पल दो पल का साथ – स्नेह ज्योति: Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : शंभु भागत हुआ अंदर आया , मैम जल्दी चले ! इस सीजन की पहली बर्फ गिर रही है । तभी शंभु ने मुझे झकझोरा मैम उठो और मैं धड़ाम से नीचे गिर पड़ी । ये देख शंभु घबरा गया क्योंकि वो नया नया ही आया था । उसे मेरे बारे में ज़्यादा कुछ नहीं पता था । हड़बड़ा के उसने डॉक्टर को कॉल किया । जब डॉक्टर आए तब जाकर मेरी तबियत में सुधार हुआ । मुझे होश में देख शंभु के चेहरे पर दर्द के साथ एक ख़ुशी छलक रही थी ।

डॉक्टर साहब मैम ठीक है कोई घबराने वाली बात तो नहीं है ??

अब ये ठीक है ! बस इनके खाने पीने और दवाई का ध्यान रखना । बस फिर क्या होना था डॉक्टर के जाते ही शंभु मेरी माँ बन गया । कभी जूस ,कभी सूप तो कभी कुछ । एक पल के लिए भी मुझे अकेला नहीं छोड़ा । बस करो शंभु अब मैं ठीक हूँ । यूँ सारा दिन मेरे सिरहाने ना खड़े हुआ करे ।

क्यों मैम मुझसे कोई गलती हो गई है ???

ऐसा कुछ नहीं है । बस मुझे अच्छा नहीं लगता कि तुम सारा दिन मेरी जी हुजूरी करते रहो । कभी अपना भी सोच लिया करो । तुम्हारा भी तो कोई होगा , उनसे मिल लिया करो या बात कर लिया करो ।

मेरा कोई नहीं है बोल शंभु बाहर चला गया……

मैं कमरे की कुर्सी पर बैठें कुछ सोच रही थी । तभी बर्फ पड़ते देख मैं बाहर गई और बहुत वर्षों बाद बर्फ को अपने हाथों में ले उस ठंडे एहसास को महसूस कर पुरानी यादो में खो गई । जब मैं एक कामयाब औरत थी । मेरी एक विज्ञापन की कंपनी थी। भगवान का दिया मेरे पास सब कुछ था । अगर कुछ नहीं था तो बस अपनो का साथ ।

माँ और भाई मुल्क से बाहर जा चुके थे । लेकिन मैं अपने पापा के जाने के बाद उनके व्यवसाय को छोड़ना नहीं चाहती थी । इसलिए मैं शिमला में ही रह गई । लेकिन कभी कभी मन करता था कि सब कुछ छोड़ अपनों के पास चली जाऊ । लेकिन हमे जीवन से क्या चाहिए वो सब भूल बस मशीन की तरह काम करने में पूरा जीवन बिता देते है ।

मैं भी अपना जीवन ऐसे ही जी रही थी । एक रात को जब मैं घर जा रही थी । तो तेज़ बर्फ के कारण देखने में दिक़्क़त हो रही थी । इसलिए मैं कार बहुत धीरें धीरें चला रही थी । तभी कार से किसी के टकराने की आवाज़ आयी । मैं डरी सहमी बाहर गई ,पर बाहर कोई नहीं था । मैंने आस पास फ़ोन की लाइट से भी देखा । पर कोई नहीं दिखा , तब मैंने सोचा कि हो सकता है कोई जानवर हो और टकरा के भाग गया हो । यही सोच मैं घर आ गई ।

अगली सुबह जब उसी रास्ते से ऑफिस जा रही थी तो मेरे कदम वहीं रुक गए । तभी मैंने कुछ लोगो को बाते करता हुआ सुना कि कल रात किसी का एक्सीडेंट हो गया था । ये सुनते ही मैं उन लोगो के पास गई और पूछा कि कौन से अस्पताल में है । मैंने जल्दी से कार अस्पताल की तरफ़ मोडी और कल हुए हादसे के मरीज़ के बारे में पूछा । तब मुझे पता चला कि एक दस साल का बच्चा मेरी कार से टकरा कर नीचे पेड़ो के झाड़ में जा गिरा था । जिस वजह से मैं उसे रात में देख नहीं पायी । लेकिन मुझे बहुत आत्मग्लानि हो रही थी मेरी वजह से किसी मासूम की जान भी जा सकती थी । हिचकिचाते हुए मैं उसके पास गई और उससे माफ़ी माँगी । वो मासूम नज़रों से बस मुझे घूरे ही जा रहा था ।

थोड़ी देर में डॉक्टर अंदर आए और बताया कि ये बेचारा बोल सुन नहीं सकता है । इसका अपना कहने को कोई नहीं है । कभी इधर तो कभी उधर बस ऐसे ही जी रहा है । यें सब सुन मैंने उसे अपने घर लाने का फ़ैसला किया । घर जा कर मैंने उसका कमरा तैयार कर लिया । शायद हम दोनों का मिलना इसीलिए हुआ ताकि हमारा अकेलापन दूर हो जाए । अगली सुबह मैं उसे अस्पताल लेने पहुँची । तो डॉक्टर ने मुझे चेता दिया था कि आपको इसका बहुत ध्यान रखना पड़ेगा । क्योंकि ये कहीं भी चला जाता है । उसकी सुरक्षा का वादा किए मैं उसे अपने साथ ले आयी । हम दोनों एक दूसरे से मिल बहुत खुश थे । उससे बात करने के लिए मैंने सांकेतिक भाषा को सीखा ।

सब अच्छा चल रहा था । एक दिन मुझे घर से नौकर का फोन आया कि शमी कहीं चला गया है । वैसे वो ये सब कई बार कर चुका था । लेकिन हर बार वो कुछ घंटों में घर वापस आ जाता था ।पर इस बार दो दिन बीत गए उसका कोई पता नहीं चला । मैंने उसे ट्रैक करने के लिए जो डिवाइस पहनाया था वो भी कई किलोमीटर दूर मिला । एक वो दिन था और आज का दिन शमी का कुछ पता नहीं चला ।

आज जब भी बर्फ पड़ती है तो मुझें शमी की बहुत याद आती है । क्या मेरा उसे अपने घर लाने का फ़ैसला सही था या गलत ये एहसास मुझे रह रह कर कचोट रहा था ।

#आत्मग्लानि

स्वरचित रचना

स्नेह ज्योति

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