सही राह – लतिका श्रीवास्तव

वृद्धाश्रम के दरवाजे पर ही पिता रमानाथ जी को उतार कर राजन चलने लगा तो वृद्ध अशक्त पिता ने कोई शिकायत नहीं की बस आंसू भरी आंखों और रुंधे गले से हमेशा की तरह सदा खुश रहो बेटा का आशीष जरूर दिया जिसे सुनने के लिए बेटा राजन रुका ही नहीं….तुरंत कार स्टार्ट करके घर वापिस आ गया….

….घर पहुंच कर जैसे ही अंदर आया विशाल अंकल जो पिताजी के दोस्त थे उनकी आवाज सुनाई दी…अरे भाई रमा नाथ कहां हो भाई लगता है अब तेरा कान भी कमजोर हो गया है इलाज करवाना पड़ेगा….देख आज तेरे लिए तेरी मनपसंद रबड़ी लाया हूं दांत नहीं हैं ना तेरे बहू ने खासतौर पर तेरे लिए भिजवाया है इसीलिए आया हूं और तू है कि सुन ही नहीं रहा…..!अरे अंकल नमस्ते आइए ना अंदर आइए…राजन अचकचा सा गया था क्या बात करे कैसे बताए..!!

नहीं बेटा बैठूंगा नहीं बस ये रबड़ी रमा को खिलाकर चला जाऊंगा….छड़ी के सहारे धीरे धीरे कदम बढ़ाते विशाल जी ने राजन को देख कर कहा…कहां है रमा दिखाई ही नहीं दे रहा ना ही उसकी कोई आवाज सुनाई दे रही है….तबियत तो ठीक है ना उसकी..!उनका चिंतित स्वर राजन को बेचैन कर गया … नहीं अंकल पापा घर में नहीं हैं…राजन ने कहा तो विशाल जी ने आश्चर्य से पूछा घर में नहीं है तो कहा गए तू भी तो यही है….

वो अंकल मैने  वृद्धाश्रम में उनके रहने की व्यवस्था कर दी है ….अभी मैं वहीं से आ रहा हूं…बहुत अच्छी व्यवस्था है वहां पर ….राजन की बात सुनते ही विशाल जी के कदम जम से गए वृद्धाश्रम..!!राजन तू रमा को ….अपने वृद्ध पिता को खुद वृद्धाश्रम में अकेला छोड़ आया….सदमा सा लगा था उन्हें सुनकर…अपने लड़खड़ाते कदमों को वहीं पड़ी कुर्सी पर किसी तरह बैठकर सहारा दे पाए थे….!

क्यों किया तूने ऐसा राजन !!तेरे लिए बोझ बन गया था तेरा पिता !!!क्यों!!

…अंकल आपसे कुछ छुपा नहीं है…मां के जाने के बाद से पापा की दिनचर्या ही नहीं बोलचाल व्यवहार भी अजीब सा हो गया है….कपड़े पहनने का सलीका ही भूल गए हैं……किसी के भी सामने कैसी भी पोशाक में आ जाते हैं….अपनी बहू रश्मि के ऊपर बात बेबात चिड़चिड़ाते रहते है….कल बच्चों के ट्यूशन टीचर को अपशब्द कहने लगे थे….और परसो पड़ोसी मोहन जी के बगीचे में जाकर सारे फूलों को नोच रहे थे…एक मिनट को घर में सुकून और शांति नहीं मिल पाती थी…मुझे ही संभालना पड़ता था उन्हें इतने ऊंचे पद पर हूं मैं….ऑफिस में इतना  काम….रोज रोज छुट्टी कैसे मिलेगी…




…..अचानक खड़े हो गए थे विशाल जी ….बस बेटा बस कर … तुझासे ऐसी उम्मीद नहीं थी…. जानता है बचपन में एक बार बोर्ड परीक्षा में तू फेल हो गया था… रमा पर तो गाज गिर गई थी …बड़ा नाज़ था उसे अपने बेटे पर…सारी बिरादरी में उसकी बदनामी हुई…पर तुझ पर उसने आंच नहीं आने दी थी… तू अवसाद में चला गया था…घर से बाहर नहीं निकलता था ….घर में सबके ऊपर चिल्लाता रहता था….कभी नहीं पढूंगा ऐसा भी कहता था…. उस समय रमा ने ऑफिस से लंबी छुट्टी ले ली थी और पूरे समय तेरा ध्यान रखता था …अपने हाथों से तेरी पसंद की चीज़े बनाकर खिलाता था…किसी से मिलता जुलता नहीं था….सिर्फ मैं ही था जिससे वो अपना दुख सुख बांट लेता था…मैं समझाता था अरे रमा इतना पागल मत बन पुत्र मोह में तेरी नौकरी छूट जायेगी तेरा लड़का बिगड़ गया है तेरे इसी लाड़ में उसको डांट फटकार लगा…..

….तब वो बहुत विश्वास से कहा करता था नहीं विशाल मेरा बेटा है ये कभी गलत राह पर नहीं जा सकता अभी बच्चा है गलती हो गई सुधर जायेगा… देखना एक दिन मेरा नाम रोशन करेगा….नौकरी का क्या हैमुझे फिर कोई सी मिल ही जायेगी पर मेरा बेटा खो गया तो…..!!… अभी मेरे बेटे को मेरे स्नेह और ख्याल की जरूरत है….

दिन रात एक कर दिया था उसने रात रात भर तेरे बिस्तर के पास बैठा रहता था कहीं कोई गलत कदम ना उठा ले तू……..तब तो उसने तुझे किसी सुधार गृह में भेजने की कल्पना भी नहीं की….!!..और उसीकी तपस्या त्याग से ही तू आज सफलता के इस मुकाम पर खड़ा है…!सोच अगर उस समय उसने तेरी पढ़ाई छुड़ा दी होती…!तुझे उसी रास्ते बिगड़ने के लिए छोड़ दिया होता …..!जैसे तू आज कर रहा है अरे बेटा आज तेरे पिता को मेरे दोस्त को तेरी मेरी सख्त जरूरत है ….

…..राजन की काटो तो खून नहीं वाली स्थिति हो गई थी…..अंकल मुझे माफ कर दीजिए…चलिए पापा को वापिस घर लेके आते हैं आप भी आइए अकेले मेरी हिम्मत नहीं है….

……वृद्धाश्रम के अंदर रामनाथ सोच नहीं पा रहे थे अब किसके लिए जीयूं….!तभी रमा ए रमा सुनकर लगा स्वप्न देख रहे हैं..अरे विशाल ..विशाल तू यहां..!हां और क्या देख तुझे ढूंढ निकाला….चल रमा घर चल…विशाल ने उनका हाथ थाम कर कहा…कैसे चलूं विशाल मेरा अब यही घर है मेरा बेटा खुद मुझे यहां छोड़ कर गया है…..रमानाथ जी कह ही रहे थे तभी विशाल के पीछे से राजन आ गया….पापा  ….मुझे माफ कर दीजिए …अपने घर चलिए आपका ये बेटा एक बार फिर राह भटक गया था….

… नहीं ये मेरा बेटा है कभी गलत काम नहीं कर सकता पूरे विश्वास से कहते हुए सिर झुकाए खड़े अपने पुत्र को रमानाथ जी ने गले से लगा लिया था…..चल अब जल्दी घर चल रमा ….रबड़ी भी तो खाना है तुझे.. कहते हुए विशाल जी अपने मित्र का हाथ पकड़कर कार की ओर बढ़ गए…!

#संस्कार 

लतिका श्रीवास्तव

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