वह एक पल – विजया डालमिया

आकाश से मेरी मुलाकात एक कवि सम्मेलन में हुई थी ।हर कविता पर उसका सटीक वाहवाही करना, बरबस ही मेरा ध्यान उसकी तरफ आकर्षित कर गया ।मेरी निगाहें उसकी तरफ उठी और मैं अचंभित रह गई। गोरा चिट्टा ,लंबा पूरा, घुंघराले बाल। होंठ ऐसे जैसे जन्मजात लिपस्टिक लगी हो ।आँखों में वो आकर्षण जो किसी को भी अपना बना ले। मैं देखती ही रह गई। 

आसमानी रंग का शर्ट उसे   अलग ही लुक दे रहा था। मेरा मन पहली ही नजर में उसकी तरफ खींचता चला गया ।जी चाह रहा था कि यह कवि सम्मेलन यूँ ही चलता रहे ।मैं बार-बार उसे देख रही थी और वह बेखबर कवियों को दाद पर दाद दिए जा रहा था ।मेरी बगल में मेरी कजिन बैठी थी ।उसके बगल में बैठा था आकाश। ना जाने क्यों मुझे मेरे कजिन से जलन होने लगी ।बीच में जब वह पानी पीने के लिए उठी तो मैं लपक कर उसकी जगह पर जा बैठी। एक भीनी भीनी सी खुशबू मुझे महका गई ।मैंने फिर  डरते हुए उसे देखा और यह क्या वह भी मुझे ही देख रहा था।

  ।  अंजलि को मैंने पहली बार कवि सम्मेलन में देखा ।कितनी हसीन, गुलाबी रंगत लिये हुये। गुलाबी होंठ, लंबी तीखी नाक ।बोझिल पलकें। जिनके लिए बरबस मैं मन ही मन यह कह उठा…… “गुलाबी आँखें जो तेरी देखी” ।गुलाबी साड़ी में हल्का सा मेकअप किये वह सादगी के साथ कवि सम्मेलन का मजा ले रही थी ।मेरी वाह –वाह सुनकर उसकी नजरें मेरी ओर उठी और तभी उसकी चूड़ियाँ खनक गई ।मेरी नजरों ने उस खनक को  सुना । मैं अब उस खनक मैं खो गया। अब हम  बार-बार नजर बचाकर एक दूसरे को देख रहे थे। पर क्या मजाल जो हमारी नजरें एक बार भी मिली हो ।

उसका बार-बार मुझे देखना एक सुखद अनुभूति का एहसास करा गया । तभी वह मेरे बगल में आकर बैठ गई ।एक खुशबू के झोंके की तरह मैं उसे महसूस कर रहा था। तभी हमारे हाथ अनजाने में एक दूसरे से टकरा गये । उसके बाद कितने ही कवि  मंच पर आए व गए, हमने कुछ नहीं सुना ।बस एक स्पर्श जिसे सुनने की चाहत जाग उठी ।कवि सम्मेलन की समाप्ति तक जैसे एक जिंदगी जी ली थी मैंने उसके साथ,जिसका मैं नाम तक नहीं जानता था।

बाहर निकलते वक्त मैं उसके साथ साथ ही था । दरअसल मैं ऐसी कोई पुख्ता वजह की तलाश में था ,जिससे उससे बात कर सकूँ और वह वजह मुझे मिल गई ।न जाने कैसे उसका पाँव  साड़ी में उलझ गया ।वह गिरती उससे पहले ही मैंने उसे थाम लिया ।उसने धीरे से थैंक्स कहा ।पर वह चल नहीं पा रही थी ।शायद पैर मुड़ने  की वजह से मोच आ गई थी ।उसकी कजिन असहाय सी मुझे देखने लगी ।मैंने फिर आगे बढ़कर उसे सपोर्ट किया व हम बाहर आ गए । वे दोनों शायद कैब से जाने वाली थी ।तब मैंने उन्हें ड्रॉप करने की बात कही और वे मान गई ।मुझे ऐसा लगा जैसे  भगवान ने मेरी सुन ली। मैंने उसे गाड़ी में बैठाया और फिर चलती गाड़ी में शुरू हुआ परिचय का सिलसिला ।मैं आकाश माथुर …..और आप ?




