नाम लेने से इज्ज़त नहीं घटती…!  – मीनू झा

क्या बताऊं विमला..तू तो मेरा स्वभाव जानती है ना मैं शुरू से बहुत मीन मेख निकालने वाली नहीं रही हूं…जो खाना है खाओ जो पहनना हो पहनो जैसे रहना हो रहो जहां जाना आना है जाओ आओ…तुम तो देखती हो ना…बड़ी बहू के समय से ही

हां सविता भाभी…बड़ी किस्मत वाली है तुम्हारी बहुएं सच में जो तुम जैसी सास मिली…भई देखो सास तो हम भी हैं पर हमें तो बर्दाश्त नहीं होता.. ज़रूरत से ज़्यादा कुछ दिखा तो बिना टोके हमसे रहा नहीं जाता…पर तुम तो सच में अलग हो बहन…तुम्हारे जैसी सास बनना कठिन है

पर तुम्हें ऐसा लगता है विमला….मेरी बहुओं को भी मुझसे शिकायतें होंगी।

हैं…तुमसे शिकायत कैसी शिकायत सविता भाभी??

बड़ी बहू को भी होगी पर उसने तो नहीं कहा कभी मुझसे..पर छोटी बहू को है ना…। दरअसल मुझे दो चीजों के लिए थोड़ा बुरा लगता है…एक तो वो नमन का नाम लेकर बुलाती है…दूसरा निखिल से कोई परहेज नहीं करती है..बताओ क्या मैं ग़लत हूं…या कोई ऐसी अनोखी बात कर रही हूं जिसे पूरा नहीं किया जा सकता??लोग तो बहुओं के नाम तक बदल डालते हैं पर मेरी बहू समझे तब ना.. मैंने इशारों इशारों में कई बार कोशिश की उसे समझाने की पर वो तो समझती ही नहीं

कहां ग़लत सोच रही हो सविता भाभी…ठीक है जमाना बदल गया है और आजकल सभी अपने पति को नाम लेकर ही बुलाती है,पति की इज्जत ही नहीं रही पहले जैसी..पर तुम्हें अगर ये अच्छा नहीं लगता तो क्या तुम्हारी इतनी सी बात का मान नहीं रख सकती तुम्हारी बहू…और जेठ से परहेज़ ना करने वाली बात तो भाभी मुझे भी बड़ी चुभती है…अरे रिश्ते की मर्यादा भी तो कोई चीज होती है।

मेरी मां ने मुझे सिखाया था विमला..कि पति को कभी नाम लेकर ना बुलाना..आयु कम होती है अब इसे मेरा अंधविश्वास ही मान लो..पर मैं इसमें भरोसा रखती हूं..मेरी बेटी और बड़ी बहू दोनों अपने पति को नाम से नहीं बुलाती..पर छोटी वाली… नौकरीपेशा है माॅर्डन है भला मेरी बात क्यों समझेगी और ठीक है निखिल से बातचीत में परहेज नहीं कर सकती है ना करें,एक टेबल पर तो ना खाएं कम से कम…पर वो तो निखिल की थाली से भी उठाकर कुछ भी खा लेती है  –सविता ने दुखी होकर कहा।




दुखी ना हो बहन कलयुग आ गया है क्या कर सकते हैं..चलो मेरी सांझ बाती का समय हो गया चलूं–विमला ने खड़े होते हुए कहा।

सविता अपने दोनों बेटे बहुओं के साथ रहती थी,यूं तो दोनों बहुएं नौकरीपेशा थी पर बड़ी बहू ने बेटी होने के बाद कुछ दिन की छुट्टी ले रखी थी…नई बहू अंकिता की शादी को ज्यादा दिन नहीं हुआ था..संयोग से नमन और अंकिता एक ही ऑफिस में काम करते थे..अंकिता समझदार थी सबकी बहुत इज्जत करती थी…पर सविता को उसके नमन का नाम लेने और निखिल से खुलने पर दिक्कत थी..जिसे वो कई बार इशारों में समझाने की कोशिश कर चुकी थी पर उस बात को अंकिता कभी गंभीरता से लेती ही नहीं थी हंसी में उड़ा देती थी…इससे सविता अंदर ही अंदर कुढती और दुखी रहती।

