मिट गया संदेह – शिखा श्रीवास्तव  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : रमाकांत जी यूँ तो बहुत सुलझे हुए विचारों के इंसान थे लेकिन जब से उनके बेटे रवि की शादी हुई थी तब से उनका व्यवहार एकदम बदल सा गया था, जबकि उनकी बहू पूजा उनका पूरा ख्याल रखती थी, उन्हें पूरा मान-सम्मान देती थी।

रसोई के हर सामान पर रमाकांत जी की नज़र होती थी। अक्सर ही वो बहू को डाँट देते “अभी तो राशन आया था, इतनी जल्दी कैसे खत्म हो गया? तुम्हारी सास इतने में पूरा महीना चला लेती थी।”

जब भी रवि और पूजा कहीं बाहर जाने की सोचते, अचानक ही रमाकांत जी के सिर में दर्द शुरू हो जाता।

रवि को ये सब देखकर गुस्सा आ जाता लेकिन पूजा उसे ये कहकर शांत कर देती “जाने दो, माँ के बिना पापा अकेले हो गये हैं। हमें ही उनका ख्याल रखना है, उन्हें संभालना है।”

शादी के बाद घर-गृहस्थी की जिम्मेदारियों में उलझी हुई पूजा एक दिन के लिए भी अपने मायके नहीं जा सकी थी। उसे अक्सर ही अपनी सासु माँ की बहुत याद आती थी। उनकी तस्वीर के आगे दिया जलाते हुए वो मन ही मन उनसे बातें करती हुई कहती “माँ, आज अगर आप होतीं तो शायद इस घर के हालात कुछ अलग होते। आप मुझे प्यार से अपने तौर-तरीकों को सिखाने के साथ-साथ मेरी भावनाएं भी समझतीं। अपने सिर पर आपके स्नेहिल स्पर्श की कमी बहुत खलती है मुझे।”

रवि उसकी तकलीफ समझता था और चाहता था कि पूजा कुछ दिनों के लिए जाकर अपने माता-पिता से मिल ले लेकिन जब भी पूजा के जाने की बात उठती रमाकांत जी ना जाने कहाँ-कहाँ से काम ढूँढ़कर पूजा को उसमें उलझा देते और उसका जाना टल जाता।

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देखते ही देखते छः महीने बीत चुके थे। एक दिन पूजा के मायके से किसी कार्यक्रम का न्योता आया। वो बहुत खुश थी। उसे पूरा भरोसा था कि रमाकांत जी इस बार उसे नहीं रोकेंगे।

रवि के साथ मिलकर उसने मायके जाने की सारी तैयारीयां कर ली। शाम को रवि उसे लेकर जाने वाला था।

पूजा सबके लिए रात का खाना बना रही थी कि अचानक रमाकांत जी “बुखार हो गया, मेरा तो सिर दर्द से फटा जा रहा है” कहकर पूरे घर को सिर पर उठाने लगें।

पूजा भागी-भागी उनके पास पहुँची और उन्हें दवा देकर आराम करने के लिए कहा।

फिर अपने कमरे में पहुँचकर उसने रवि को फोन लगाया।

रमाकांत जी के कानों में जैसे ही पूजा की आवाज़ गयी वो उठकर चुपके से उसकी बातें सुनने लगे।

पूजा कह रही थी “रवि, मैं समझती थी कि पापा अकेलेपन के कारण चिड़चिड़े हो गये हैं। इसलिए मैंने कभी उनकी बातों का बुरा नहीं माना। मैंने हर संभव कोशिश कि उनका ख्याल रखने की, उनकी पसंद से घर चलाने की लेकिन अब लगता है पापा मुझे बिल्कुल पसंद नहीं करते हैं इसलिए उन्हें मेरे सुख-दुख का, मेरी इच्छाओं का जरा सा भी ख्याल नहीं आता है।

मैं तुमसे ये नही कहूंगी कि तुम अपने बूढ़े पिता को मेरे लिए छोड़ दो लेकिन अब मैं यहाँ से जा रही हूँ ताकि पापा सुकून से रहें।”

ये सुनकर रमाकांत जी के पैरों तले ज़मीन ही खिसक गयी। पूजा के बिना वो इस घर की कल्पना भी नहीं कर पा रहे थे। पहली बार उन्हें उनकी गलती का अहसास हुआ। वो भागे-भागे गये और पड़ोस की मिठाई दुकान से एक बड़ा डब्बा लेकर आये।