मैं…. अंजली ।मैंने पूछा… सिर्फ अंजलि ….उसने कहा ….वर्मा ..अंजली वर्मा ….बातों बातों में मुझे यह पता चला कि वह कोलकाता की रहने वाली है और हैदराबाद में अपनी मौसी के यहाँ आई है और दूसरे दिन सुबह ही उसकी कोलकाता की फ्लाइट है।मेरा दिल कुछ उदास सा हो गया ।जब वह उतरने लगी तो जिन निगाहों से उसने मुझे देखा वह मेरे भीतर तक उतर गई ।बहुत बोलती हुई आँखें थी उसकी जैसे ,जहाँ देखेगी वही एक रिश्ता कायम कर लेगी । पहली बार जाना मौन अभिव्यक्ति किसे कहते हैं ।

कितना कुछ होठों पर आकर ठहर गया था ।मैंने जब कार से उतारते वक्त उसका हाथ थामा तो मालूम हुआ अनकही बात को किस तरह सुना जाता है ।कितना विश्वास था जब उसने मेरा हाथ एक झटके से थाम लिया ।मैं सोचने लगा कि इतनी जल्दी कोई इतना करीब कैसे हो सकता है ।पर दिल ने तभी जवाब दिया प्यार एक ऐसा परिंदा है जो बिना इजाजत के उड़ान भर लेता है। उनका घर आने पर मैं गेट तक उसके साथ गया। मैं सोच रहा था अगर वह मुझे भीतर चलने के लिए कहेगी तो मैं मान जाऊँगा ।मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ ।हमने एक दूसरे को खामोशी  से देखा । कुछ खामोशियाँ बहुत कुछ कह जाती है ।दिल कह रहा था इतनी भी क्या जल्दी है बिछड़ने की। अभी तो कुछ पल ही जीये हैं ।

 हर मौन में  एक  कहानी छुपी होती है। जिन्हें पूरी करना जिंदगी का मकसद नहीं होता ।हां ख्वाहिश जरूर हो सकती है ।और ख्वाहिशों का कोई अंत नहीं । हम अपनी अपनी दिशा में पलट गए,कुछ अजीब सी मनोदशा लिए हुए ।मैं भारी कदमों से कार तक चला आया ।।दिल कुछ कह नहीं सका और अनकही बातों का दर्द मेरे चेहरे पर उतर आया।मौन रहकर भी आँखों ने एक दूसरे से कितना कुछ कह डाला था । उन्हीं बातों  का दर्द जैसे आँखों में नमी बन कर उतर आया।  मैंने सोचा …..मैं अधूरा तो नहीं था उसके बिना ,पर अब क्यों पूरा भी नहीं रहा उसके बिना ….मेरी आँखों में मैंने कुछ नमी सी महसूस की । लेकिन दूसरे ही पल ये  भी ख्याल आया……  जिंदगी बहुत छोटी है और दुनिया गोल ।कभी ना कभी ,कहीं ना कहीं ,फिर से मुलाकात होगी।

इंतजार रहेगा हमेशा एक और मुलाकात का ।शायद  इसीलिए हमने एक दूसरे को अलविदा नहीं कहा। अचानक न जाने मुझे क्या हुआ और मैंने पलट कर देखा ।मैंने पाया कि  अंजलि भी वही ठहरी हुई है ।दिल में एक सुकून लिए,मैं इस पल को कैद किए ,हल्की  मुस्कुराहट  लिए  गुनगुना उठा …..

हम कयामत  तक इंतजार करेंगे तेरा

दिल में बस गया कुछ चेहरा यूँ तेरा ।

जब कभी मिलोगे पूछेंगे तुमसे सवाल ये  ।

बता दे जरा अब जवाब क्या है तेरा।

विजया डालमिया  

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