चार दिन बाद करवा चौथ का व्रत था… दोनों बेटों और अंकिता ने भी छुट्टी ले रखी थी… दोनों बहुएं सुबह से ही शाम की पूजा की तैयारी में लगी थी ये देखकर सविता को बड़ी खुशी हो रही थी।

छोटी बहू… बहुत अच्छी लग रही हो आज

थैंक्स मम्मी जी अपने पति के लिए व्रत रखा है तो अच्छी लगूंगी ही ना मम्मीजी

मैं क्या कह रही थी…देखो तुमने नमन की लंबी उम्र की खातिर व्रत रखा है ना तो कम से कम आज के दिन तो उसे नाम लेकर ना बुलाना..–दिल की बात आज सामने सामने कह ही दिया सविता ने

अंकिता को पता था कि सासू मां को उसका नमन का नाम लेना और निखिल के साथ परहेज ना करना खलता है पर कभी मुंह से कहा नहीं था जब आज बोल रही है तो उसे लगा कि आज इन सबका खुलासा होना ही चाहिए।

मम्मी जी…एक बात पूछूं?

क्या??

आपके लिए सबसे पहले मतलब प्रथम पूजनीय क्या है

जो सबके लिए होते है भगवान जी और क्या?

भगवान जी तो बहुत सारे हैं कौन से ??

सारे भगवान ब्रह्मा विष्णु महेश राम हनुमान कृष्ण, दुर्गा लक्ष्मी सरस्वती…सब पुज्य है..पर ये सब तुम क्यों पूछ रही हो?

आपने उनका नाम लिया ना जिनकी आप इज्जत करती हैं पूजा करती हैं??तो क्या उनकी इज्जत घट गई या आपका सम्मान घट गया??नहीं ना…तो वहीं होता है मम्मीजी सम्मान और प्रेम दिल से आता है जुबान से नहीं…और नमन और मैं एक ही ऑफिस में काम करते हैं आप खुद बताइए क्या वहां ऐजी ओजी या पतिदेव बोलने से काम चलेगा?? पर हां अगर आपको इतना ही बुरा लगता है तो मैं कोशिश करूंगी कि घर पर नमन को…साॅरी पति को पतिदेव बुलाऊं…अब ठीक है?रही बात उम्र घटने की तो आप तो पापाजी को नाम लेकर नहीं बुलाती होंगी ना पर वो तो आपको नाम लेकर ही बुलाते होंगे…फिर उनकी आयु क्यों कम रही मम्मी जी??ये महज एक अंध विश्वास है और कुछ भी नहीं..।




और हां दूसरी एक बात जो मुझे लगता है आपको अच्छी नहीं लगती..मेरा भैया के साथ एक टेबल पर बैठकर खाना या कभी उनकी थाली से उठाकर खा लेना…मम्मी जी वो मैं इसलिए करती हूं क्योंकि उनमें मुझे अपना खोया हुआ बड़ा भाई दिखता है…अपना जेठ तो मैंने उन्हें कभी माना ही नहीं उनमें अपने बड़े भाई को ही  देखा है तो भाई बहन में क्या परहेज मम्मी जी???

बात तो सही ही कह रही है बहू… भगवान को तो हम नाम से ही बुलाते हैं तो क्या उनकी इज्जत कम हो जाती है…और अगर जेठ और बहू में भाई बहन का पवित्र रिश्ता,प्यार,अपनापन और सम्मान हो तो क्या फर्क पड़ता है वो फासले बनाकर चलें –सविता ने अपने मन ही मन अंकिता की बातों पर मनन किया।

कभी कभी बोलने से भी बहुत बातों का निराकरण हो जाता करता है..वरना वो बात गलतफहमी बनकर मन में पलती रहती है…जबकि अगले के पास उसका सही तर्क होता है…है ना??

मीनू झा

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