पूजा के हाथ में डब्बा रखकर रमाकांत जी बोलें “बेटी ये मेरी तरफ से तुम्हारे परिवार के लिए है। मैंने तुम्हारी सारी बातें सुन लीं जो तुम रवि से कह रही थी। माफ नहीं करोगी अपने पापा को? अपना घर छोड़कर मत जाना।”

अपनी बात कहते-कहते रमाकांत जी रो पड़े।

पूजा ने उनके आँसू पोंछते हुए कहा “भला पिता भी कभी बच्चों से माफी मांगते हैं? वो तो आशीर्वाद देते हैं।”

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अपने व्यवहार के पीछे छुपी हुई वजह पूजा को बताते हुए रमाकांत जी बोले “जब से सामने वाले घर की बहू ने अपने सास-ससुर को घर से निकाला तब से मैं संदेह में घिरकर डर गया था कि कहीं मेरे साथ भी ऐसा ना हो। इसलिए मैं तुम्हें डराकर रखना चाहता था। मैं सोचता था अगर तुम बार-बार मायके जाओगी तो सब तुम्हें अलग रहने के लिए भड़का देंगे लेकिन मैं ये भूल गया था रिश्ते डर से नहीं प्यार से मजबूत होते हैं। ये मेरी गलती थी कि मैंने अपने बच्चों को जाने-समझे बिना उन पर बेफिजूल संदेह किया, उनकी नियत पर भरोसा नहीं किया। अपने पापा को अकेला मत छोड़ना बेटी।”

रमाकांत जी की बात सुनकर पूजा हैरान भी थी और खुश भी कि अब उनके मन में बसे सारे पूर्वाग्रह दूर हो चुके थे।

उसने स्नेह भरे स्वर में कहा “पापा आप कभी सपने में भी ऐसा मत सोचियेगा। आप तो इस घर का आधार हैं। भला आधार के बिना भी कोई घर टिक सकता है?”

दरवाजे पर खड़ा रवि पूजा और रमाकांत जी की सारी बातें सुन रहा था। पूजा से शादी करने के अपने फैसले पर आज उसे गर्व महसूस हो रहा था।

अंदर आते हुए रवि ने कहा “पापा आप इतने दिनों तक अकेले बेवजह के डर और संदेह में जीते रहे, परेशान रहे। आपको एक बार हमसे अपने मन की बात तो कहनी चाहिए थी।”

“हाँ बेटा मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी कि मैं खुद भी दुखी रहा और तुम दोनों को भी दुखी रखा लेकिन अब ऐसा कभी नहीं होगा।अब तुम्हारे पापा ने अपनी गलती सुधार ली है।” रमाकांत जी मुस्कुराते हुए बोले।

रवि ने राहत की साँस लेते हुए कहा “आपको अपनी एक गलती और सुधारनी होगी।”

ये बात सुनकर पूजा और रमाकांत जी हैरानी से रवि की तरफ देखने लगे।

“आज के बाद आप छुप-छुपकर अपने बेटे-बहू की बातें नहीं सुनेंगे।” रवि ने हँसते हुए कहा।

उसकी बात सुनकर रमाकांत जी भी कान पकड़कर हँस पड़े।

“मैं एक जरुरी काम निपटाकर आती हूँ।” कहकर पूजा रमाकांत जी के कमरे में चली गयी।

थोड़ी देर बाद आकर पूजा ने कहा “पापा, मैंने आपका भी बैग तैयार कर दिया है। आप भी हमारे साथ चलेंगे।”

“और वहाँ से वापस लौटकर तुम दोनों एक सप्ताह के लिए सारी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर घूमने जाओगे। मेरी तरफ से ये तुम दोनों की शादी का उपहार होगा।” रमाकांत जी पूजा के सिर पर हाथ रखते हुए बोले।

पूजा शर्माकर अपने कमरे में चली गयी।

एक लंबे अरसे के बाद रिश्तों के बीच फफूंद की तरह लगे हुए संदेह के दीमकों के मिटने के पश्चात रमाकांत जी, रवि और पूजा तीनों के चेहरों पर सुकून भरी मुस्कुराहट खिल रही थी।

©शिखा श्रीवास्तव 

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