“परिपक्वता”- ऋतु गुप्ता   : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : पूरे घर में जब से पता चला है कि उनकी प्यारी श्रेया किसी अबराम फल वाले को पसंद करती है, मिलती है, अभी उम्र ही क्या है श्रेया की, अभी पिछले महीने ही तो 18 वर्ष की पूरी हुई है।

हमारे प्यार, लाड दुलार का और हमारी छूट का श्रेया ने नाजायज फायदा उठाया है, पर हम ऐसा नहीं होने देंगे, अपनी श्रेया की जिंदगी यूं तबाह बर्बाद नहीं होने देंगे ।श्रेया तो अभी बच्ची है, अपना बुरा भला बुरा कहां समझती है,?

श्रेया के पापा को शक है कि ये अबराम नाम का लड़का उनकी बोली साली श्रेया को बहका रहा है,वो इसी चिंता में घुले जा रहे थे और बरामदे में इधर से उधर चक्कर लगा श्रेया के आने का इंतजार कर रहे थे।

अच्छी खासी लड़की पढ़ने में होशियार ,स्पोर्ट्स में नम्बर वन,हर किसी चीज  में नंबर वन, पता नहीं किस तरह इसका ब्रेनवाश किया है उस अबराम ने, कि घर में किसी की भी सुनने को तैयार नहीं।  ये किशोर उम्र होती ही ऐसी है कि किसी की भी बात समझ नहीं आती। बस कहती है मैं 18 बरस की बालिग हो गई हूं, अपना अच्छा बुरा सब अच्छे से समझती हूं।

श्रेया के पापा मन ही मन सोच रहे थे कि क्या 18 बरस की उम्र होने पर जिंदगी भर के अनुभव एक साथ समझ आ जाते हैं ,क्या मात्र वोट देने की छूट मिलने पर बच्चे इतने समझदार हो जाते हैं कि जो मां-बाप आज तक उनका भला बुरा समझते हुए आए हैं अब वो एकदम से नकार दिए जाए। इतना सब सोचते-सोचते श्रेया के पापा का दिल भर आता है, आंखे नम होने लगती है उन्हें पता है कि श्रेया एक अच्छी बच्ची है पर यह किशोरावस्था होती ही ऐसी है।

श्रेया के लौटने पर उसके पापा आंनद जी उसे समझाते  हैं कि  बेटा परिपक्वता कोई शरबत नहीं है कि 18 वर्ष पूरे किए और दुनियाभर   की समझ एक साथ  आ जाये , परिपक्वता तो जिंदगी के उतार-चढ़ावो से धीरे-धीरे ही समझ आती हैं।

पर श्रेया कहां मानने को तैयार है, सुनने को तैयार नहीं, कहती है कि शादी करेगी तो सिर्फ अबराम से, नहीं तो आत्महत्या कर लेगी, अपनी जान दे देगी पर जिंदगी अबराम के साथ ही गुजारेंगी।

यह किशोर उम्र  का ही असर है कि सिर्फ खुद का नजरिया सही लगता है बाकी सारी दुनिया गलत दिखाई देती है।

मम्मी पापा, दादी बाबा, यहां तक कि छोटे भाई आदित्य ने भी श्रेया को समझा लिया, पर वो मानने को तैयार नहीं। 

उसकी आंखों पर तो सिर्फ अबराम के झूठे प्यार की पट्टी बंधी है, जिससे उसे सही गलत का फर्क नजर नहीं आ रहा। उसे तो अपनी जिंदगी में फिल्मों जैसे रंगीन ख्वाब दिखने लगते हैं,पर  उस नासमझ को कहां मालूम है कि असल जिंदगी और फिल्मी दुनिया में बहुत अंतर होता है।

उसे इस बात का अहसास तक नहीं की एक लड़की की जिंदगी एक नट की तरह होती है जो एक रस्सी पर चलती जाती है कि जरा सी नजर हटी और दुर्घटना घट जाती है। यह दुनिया वासना की भूखी है प्रेम की नहीं। सच्चा प्रेम तो मां-बाप ही अपने बच्चों से करते हैं। पर यह श्रेया का दुर्भाग्य ही है कि उसे किसी की बात समझ नहीं आ रही है।

घर वालों ने भी उसकी जिद के आगे हथियार डाल दिए, लेकिन पापा ने समझदारी दिखाते हुए एक शर्त रखी कि पहले उसे अपनी पढ़ाई पूरी करनी होगी ,अपने पैरों पर खड़ा होना होगा, और तब तक वो अबराम से नहीं मिलेगी, तब जाकर हम तुम्हारी शादी उस अबराम से करेंगे। श्रेया मान जाती है, पर मन में थोड़ा  अविश्वास और असमंजस की स्थिति है कि क्या घरवाले वाकई  मान जायेंगे।

