नई लहर – डाॅ उर्मिला सिन्हा: Moral stories in hindi

  शहर के नामी युनिवर्सिटी की शोध छात्रा जया को जब अपने टाॅपिक में  ग्रामीण पुरातन रीति-रिवाजों, संस्कृति पर अध्ययन करने का मौका आया… वह घबरा उठी। गांव-देहात की चर्चा उसने सिर्फ किताबों में पढी थी या सिनेमा के सुनहरे परदे पर देखा था। हीरो हीरोइन रंग-बिरंगे कपड़ों में पेड़ के इर्दगिर्द गीत गाते या नदी तालाबों में  जलक्रीड़ा करते…फिल्मी परदे पर देखा भर था। लेकिन उनके विषय में कोई जानकारी नहीं थी।

  उसने कुछ पुस्तकों से जानकारी जुटाई और कुछ सोशलमीडिया गूगल पर सर्च किया और अपने निदेशक के पास पेपर लेकर पहुँच गई।

  उसके निदेशक विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित बुजुर्ग प्रोफेसर थे। उन्होंने पेपर पढकर उड़ती निगाहों से जया की  ओर देखा, “कहाँ से लिखा, ग्रामीणों से जानकारी जुटाई। “

“नहीं सर, मैं भला गाँव कहाँ जाऊंगी… यही इधर-उधर से। “

“देखो जया, अगर तुम भुक्तभोगियों से पूछकर शोध-प्रबंध तैयार करती तब ज्यादा अच्छा रहता। “

  अब जया ने ठान लिया सिर्फ किताबी नहीं व्यवहारिक ज्ञान भी जिंदगी में आगे बढ़ने के लिये प्राप्त करना आवश्यक है।

  बहुत मुश्किल से जया की मम्मी ने अपने दूर के रिश्तेदार रैना जो रिश्ते में उनकी मौसेरी बहन लगती थी उनसे संपर्क किया.. जया की मुश्किल बताई।

 “मेरे पास भेज दो…!”

“मैं खर्चा पानी भेज दूंगी। “

“कैसी बातें करती हो… इसी बहाने तुमसभी से मिलना भी हो जायेगी। “

  जया अपने साजो-सामान के साथ अपनी मुँहबोली मौसी रैना के यहाँ गाँव में आ पहुंची। एक विशाल पुरानी हवेली …चारों ओर बडा़ सा अहाता… उसमें लगे बडे़-बड़े आम, जामुन, अमरुद, कटहल ,लीची के फलदार हरे-भरे पेड़।

दुसरी ओर सागवान, नीम, शीशम, सखुआ,बरगद,पीपल इत्यादि कीमती लकडि़यों का वृक्ष… केलों का बाग। पिछवाड़े में बडा़ सा तालाब जिसमें तरह-तरह की मछलियाँ उछलकूद करती ध्यान आकर्षित कर रही थी।

  रंग-बिरंगे अनेक प्रकार के फूलों से उपवन सजा हुआ था। कई स्त्री-पुरुष निकौनी और देखभाल में लगे हुये थे।

  वैसे मनभावन दृश्य ने जया का मन मोह लिया। अपनी माँ और परिवार वालों को मोबाइल कैमरे से सबकुछ दिखाती जया की खुशी छिपाये नहीं छिप रही थी। घर वालों ने चैन की सांस ली।

  “क्या खाओगी बिटिया “सामने कांसे के थाली मे विभिन्न व्यंजन देख जया को अपनी माँ याद आ गई।

 “अरे इतना कुछ… मौसी आप ज्यादा तकल्लुफ़ न करें… मैं खा लूंगी। “

    अभी मार्च अप्रैल का महीना था। शरद ऋतु की  बिदाई और बसंत की अगुवाई… सब कुछ अतिसुंदर।

 संयुक्त परिवार था… रैना की मौसी के साथ उनके दो जेठ, देवर, सास-ससुर सपरिवार रहते थे। बड़े बच्चे बाहर पढाई या नौकरी कर रहे थे  और छोटे बाल-बच्चे वहीं गाँव के स्कूल में पढ रहे थे। मेहमानों का आना-जाना लगा रहता था। आम परिवारों की तरह वे आपस में  नोक-झोंक भी करते और एक दूसरे का सम्मान भी।

  शहर के नीरस दिनचर्या से यहाँ का रौनकदार रहन-सहन ने जया का मन मोह लिया।

 वह अपने शोध कार्य में लग गयी।

“मालकिन, मालकिन  “का रट लगाये एक स्त्री आ पहुंची।

“बिटिया का विवाह है, कुछ मदद चाहिए। “

“ठीक है “इधर से आश्वासन मिला।

  जैसे-जैसे  जया लोगों के बीच उठने-बैठने लगी… कुछ कड़वी सच्चाई सामने आने लगी।

“सात वर्ष की कन्या और दस वर्ष का बालक… यह कैसा विवाह? यह तो बाल-विवाह हुआ “जया ने आश्चर्य से पूछा।

“यह गाँव है, यहाँ ऐसे ही बचपन में विवाह हो जाते हैं… बड़े होने पर गौना होगा! “लोगों ने समझाया ।

“लेकिन यह कानूनी जुर्म है… जेल चले जायेंगे सभी… बाल-विवाह कराने वाले”जया सभी को समझाने लगी।

कभी किसी को डायन करार कर उसे प्रताड़ित करते।

 धीरे-धीरे जया ने इन कुरीतियों अंधविश्वासों रुढियों का विरोध करना शुरू किया तो उसपर खिलाफत का आरोप मढ गाँव से चले जाने के लिये कहा गया।

“मैं आपके खिलाफ नहीं हूं बल्कि आज के युग में इन कुरीतियों अंधविश्वासौ और गलत परंपरा के खिलाफ हूं।”

जया ने बाल विवाह से होनेवाली  दुष्परिणामों का लेखा-जोखा समझाना शुरू किया… लोगों के समझ में बात आने लगी, “मेरी फूल सी बच्ची, पहले मैं इसे पढाकर स्वावलंबी बनाऊंगी फिर इसकी मर्जी से व्याह होगा”माताएं बेटियों का साथ देने लगी। उनके दृढनिश्चय के आगे किसी की न चली। जया ने चैन की सांस ली।

जया के साथ कुछ युवा भी आगे आये… गंभीरता से समझाने पर सभी मुख्यधारा से जुड़े।

 बालबिवाह पर रोक लगी… शिक्षा और जागरुकता की लहर आई।

 आज जया अपना शोध पुरा कर शहर लौट चली… शीघ्र आने के वादे के साथ।

सर्वाधिक सुरक्षित मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा©®

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