मन की सच्ची खुशी – गीता वाधवानी

अतुल और उसके पिता नवीन और उसकी मां रोशनी शहर में रहते थे। अतुल के दादा दादी गांव में रहते थे। गांव में उनका बहुत बड़ा घर था और बहुत सारे खेत भी थे। अतुल के दादाजी बहुत दयालु थे। वह किसी भी मुसीबत में गांव वालों का हर संभव साथ देते थे और गरीब बच्चों की पढ़ाई के खर्च में भी मदद करते थे। उन्होंने कई गरीब लड़कियों की शादी भी करवाई थी। दूसरों के सुख के लिए वह अपने सुख का त्याग करने में भी पीछे नहीं हटते थे। 

अतुल के पिताजी भी अपने पिता की तरह ही दयालु और समझदार थे, लेकिन अतुल बहुत नटखट था शायद अभी छोटा था इसलिए। उसे सब को परेशान करने में बहुत मजा आता था। 

     हर बार वे छुट्टियों में गांव रहने आते थे, इस बार भी आए थे। अतुल खेतों में घूमता, तितलियों के पीछे भागता और अपने दादा जी, पिताजी के साथ खेतों में बैठकर खाना खाता। उसे यह सब करने में बहुत मजा आता था। 

एक दिन वह खेतों में घूमते घूमते किसी और व्यक्ति के खेत में चला गया। वहां उसकी नजर खेत में एक पेड़ के नीचे रखे हुए छोटे से स्टील के छोटे से टिफिन पर पड़ी और उसके पास एक पानी का छोटा सा घड़ा भी रखा था। वहां आसपास कोई नहीं था शायद किसान अपनी खेती में व्यस्त था। अतुल ने मौका देखकर टिफिन खोला ।उसमें दो रोटियां और आम का अचार रखा था। अतुल ने वह सब खाना खा लिया और पेड़ के पीछे छुप गया। थोड़ी देर बाद किसान वहां आया और हाथ धोकर खाना खाने बैठा। अपना टिफिन खाली देखकर वह हैरान परेशान हो गया और उसे बहुत भूख भी लगी थी। रोटी ना पाकर उसने घड़े में से पानी पीकर अपना काम चलाया और खेती में लग गया। 

किसान को हैरान परेशान देखकर अतुल को बहुत मजा आया। उसने अपनी यह शरारत किसी को नहीं बताई और दादा जी के साथ घर चला गया। 

    शाम को उसने देखा कि दादा जी से मिलने कई लोग आए हैं। दादाजी और पिताजी उनकी समस्याएं सुन रहे थे और उन्हें हल करने की कोशिश कर रहे थे। सब लोग कुछ ना कुछ मदद पाकर चले गए और फिर उसके दादाजी और पिताजी बातें करने लगे कि किसी की सहायता करने में कितनी ज्यादा खुशी मिलती है और सबसे ज्यादा खुशी तो तब मिलती है जब हम किसी की भलाई के लिए कोई त्याग करते हैं। 


      अगले दिन अतुल अपने पिताजी के साथ खेत जा रहा था। तब उसने किसी के खेत में रखा हुआ खाने का डिब्बा देखकर, अपने पिताजी से कहा-“पापा, क्यों ना हमें इस डब्बे में से खाना निकाल कर खा ले और फिर जब किसान खाना खाने आएगा, वह अपना डिब्बा खाली देखकर परेशान और हैरान होगा, तब हमें कितना मजा आएगा।” 

उसके पिता नवीन ने कहा-“अतुल, मजा किसी को परेशान करने में नहीं, बल्कि उसके लिए कुछ मदद या त्याग करने में होता है। मेरी बात का विश्वास ना हो तो, एक बार तुम कुछ छोटा सा त्याग करके देखो।” 

अतुल-“त्याग, वह कैसे?” 

नवीन-“तुम्हारी दादी जी ने जो तुम्हारे लिए नारियल की बर्फी खाने के डिब्बे में डाल कर दी है, वह तुम इसके टिफिन में रख दो और फिर छुप कर देखो कि क्या होता है?” 

अतुल-“पर वह बर्फी तो मुझे बहुत पसंद है।” 

नवीन-“अपनी मनपसंद चीज किसी को दोगे ,अपने लिए नहीं रखोगे, तभी तो त्याग माना जाएगा और यह तो बहुत छोटी सी चीज है।” 

अतुल ने यह बात सुनकर अपना टिफिन खोल कर, उसमें से नारियल की बर्फी निकालकर किसान के खाने के डिब्बे में रख दी और अपने पापा के साथ पेड़ के पीछे छुप गया। 

थोड़ी देर बाद किसान पसीना पोछता हुआ आया और अपना खाने का डिब्बा खोला। उसमें इतनी सारी बर्फी देखकर वह हैरान हो गया और इधर उधर देखने लगा कि यह मेरे टिफिन में किसने रखी। 

लेकिन उसे कोई दिखाई नहीं दिया। 

     उसने हाथ जोड़े और भगवान का धन्यवाद करते हुए खुशी से बोला-“हे नारायण! आज मेरा बेटा मुझसे बर्फी खाने की जिद कर रहा था, तब मैं सोच में पड़ गया था कि उसकी यह  इच्छा कैसे पूरी करूं, मेरे पास तो पैसे ही नहीं है। आपने किसी भले इंसान के हाथों मेरे बेटे की इच्छा पूरी कर दी। जब मैं उसे घर जा कर यह बर्फी दूंगा तो वह बहुत खुश हो जाएगा। हे प्रभु !आपका और उस इंसान का बहुत-बहुत धन्यवाद!” 

यह सब अतुल और उसके पिता देख रहे थे और उसकी बातें भी सुन रहे थे। तब अतुल को उसके पिता की बात समझ में आ गई कि दूसरों के लिए कुछ करने से” मन की सच्ची खुशी”मिलती है। 

#त्याग 

स्वरचित 

गीता वाधवानी

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