श्रेया मन ही मन सोचती है कि जो घरवाले उसकी बात सुनने को तैयार नहीं थे, अब एकदम से किस तरह से तैयार हो गए ,उसकी बात इतनी आसानी से घर वालों ने कैसे मान ली। उसके मन में हजार सवाल चल रहें है।

उधर श्रेया के पापा आनंद जी ने घर में सब को समझा दिया है कि हर कोई श्रेया के प्रति नॉर्मल व्यवहार रखेगा, उधर खुद  आनंद जी ने भी चौबीसों घंटे श्रेया पर नजर रखनी शुरू कर दी है,पर इस तरह की उसे शक ना हो।

एक दिन श्रेया ने चुपचाप घर से भागने की प्लानिंग की, जब पापा को इस बात का अंदाजा हुआ तो  परेशान तो बहुत हुए, लेकिन उन्हे अपनी बेटी को यह समझाना था कि उसके परिवार वाले हमेशा अपनी बेटी का भला ही चाहेंगे, वो इस बात को श्रेया को बिना लड़ाई झगड़े के शान्ति से समझाना चाहते थे।

वे श्रेया पर अब चुपचाप और ज्यादा नजर रखने लगे। जिस रात श्रेया अबराम के साथ घर से भागने वाली थी , श्रेया के पापा ने घर में बताया कि आज उनकी एक जरूरी मीटिंग है,और वे ऑफिस से रात को घर नहीं आ पाएंगे।

ये सुनकर श्रेया मन ही मन बहुत खुश हो जाती है  कि चलो उसका काम आसान हो गया। वह रात को घर में सब के सो जाने के बाद अपना बैग पैक कर के बाहर निकली ,तो अबराम घर के बाहर बाइक पर उसका ही इंतजार कर रहा था।

श्रेया अपने साथ घर से कुछ रुपए और कुछ जेवर भी ले आई थी, क्योंकि अबराम ने उसे कहा था कि जब तक उसे नौकरी नहीं मिलती तब तक के लिए कुछ रकम हाथ में होनी ही चाहिए, पर श्रेया बड़ी भोली थी उसे अबराम के मंसूबे  कहां समझ आ रहे थे, वह तो बस कच्ची उम्र के प्रेम के ख्वाबों में बहे जा रही थी।

जैसे ही वे दोनों निश्चित स्थान पर पहुंचे, अबराम के पास दो लड़के और आ गये, उन लड़कों को देखकर श्रेया का माथा ठनका, पर अब क्या हो सकता था, श्रेया को किसी अनहोनी की आशंका होने लगी, श्रेया अचानक अबराम का हाथ छुड़ाकर भागने लगी,लेकिन भाग न सकी, रोने लगी, अपने पापा की बातें याद करने लगी, कि वास्तव में मैच्योरिटी कोई शरबत नहीं है कि 18 वर्ष पूरे हुए और आ गई।

उसे आज अपने किए पर पछतावा हो रहा था, सोच रही थी कि घर वालों ने मुझे कितना समझाया पर उसने अबराम की बातों में आकर किसी की भी एक न सुनी, उसने परिवार की ओर से मिली आजादी और छूट का नाजायज फायदा उठाया।

 उसके पापा मम्मी ने क्या-क्या सपने देखे थे उसके भविष्य को लेकर कितना गर्व था उन्हें अपनी मेधावी बेटी पर, पर उसने क्या किया आज उनका सर शर्म से झुका दिया और अपनी जिंदगी तबाह कर ली ।यह तो होना ही था क्योंकि वह अंगारों पर चल रही थी ,जिसका आभास उसे आज हुआ ।इतना सोचते सोचते उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया और वह गश खाकर गिरने ही वाली थी कि…

तभी सामने से चार पुलिस वालों के साथ उसके पापा ने आकर अबराम और उसके आवारा दोस्तों को पकड़ लिया। श्रेया के पापा ने श्रेया को संभाल लिया। श्रेया की हिचकियां बंध गई, श्रेया पापा के सीने से लगकर फूट-फूट कर रोने लगी, पापा ने भी अपनी लाडली को रोने से रोका नहीं, क्योंकि वे जानते थे कि आज का सबक उनकी बेटी के जीवन में परिपक्वता का आरंभ कर चुका है,और वे खुश भी थे कि बिना किसी लड़ाई झगड़े और डांट डपट के उन्होंने समझदारी और परिपक्वता से अपने रिश्तो और बेटी के भविष्य को मैला होने से बचा लिया।

ऋतु गुप्ता

खुर्जा बुलन्दशहर

उत्तर प्रदेश

#शक

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