्मृतियों को यादगार बनायेंगे, इसके अलावा समाज सेवा का कार्य भी करेंगे,,

उनके इस निर्णय का सबने सम्मान किया और पिता अपने परिजन के साथ जिला अस्पताल सामग्री देने पहुंचे,, अस्पताल के लिए चार पलंग, छः सीलिंग फैन,दो स्ट्रेचर,दो व्हील चेयर, और कुछ अन्य सामान लेकर उन्होंने सिविल सर्जन को सारी सामग्री सौंप दी,

इसके अतिरिक्त अपने बेटे की स्मृति में अपने समाज के गरीब परिवार की कन्याओं के विवाह के लिए पचास हजार रुपए दान किया है, जिससे कि गरीब की बेटी का घर बस सके,,

बेटे के पिता ने बहुत ही सारगर्भित वाक्य कहा कि*** हमें समाज में रहकर समाज के साथ ही चलना है*** ,, इसलिए तेरहवीं भोज के बजाय हमने गंगा जल पूजन, ब्राह्मण भोज, और कन्या भोज कराया है,,

हम उनके इस सराहनीय कार्य की प्रशंसा करते हैं,,

अब आप तरह तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त करेंगे,,जब इतना किया तो तेरहवीं भोज क्यों नहीं कराया,,या शादी में भी फिजूलखर्ची रोके,, हमें बस किसी की अच्छाइयों को ग्रहण करना है, यदि हममें सामर्थ्य है तो हम भी अपने किसी प्रिय की यादगार में अस्पताल या जरूरमंद की इसी तरह से मदद कर सकते हैं,,इस घटना से हमें प्रेरणा तो मिली है, और आपका इस विषय में क्या कहना है, अवश्य अवगत करायें,,बस सकारात्मक सोच के तहत,, बहुत बहुत धन्यवाद आभार आपका

 

सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ, प्र,

स्वलिखित,,

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