नया रंग – माता प्रसाद दुबे : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : होली का त्यौहार रंगों की तरह ही रंगीला होता है। अपने पराए का कोई भेदभाव नहीं होता है। फिर भी अपनों के बीच होली का आनंद ही अलग होता है। बस की खिड़की के पास बैठा हुआ प्रकाश कुछ ऐसा ही सोच रहा था। बीते वर्ष की होली में वह अपने गांव नहीं आया था। एक हफ्ते बाद होली थी। कुछ ही देर में उसका गांव रामनगर आने वाला था।

बस से उतरकर प्रकाश पैदल ही गांव की ओर चल दिया। सड़क के दोनों तरफ खेतों में हरियाली नजर आ रही थी। दूर से सड़क पर एक महिला और पुरुष जल्दी-जल्दी आते हुए दिखाई पड़ रहे थे। उनके करीब आते ही प्रकाश के कदम वहीं पर रुक गए, उसके सामने रमा गोद में एक छोटी सी बच्ची लिए हुए अपने पिता लाला जी के साथ बदहवास सी जल्दी-जल्दी चली आ रही थी। 

“क्या हुआ चाचा! प्रकाश रमा और लाला जी के करीब आते हुए बोला। “क्या बताएं बेटा! मेरी रमा की तो किस्मत ही खराब है..ना जाने मेरे किस पाप की सजा उसे मिली है.. ईश्वर ने मेरी फूल जैसी बेटी के साथ घोर अन्याय किया है.. अभी चार महीने पहले ही इसका सुहाग उजड़ गया..और अब यह नन्हीं सी बच्ची..ना जाने इसका क्या दोष है?” लाला जी रमा की गोद में नन्ही बच्ची की तरफ इशारा करते हुए प्रकाश से बोले। उस छोटी सी बच्ची की तबीयत बहुत खराब थी। प्रकाश  एकटक रमा की ओर देख रहा था। उसके चेहरे पर निराशा, मायूसी, गम, साफ दिखाई पड़ रहा था। उसकी आंखें पानी से भीगी हुई थी। वह प्रकाश से कुछ नहीं बोली चुपचाप थी। “चलिए चाचा! देर मत करिए?” कहते हुए प्रकाश लालाजी और रमा के साथ अस्पताल की ओर चल पड़ा।



 

बच्ची की हालत खतरे से बाहर थी। उसका इलाज चल रहा था। अस्पताल की बेंच पर लालाजी के साथ बैठा प्रकाश अतीत में खोया हुआ था। ” तीन साल पहले वाली रमा का मासूम चेहरा उसे झकझोर रहा था।वे एक दूसरे को पसंद करते थे। मगर दिल की बात जुबां पर आने से पहले ही खामोश हो हो चुकी थी। लालाजी उसके स्वर्गवासी पिता के अच्छे मित्र थे..वह उसके गांव रामनगर से सटे हुए कस्बे के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। दस साल पहले जब उसके पिता की असमय मृत्यु हो गई थी..तब लालाजी ने ही उसकी मां और उसके परिवार के पालन पोषण  के लिए काफी मदद की थी। उनके बहुत एहसान थे.. प्रकाश के परिवार के ऊपर..मगर वह कर भी क्या सकता था..उसे रमा को भूलना पड़ा था।

“प्रकाश बेटा!अब तुम घर जाओ..भाभी तुम्हारा इंतजार कर रही होगी?”लालाजी ने प्रकाश से कहा।”जी चाचा..जा रहा हूं? कहते हुए प्रकाश वार्ड की तरफ बढ़ गया। बच्ची के पास रमा चुपचाप बैठी थी।”रमा! मैं जा रहा हूं..कोई तकलीफ हो तो मुझे बताना..मैं एक महीने की छुट्टी पर आया हूं?”प्रकाश रमा की ओर देखते हुए बोला। रमा कुछ देर प्रकाश की तरफ देखती रही फिर वह अपनी बच्ची की तरफ देखने लगी..मगर वह प्रकाश से कुछ भी नहीं बोली। लालाजी से विदा लेकर प्रकाश अपने घर की और चल पड़ा।

प्रकाश बेचैन था। उसे बार-बार रमा और उसकी नन्ही बच्ची का ख्याल आ रहा था। घर पर उसकी मां और छोटी बहन के अलावा और कोई नहीं था।”अरे प्रकाश बेटा! क्या हुआ..तुम कहां खोए हुए हो मैं देख रही हूं..जब से तुम आए हो कुछ सोच रहे हो..क्या बात है बताओ अपनी मां को?” प्रकाश की मां प्रकाश के कमरे में आकर उसके पास बैठते हुए बोली।”अम्मा! मैं रमा के बारे में सोच रहा था?”उसने अपनी मां से पूरी बात बताई। प्रकाश की मां सब कुछ जानती थी।

