नृत्यांगना – अनुराधा श्रीवास्तव “अंतरा”

बहुत समय पहले की बात है। एक नृत्यांगना थी, दमयन्ती। बेहद खूबसूरत। उसकी खूबसूरती देखकर पुरूष तो पुरूष, महिलायें भी दांतों तले उंगलियां दबा लेती थीं। रूप ऐसा मनमोहन जैसे भगवान ने उसे गढ़ने में सदियाॅं लगायी हों, एक एक अंग तराशा हुआ, नृत्य की कला में ऐसी माहिर कि जिस राज्य में वह नृत्य के लिये जाती, वहाॅं उसके नाम के चर्चे हो जाते। उसकी अदायें इतनी मोहक थी कि जो रूप से न हारे वो अदाओं से हार जाता था। दमयन्ती अब तक जाने कितने राज्यों में अपने नाम का डंका बजा चुकी थी और लगभग हर राज्य का राजा या राजकुमार उसे पाना चाहता था और अपनी रानी बनाना चाहता था। इसी प्रकार एक राज्य में नृत्य के उपरान्त राजा ने दमयन्ती से कहा ’’दमयन्ती, मैं तुम्हारे रूप पर मोहित हूॅं, मैं तुमसे विवाह करना चाहता हूॅं और तुम्हे अपनी रानी बनाना चाहता हॅू।’’

दमयन्ती राजा की यह बात सुनकर उदास हो गयी ओैर उसने जवाब दिया कि ’’राजन, मुझे विवाह करने में कोई आपत्ति है लेकिन मेरी मजबूरी है।’’

’’कैसी मजबूरी।’’

’’राजन, कई वर्षों पूर्व जब मैं एक जंगल में भ्रमण कर रही थी तो भूलवश एक तपस्यालीन ऋषि से मेरा पांव टकरा गया और उस ऋषि की तपस्या भंग हो गयी।’’ 

’’ फिर क्या हुआ?’’

’’राजन उस ऋषि ने क्रोधित होकर मुझे यह श्राप दे दिया कि मैं कितनी भी रूपवान होउॅं लेकिन कोई पुरूष कभी तुम्हे भयवश हांथ नहीं लगायेगा क्योंकि यदि तुम किसी पुरूष के साथ सम्बन्ध बनाओगी तो वह पुरूष तुरन्त मर जायेगा।’’




राजा दमयन्ती की बात सुनकर राजा हतभ्रत रह गया।

’’राजन यदि आप मुझसे विवाह करना चाहते हैं तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है परन्तु मैं आपको कभी कोई शारीरिक सुख नहीं दे पाउॅंगी अन्यथा आपकी मृत्यु निश्चित है।’’

राजन ने तुरन्त ही दमयन्ती से विवाह प्रस्ताव वापस ले लिया और अपने राज्य से खूब सम्मान, उपहार और धन देकर विदा किया। दमयन्ती के श्राप की बात जंगल में आग की तरह हर राज्य मेें फैल गयी थी। हर राज्य से दमयन्ती को नृत्य का आमन्त्रण तो अवश्य आता परन्तु लोलुप राजाओं के विवाह प्रस्ताव आना बन्द हो गये थे। दमयन्ती दिन दूनी रात चैगुनी समृद्धि कर रही थी किन्तु उसका मन कहीं न कहीं सच्चे प्रेम के अभाव में दुखी रहता था। एक स्त्री आखिर कितने दिन अकेली रह पाती, वो भी अपना घर बसाना चाहती थी लेकिन इस श्राप के कारण कोई भी उससे विवाह नहीं करना चाहता था। 

एक बार दमयन्ती भानपुर राज्य गयी और वहां के राज दरबार में अपनी नृत्य कला का प्रदर्शन किया। भानपुर राज्य का राजा अत्यन्त सुन्दर नवयुवक चन्द्रभाल था। चन्द्रभाल एक अत्यन्त रूपवान, शक्तिशाली और ज्ञानवान राजा था। दमयन्ती ने राजा चन्द्रभाल को जब देखा तो वह उसके प्रेम में मुग्ध हो गयी। राजा चन्द्रभाल ने दमयन्ती को अपने राज्य में रूकने का न्योता दिया और अपनी राज नर्तकी बनने का प्रस्ताव दिया। चूंकि दमयन्ती राजा चन्द्रभाल से प्रेम करने लगी थी इसलिये उसने सहर्ष राजा के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और राज्य में राजनर्तकी के तौर पर रहने लगी। राजा चन्द्रभाल दमयन्ती की सुख सुविधाओं का विशेष ध्यान रखते थे। लगभग छः माह व्यतीत होने पर राजा चन्द्रभाल ने दमयन्ती के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तो दमयन्ती ने राजा के समक्ष स्वयं के श्रापित होने का राज उजागर किया। 




’’मुझे तो पहले से ही पता है कि तुम श्रापित हो। इसके बावजूद मैं तुमसे विवाह करना चाहता हूॅं।’’

’’परन्तु मैं आपको कभी आपके राज्य का उत्तराधिकारी नहीं दे पाउॅंगी, क्या यह आपको स्वीकार्य होगा।’’

’’मैने तुम्हे सच्चे दिल से प्रेम किया है और सारी परिस्थितियों से पूरी तरह से वाकिफ भी हॅंू इसलिये मंैं भविष्य के लिये पूरी तरह तैयार हूं। जो इस राज्य का सही उत्तराधिकारी होगा मैं उसे यह राज्य सौंप दूंगा। तुम सिर्फ यह बताओ कि तुम्हे विवाह का प्रस्ताव स्वीकार है अथवा नहीं। ’’

’’राजन, मुझे आपका विवाह प्रस्ताव स्वीकार है लेकिन इससे पहले मैं आपको कुछ बताना चाहती हूॅ।’’

’’ हाॅं बिल्कुल।’’

’’ राजन जब ऋषि ने मुझे श्राप दिया तो मैंने उनसे श्राप वापस लेने का बहुत अनुनय विनय किया था क्योंकि उनकी तपस्या भंग करने का मेरा कोई इरादा नहीं था तो मेरे निवेदन और क्षमा प्रार्थना से द्रवित होकर ऋषि महाराज ने मुझसे यह कहा कि,’’ मैं यह श्राप वापस नहीं ले सकता लेकिन यदि इस श्राप के बावजूद भी कोई पुरूष तुमसे सच्चा प्रेम करेगा और बिना किसी काम वासना के तुमसे विवाह करना चाहेगा तो यह श्राप स्वतः उसके सच्चे प्रेम के कारण टूट जायेगा।’’

’’ तो राजन, आपने कामवासना से मुक्त होकर मात्र मेरी आत्मा से प्रेम किया इसलिये मैं आपसे विवाह करने को सहमत हो गयी और ऋषि द्वारा दिया गया श्राप भी स्वतः ही टूट गया है।’’ इसके बाद राजा चन्द्रभाल व नृत्यांगना दमयन्ती का बड़ी धूमधाम से विवाह हुआ और पूरे राज्य में खुशियाॅं मनायी गश्ी। 




राजा चन्द्रभाल व रानी दमयन्ती खुशी खुशी अपना जीवन निर्वहन करने लगे। राजा चन्द्रभाल कालान्तर में एक प्रसिद्ध राजा के रूप में प्रसिद्ध हुये और उनका राज में प्रजा अत्यन्त सुख समृद्धि व प्रसन्नता से फलती फूलती रही और इस प्रकार दमयन्ती को उसका सच्चा प्रेम मिल गया।

मौलिक 

स्वरचित 

अनुराधा श्रीवास्तव “अंतरा”

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