मनहूस रातों का रुदन ! – रमेश चंद्र शर्मा 

” नंदा, तुम यह सब कैसे बर्दाश्त कर लेती हो। तुम्हारी जगह दूसरी  औरत होती तो कुछ भी कर गुजरती।”

नेहा ने अपनी सहेली नंदा से तीखा सवाल पूछ लिया।

नंदा (नेहा से) ” सच कहूं ।गलती मेरी ही है। जवानी की दहलीज़ पर कदम रखते ही मेरे कमजोर कदम लड़खड़ा गए।”

दरअसल ग्रेजुएशन के प्रथम साल में ही रवि और नंदा का प्रेम परवान चढ़ चुका था। अपने पेरेंट्स की चेतावनी को अनदेखा करके नंदा, रवि के प्रेम में दीवानी होती चली गई। रवि के पास खेती-बाड़ी थी। आर्थिक स्थिति ठीक थी। बीच में पढ़ाई अधूरी छोड़कर दोनों ने शादी कर ली। रवि शादी के प्रथम दिन से ही नशे और अय्याशी का नंगा नाच नाचने लगा । नंदा के होंश फाख्ता हो गए। उसकी हरकतें लोक लाज और मर्यादा को तार तार करती रही ।दो बच्चे हो गए। अब नंदा साहस जुटाने के बाद भी रवि का विरोध नहीं कर पाती।

नंदा (नेहा से) ” काश माता पिता का कहना मानती। मुझे रवि के बारे में पूरी तहक़ीकात निकालना चाहिए थी। उसकी रोमांटिक बातों के जादूई असर की मैं दीवानी हो गई थी।”

नेहा (नंदा से) ” रवि तेरे साथ मारपीट करता है। सबके सामने तेरा अपमान करता है ।तेरी आंखों के सामने दूसरी लड़कियों के साथ संबंध बनाता है।”

नंदा ” शादी होने तक रवि अच्छा इंसान होने का नाटक करता रहा। मैं समझ नहीं पाई ।अब तो दो बच्चे हो चुके। मेरे अंदर छुपी हुई बेबस माँ ने जिंदा औरत के स्वाभिमान को मार दिया।  मैंने हालात से समझौता कर लिया है।”




नेहा ” तुम्हारे जैसी मर्द औरत के मुंह से ऐसी बातें अच्छी नहीं लगती। अभी भी समय है ।उस नशेड़ी अय्याश  से पीछा छुड़ा लो।”

नंदा ” नेहा, एक मां की ताकत को सारी दुनिया जानती है ।लेकिन उसकी मजबूरी और कमजोरी को कोई नहीं समझता।”

नेहा “तुम एक मां हो ।दो बच्चों की परवरिश की जवाबदारी तुम पर आ पड़ी है। जो व्यक्ति एक अच्छा पति नहीं बन पाया वह एक अच्छा पिता कैसे बन सकता है ?”

नंदा ” रवि की राक्षसी मनोवृत्ति ने मेरी झोली में दो बच्चे जबरदस्ती डाल दिए।”

नेहा “कॉलेज के दिनों की बिंदास ताकतवर गर्ल नंदा कहां चली गई। शायद तुम्हारी ममता ने अंदर छुपी हुई महिला को मार दिया है।”

नंदा “उन दिनों प्यार के नाम पर जो कुछ भी गलत किया ऊपरवाला उसी कुकर्म की सजा दे रहा है।”

नेहा ” तुम्हारे पड़ोसी बता रहे थे कि तुम्हारे मकान में से रोज रात में किसी औरत के रोने की आवाज आती है। कहीं तेरे मकान में भूत प्रेत का साया तो नहीं है।”

नंदा ” मेरी सबसे प्यारी सहेली भी मुझको ताना दे रही है। रवि नाम के राक्षस की जबरदस्ती सहकर रातभर सिसकने वाली बदनसीब औरत मैं ही हूँ। तुम मेरी रातों के रुदन को महसूस नहीं कर सकती।”

दोनों सहेलियां एक दूसरे से लिपट कर रोने लगी।

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# रमेश चंद्र शर्मा 

   इंदौर

मौलिक कहानी

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