शक – के कामेश्वरी   : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : हम सब भाई बहन एक साथ बैठकर बातें करते हुए खाना खा रहे थे । ऐसे लगा जैसे कोई दरवाज़े पर दस्तक दे रहा है । पहले तो हमने ध्यान नहीं दिया था क्योंकि कालिंग बेल बजाने के बदले में कोई दरवाज़े पर दस्तक क्यों देगा । 

माँ ने कहा कि तुम लोग खाते रहो मैं देखती हूँ कौन है ।मेरा खाना हो गया था तो मैं भागी दरवाज़ा खोलने के लिए और जैसे ही मैंने दरवाज़ा खोला तो देखा कि मेरी तीसरे नंबर की चाची खड़ी थी ।  मुझे आश्चर्य हुआ कि रात के नौ बजे अकेले अपने घर से चलते हुए आ गई थी । उस ज़माने में फोन भी नहीं होते थे कि हम चाचा को बता सके कि चाची यहाँ आई है । 

मेरे कुछ कहने से पहले माँ अंदर से आई उन्हें देखते ही चाची रोने लगी माँ ने उन्हें सँभाला मैं उनके लिए पानी लाई और माँ ने पूछा ऐसे अकेले कैसे आ गई है खाना खाया या नहीं?

रोते हुए कहने लगी दीदी मेरी तो ज़िंदगी ही ख़राब हो गई है मैं खाना खा कर क्या करूँगी । मुझे तो जीने की इच्छा भी नहीं हो रही है।  मैंने तो घर में किसी को नहीं बताया है कि मैं कहाँ जा रही हूँ और आ गई हूँ । 

माँ— ऐसा क्या हो गया है सत्यवती? जिससे तुझे घर छोड़कर आना पड़ा वह भी इतनी रात को?

सत्यवती— रोते हुए) दीदी आपके देवर का अफ़ेयर चल रहा है ।

माँ— तुम्हें कैसे मालूम हुआ?

सत्यवती— कॉलनी के एच आई जी वन के घर में रोजी रहती है ना उसने मुझसे कहा कि तुम्हारा पति रोज हमारे घर में चाय पीकर फिर घर जाता है । मेरे हाथ की बनी चाय उन्हें बहुत पसंद है ।

अब बताइए इन्हें रोज ऑफिस से सीधे उनके घर क्यों जाना है । 

मैं भी उनकी बातों को सुन रही थी । मैं डिग्री के अंतिम साल में थी । चाची ठिगनी सी मोटी दाँत आगे आए हुए थे । मेरे चाचा जी छह फीट ऊँचे हेंडसम थे तो चाची को लगता था कि चाचा को मैं पसंद नहीं हूँ । उस समय दादा दादी ने चाचा के लिए रिश्ता देखा बिना कुछ पूछे शादी तय कर दी थी । चाचा जी ने भी कुछ विरोध नहीं किया और उनका मान रखते हुए शादी कर ली और वे इसे अच्छे से निभा भी रहे थे परंतु चाची को ही शक था कि चाचा जी उन्हें पसंद नहीं करते हैं ।

मैंने कहा चाची आपको अपने पति पर विश्वास होना चाहिए।  किसी की भी बातों को सुनकर इस तरह घर छोड़कर नहीं आना चाहिए । आप इस तरह बात बात पर घर छोड़ दें अच्छा नहीं लगता है ना आप शांति से चाचा से बात कर लीजिए । 

चाची मेरी भोली भी थी । उसने कहा मुझे तुम्हारे चाचा पर विश्वास है पर वह रोजी ना सबके सामने बार बार कहती है तो मुझे ग़ुस्सा आता है कि रोज उनके घर क्यों जाते हैं । 

मैंने और माँ ने उन्हें समझाया कि कभी कभी जाते होंगे उसने तुम्हें चिढ़ाने के लिए रोज कह दिया होगा उन्हें हमने खाना खिलाया और हम दोनों उन्हें छोड़ने घर गए । देखा चाचा जी ने गेट पर ताला लगा दिया था।  दादी तो बहुत डर गई थी । चाचा जी को समझा रही थी कि जा उसे ढूँढकर ले आ कहीं कुछ कर लिया तो..,,,,

चाचा जी दादी को समझा रहे थे माँ वह कुछ नहीं करेगी आ जाएगी डर मत । दादी बिचारी उदास होकर ईश्वर को याद करते हुए बैठी थी । मैंने गेट के बाहर से ही आवाज़ दी चाचा गेट खोलिए ना । वे गेट नहीं खोल रहे थे और चाची डर रही थी कि तुम्हारे चाचा को शायद ग़ुस्सा आया है ।

किसी तरह से बार बार बुलाने और दादी के कारण चाचा ने गेट खोला । चाची ने चाचा से माफ़ी माँग ली परंतु उन्होंने कुछ नहीं कहा ।

दादी कहने लगी कि देख छोटी बच्ची है उसे तुम्हें समझाना पड़ा। उसके जितनी समझ भी तुझ में नहीं है । पति पत्नी के बीच शक का कीड़ा नहीं आना चाहिए वरना जीवन नरक बन जाता है । मैं और माँ वापस आ गए थे । 

उन दोनों के बीच क्या बातचीत हुई थी हमें नहीं मालूम था परंतु तब से चाचा जी सीधे घर ही आते थे। चाचा जी बिचारे बहुत अच्छे थे।  रोजी और पति जब भी लान में बैठ कर चाय पी रहे होते और चाचा जी ऑफिस से आते रहते थे तो वे उन्हें बुला लेते थे पाँच दस मिनट वहाँ बैठकर चाय पीकर भाभी आप चाय अच्छी बना लेते हैं कह देते थे । वही बात रोजी ने कह दिया तो चाची ने अफ़ेयर समझ लिया था। चाची की गलती भी नहीं थी उन्हें हमेशा डर लगा रहता था कि मैं अच्छी नहीं दिखती हूँ माता-पिता के दबाव में उन्होंने मुझसे शादी की है। मुझसे कोई अच्छी मिल गई तो उसके पीछे चले जाएँगे । 

दोस्तों वह जमाना ऐसा था कि नब्बे प्रतिशत लोग शादी को निभाते ही थे चाहे कुछ भी हो जाए । माता-पिता का सम्मान करते थे उनके निर्णय का आदर करते थे । परंतु शक का कोई इलाज नहीं होता है ना । उसे हमारी ज़िंदगी में जगह ही नहीं देनी चाहिए वरना हाथ मलते ही रह जाएँगे । 

स्वरचित

के कामेश्वरी 

#शक

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