पांच अनोखी बहुएं – सरगम भट्ट

 

चंपा , माया,  नेहा , दुर्गा, रानी (पांच बहुएं )कहां हो सब के सब

अरे बाहर तो आओ हम खुशखबरी लेकर आए हैं

हमें तो 10 दिन के लिए तुम सब आजाद हो, जितना जी में आए कर लेना मनमौजी और मनमानी अब मेरे रहते तो हो नहीं पाता।

रानी – मन ही मन वो तो है मम्मी जी।

रानी कुछ कहा तुमने?  नहीं मम्मी जी मैं क्या कहूंगी, मैं तो कहती हूं आप दस क्या बीस दिन एक महीने या उससे ज्यादा भी रह सकती हैं! हम सब मिलकर यहां संभाल लेंगे।

ना ना ना ना ना ना.………. तुम मुझे भेज कर मेरे बेटे और घर पर कब्जा जमाना चाहती हो, अब तो मैं ना जा रही हूं।

अरे मम्मी जी ऐसा कुछ नहीं है, आप जाइए दस क्या पांच दिन में ही वापस आ जाइएगा , वह क्या है ना मम्मी जी हम लोगों का आप के बिना यहां मन नहीं लगता।

तुम लोग तो चाहती हो मैं कहीं ना जाऊं, हे भगवान कैसी बहूएं दी है आपने जो मुझे कैद करके रखना चाहती हैं ।(नाटकीय अंदाज में रोते हुए कहती हैं)

चंपा – मम्मी जी आप कौन से हॉस्पिटल में एडमिट होने जा रही हैं , बता देंगी तो समय से खाना पानी पहुंचा दूंगी”आपको हॉस्पिटल का नहीं खाना पड़ेगा।

क्या कहा तुमने चंपा? हॉस्पिटल और मैं? अरे अक्ल की अंधी, अपने सास की दुश्मन  “हॉस्पिटल तो मैं तुझे भेजूंगी, फिलहाल मैं तीर्थ यात्रा पर जा रही हूं, कान खोल कर सुन ले कहीं कोई पूछने आए तो हॉस्पिटल मत भेज देना मुझसे मिलने।



चंपा – पर मम्मी जी आप मुझे हॉस्पिटल क्यों भेजेंगी? मुझे कुछ हुआ है नहीं।

अरे महारानी तू जा अपने कमरे में, तुझसे तो बात करना ही बेकार है।

मम्मी जी आप कितनी अच्छी हैं, आप मेरे मन की बात जान गई’कि मुझे नींद आ रही है, जाती हूं! हैप्पी जनवरी (जर्नी) मम्मी जी।

सासू जी -अरे वो जर्नी होता है मेरी दुश्मन, अब तो चली जा।

(मन ही मन ना जाने कब अक्ल आएगी इसे बच्चों जैसी हरकतें करती है)

दुर्गा – दो बड़े बड़े ट्रॉली बैग लेकर बाहर आते हुए, मम्मी जी जैसे ही मैंने सुना आप जा रही हैं दस दिनों के लिए” मैंने आपके सारे कपड़े पैक कर दिए

लेकिन सारे कपड़े क्यों?

मम्मी जी आप भी ना समझती नहीं

अब दिन भर में चार जगह घूमने जाएंगी, तो चार कपड़े हो गए उसी हिसाब से दस दिन रहना है तो चालीस कपड़े, और दस रात एक पहन कर सोएंगी एक उठने के बाद पहनेंगी उस हिसाब से हुए बीस कपड़े कुल मिलाकर साठ कपड़े।

और एक पहनकर जाएंगी एक वहां पहुंचकर चेंज करेंगी, फिर एक वहां से पहन कर वापस भी तो आना है।

तू अपनी गिनती अपने पास रख, मेरी मां इससे ज्यादा मत याद कर नहीं तो पूरे मोहल्ले के कपड़े ले जाने पड़ेंगे।

(मन ही मन ना जाने कैसी बहुओं से पाला पड़ा है तीर्थस्थान पर भी नहीं जा सकती चैन से सब कुछ देख कर दिल दिमाग में यही लोग छाई रहेंगी)

माया- कुछ सामान से भरे हुए झोले हाथ में लिए हुए, मम्मी जी, जी बहू जी कहिए’ अब आप क्या लेकर आई हैं मेरी खिदमत में?

मम्मी जी आप  दिन के लिए जा रही हैं, उसी हिसाब से मैंने सूखे नाश्ते स्नैक्स और कुछ खाने तैयार किए हैं।



ये लाल डब्बे वाला खाकर जाइएगा नीले डब्बे वाला रास्ते में खा लीजिएगा हरे डब्बेवाला वहां पहुंचने के बाद और पीले डब्बेवाला रात को।

ये काले डब्बे वाला सुबह फ्रेश होकर नाश्ता और सफेद वाला घूमने जाएंगी तब और यह जो स्टील के डब्बे में है, घूमकर आइएगा रात को तब, इसी हिसाब से दसों दिन का दसों झोले में पैक है।

चुप हो जा राजधानी एक्सप्रेस, तू रख दे झोला मुझे जैसे खाना होगा खा लूंगी, लग रहा मैं तीर्थ यात्रा पर नहीं, गड्ढा खोदकर समाधि लगाने जा रही हूं ” जहां कुछ खाने को नहीं मिलता।

नेहा – हाथ में एक फावड़ा लेकर आते हुए, मम्मी जी, उसके हाथ में फावड़ा देखकर डरते हुए, (प्यार से)बहू तू फावड़ा लेकर क्यों आई है ? वहां फावड़े का क्या काम? 

मम्मीजी आप भी ना क्या क्या सोचती हैं, अभी आपने कहा गड्ढा खोदकर समाधि लगाने जा रही हूं, तो मैं फावड़ा लेकर आ गई।

अब जल्दी बताइए कहां गड्ढा खोदना है, कितने फिट गहरा, कितना लंबा, और कितनी चौड़ाई होनी चाहिए मम्मी जी?

हे भगवान अब तो अवतार ले लो आप, आपने मुझे एक से एक नमूने दिए हैं, आइए आप भी देखिए इन सब के कारनामे।

 

फिलहाल तो सासु मां तीर्थ यात्रा पर जाना कैंसिल कर चुकी है, और ना ना गलत मत सोचिए गड्ढे में बैठकर समाधि भी नहीं लगाई है, दस दिन का मौन व्रत लेकर अपने कमरे में समाधि लगाई हैं।

उन्होंने अपने तीर्थ यात्रा पर जाने के विचारों का फिलहाल त्याग कर दिया है।

#त्याग

(यह कहानी सिर्फ मनोरंजन के लिए लिखी गई है किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कोई मतलब नहीं अगर किसी को इससे ठेस पहुंचती है तो मैं क्षमा प्रार्थी हूं)

सरगम भट्ट

गोमतीनगर लखनऊ

स्वरचित मौलिक

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