प्रकाश और रमा एक दूसरे को पसंद करते थे..वह जानती थी कि प्रकाश क्यों परेशान है..आखिर वह एक मां थी। वह अपने बेटे का दर्द समझती थी। “रमा को क्या करना चाहिए मां! उसका जीवन कैसे चलेगा..क्या उसे दूसरी शादी कर लेना चाहिए?” प्रकाश ने अपनी मां से सवाल किया।”यह तो रमा ही जाने बेटा! कि वह क्या चाहती है?”प्रकाश की मां चिंतित होते हुए बोली। “अम्मा! तुम नाराज ना हो तो मैं एक बात कहूं?” प्रकाश अपनी अम्मा से लिपटते हुए बोला।”तुम्हें कुछ कहने की जरूरत नहीं है बेटा! मैं जानती हूं..कि तुम रमा को अपनाना चाहते हो..उसक जीवन में नया रंग भरना चाहते हो..चिंता मत करो मैं भैया से बात करूंगी..मैं भी यही चाहती हूं बेटा?”प्रकाश की मां प्रकाश के सर पर हाथ फेरते हुए बोली और कमरे से बाहर निकल गई।



एक हफ्ता बीत चुका था होली के रंग में पूरा गांव डूबा हुआ था।

रमा की बच्ची की तबीयत ठीक हो चुकी थी। रमा के घर के सभी लोगों की होली बदरंग थी। उसके ससुराल वाले उसके पति की मृत्यु के बाद उसे मनहूस समझते थे। और उसे अपने पिता के घर रहने के लिए भेज दिया था। जिसके कारण उसके घर में सभी लोग दुखी थे। तभी दरवाजे पर किसी के आने की आवाज सुनाई दी। लाला जी के घर के बाहर प्रकाश खड़ा हुआ था।”चाचा!प्रणाम होली है?”कहते हुए प्रकाश ने लालाजी को गुलाल लगाकर उनके पैर छुए।”खुश रहो बेटा अब तुम ही हमारी उम्मीद हो?”कहते हुए लालाजी ने प्रकाश को अपने गले से लगा लिया। प्रकाश की मां ने लालाजी से सभी बात कर ली थी। लाला जी की आंखों में खुशी के आंसू थे।”यह लो बेटा! लाल गुलाल?” लालाजी प्रकाश के हाथ में लाल गुलाल की थाली रखते हुए बोले। प्रकाश ने एकटक लालाजी की तरफ देखा और रमा के कमरे की तरफ बढ़ गया।

रमा अपनी बच्ची के पास बिल्कुल शांत बैठी थी।”रमा! इधर देखो..तीन साल पहले जिस रंग को तुमने अपनाया चार महीने पहले वह रंग बदरंग हो गया..मैं उसमें फिर से नया रंग भरना चाहता हूं?” प्रकाश रमा के करीब जाकर बोला।”नहीं ऐसा नहीं हो सकता?”रमा चीखती हुई बोली।”क्यों नहीं हो सकता..बेटी जिन लोगों ने तुम्हें मनहूस समझ कर घर से निकाल दिया..उन लोगों के लिए मैं तुम्हारा जीवन नहीं बर्बाद करना चाहता हूं?”,लालाजी कमरे के अंदर आते हुए बोले।

रमा की आंखों से आंसू छलक रहे थे।”पिताजी!आप?” रमा हैरत भरी आंखों से लालाजी की ओर देखती हुई बोली।”हां बेटी मेरी ही गलती थी..जो आज तुझे यह दिन देखना पड़ा..मैंने तुम लोगों को अलग कर दिया..हो सके तो मुझे माफ कर देना बेटी?”लाला जी रमा के आगे हाथ जोड़ते हुए बोले।”नहीं पिताजी! इसमें आपका कोई दोस्त नहीं है?”रमा लाला जी का हाथ पकड़ते हुए बोली। “होली है?” कहते हुए प्रकाश ने थाली में रखा हुआ सारा लाल गुलाल रमा के चेहरे और माथे में भर दिया। पूरे कमरे में लाल गुलाल की बौछार होने लगी। प्रकाश और रमा एक दूसरे की ओर देख रहे थे। “”होली है?” की आवाज लाला जी के घर में गूंजने लगी।

#अन्याय 

माता प्रसाद दुबे,

मौलिक एवं स्वरचित,

लखनऊ,

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