मम्मी का मौन – दर्शना जैन

प्रत्युश ने आवाज लगाकर रेखा से पूछा, मम्मी, सुई धागे का डिब्बा कहाँ रखा है? रेखा किचन में थी, वहीं से बोली,” मेरी अलमारी में है, क्यों चाहिये?” प्रत्युश ने कारण नहीं बताया और डिब्बा लेने चला गया।

  जवाब न मिलने पर रेखा आयी, प्रत्युश भी डिब्बा लेकर आ गया। रेखा ने कहा कि तुमनें बताया नहीं कि सुई धागा क्यों चाहिये? प्रत्युश ने बताया,” मेरी पेंट दो जगह से थोड़ी फट गयी है तो उसे सिलना है।” मम्मी ने बेटे से कहा,’ दूसरी अच्छी वाली पेंट पहन लो, इसे क्यों सिल रहे हो, वैसे भी तुम्हारी यह पेंट पुरानी हो गयी है।”

   प्रत्युश ने गंभीर हंसी हंसते हुए माँ से कहा,” तीन साल पहले खरीदी मेरी पेंट पुरानी हो गयी और दस साल पुरानी साड़ी, जिसे आप अभी भी सिल सिलकर पहन रही है, कल भी सिल रही थी, वह पुरानी नहीं हुई, क्यों? बेटे के प्रश्न पर मम्मी मौन थी, वैसे इसका उत्तर शायद ही किसी माँ के पास होगा। मम्मी को सवाल के साथ छोड़ प्रत्युश काम पर चला गया।

    वापस आया, हाथ में एक पैकेट था। प्रत्युश ने उसमें से लाल रंग की सुंदर चुनर  निकाली और मम्मी को ओढ़ा दी और बोला कि आप माता के लिये चुनर लाना चाहती थी ना तो मैं आपके लिये ले आया। फिर मम्मी को कुर्सी पर बिठाया, उनके पैर छुए। इसके बाद स्कूटर में से थैली लाकर मम्मी की गोद में रख दी। थैली में पीले और केसरिया रंग की दो साड़ियाँ थी। साथ में एक कार्ड भी था, उसमें लिखा था,” माँ पार्वती बन हर पल मुझे संभाला जिसने, माँ सरस्वती बन जीवन में मुझे बहुत कुछ सिखाया जिसने, मेरे जीवन की समस्याओं के आगे माँ दुर्गा व माँ काली बनकर खड़ी रही जो, लक्ष्मी माँ बन अपना स्नेहाशीष का धन मुझपर बरसाया जिसने, ऐसी प्यारी मम्मी को नवरात्रि की असीम शुभकामनाएँ।”

   बेटे के जज्बातों को पढ़, उसके लाये आत्मीय उपहारों को देख मम्मी की आँखें गंगा जमुना बनने से खुद को न रोक सकी।

दर्शना जैन

खंडवा मप्र

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