मुहँ ना खुलवाओ – संध्या त्रिपाठी  : Moral stories in hindi

     नमस्ते आंटी….. पौधों में पानी डाल रही है…..?? हां बेटा पर तुम कब आई ससुराल से गिन्नी…..?? तुम्हारी मम्मी ने बताया नहीं कि तुम आने वाली हो…. आओ अंदर बैठते हैं…! पाइप पौधों के बीच में रखते हुए आभा ने कहा….! हां आंटी वो अचानक ही प्रोग्राम बन गया…तो बस आ गई….।

     गिन्नी आभा के पड़ोसी मिसेज शर्मा की तीसरे नंबर की बिटिया थी…. बेटे की आशा में तीन तीन बेटियां हो गई थी….। मध्यमवर्गीय साधारण परिवार की छोटी बेटी गिन्नी देखने में सुंदर व आकर्षक थी… मिसेज शर्मा ने बेटियों में वो सारे संस्कार व गुण दिए थे जो एक लड़की में होनी चाहिए ….चुँकि आर्थिक स्थिति बहुत सामान्य थी इसीलिए बहुत सोच समझकर सामान्य ढंग से शर्मा परिवार की जीवन शैली चल रही थी….।

चूँकि गिन्नी सुंदर एवं सुशील लड़की थी… अतएव एक संपन्न परिवार के लड़के शिवम ने उसे पसंद कर लिया… और शादी का प्रस्ताव रख दिया….! गिन्नी के माता-पिता भी गिन्नी की शादी को लेकर काफी प्रसन्न थे… क्योंकि गिन्नी काफी धनी परिवार में ब्याह रही थी ….।

      शादी के बाद गिन्नी ससुराल में काफी तौर तरीके से रहती थी…! बिल्कुल आदर्श बहू की तरह… क्योंकि मायके में काम धाम करती थी अतः काम करने की आदत से…गिन्नी नौकर चाकर के रहते हुए भी दिन भर उनके साथ कामों में लगी रहती थी….।

     गिन्नी की एक ननद थी… जो हर गर्मी में मायके आती थी और पूरी छुट्टियां बिताने के बाद ही वापस ससुराल जाती थी….! इस बीच गिन्नी कभी भी मायके जाने को नहीं कहती उसे लगता ननद आई हैं और मैं मायके चली जाऊं तो शायद उन्हें अच्छा नहीं लगेगा या उनका अपमान हो जाएगा….यही कारण था कि गर्मियों में वो कभी मायके नहीं आती थी…।

       असल में तुम गर्मियों में कभी यहां आती नहीं हो ना गिन्नी… इसीलिए मैंने पूछा… और वैसे भी तुम्हारे यहां तुम ए सी में रहती हो अब तो तुम्हें यहां की गर्मी बर्दाश्त भी नहीं होगी … आभा ने अपने पूछे हुए प्रश्न पर सफाई देनी चाही….।

   हां आंटी मैं गर्मियों में यहां इसीलिए नहीं….. नहीं आती थी कि अब मुझे गर्मी बर्दाश्त नहीं होगी… बल्कि मेरी ननंद आती थीं.. उनके सम्मान में मैं ससुराल में ही रहना ज्यादा उचित समझती थी… कहीं उन्हें बुरा ना लग जाये कि मेरे आते ही भाभी मायके चली जातीं हैं…. रहा सवाल गर्मी बर्दाश्त करने की…. तो यहां मेरा मायका है आंटी ….और मायका जैसा भी हो… लड़कियों के लिए स्वर्ग होता है… बचपन तो यही बिता है ना……मां का आंचल… पापा की प्यारी प्यारी बातें … हम बहनों का एक दूसरे के लिए फिक्र…. इनके सामने गर्मी जैसी छोटी समस्या कहां टिक पाएंगी आंटी….।

    आंटी गर्मी तो बर्दाश्त हो जाएगी…. पर मायके के लिए कही गई बातें या उपेक्षा बर्दाश्त नहीं होती…. कहते कहते गिन्नी की आंखों में आंसू छलक गए ….अरे गिन्नी क्या बात है बेटा.. ? तुम कुछ दुखी लग रही हो…. देखो बेटा मैं तुम्हारी मम्मी के समान हूं… चाहो तो मुझसे बातें साँझा कर सकती हो…. थोड़ा हल्का लगेगा और हो सकता है मैं भी तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं….।

    आंटी वैसे तो ससुराल अच्छा है… ये भी अच्छे हैं…. पर ये मर्द भी ना …..कभी-कभी अपने असली औकात में आ ही जाते हैं….! कहते-कहते गिन्नी रोने लगी …और कुछ देर बाद आंसू पोछते हुए गिन्नी ने खुद ही कहना शुरू किया….. एक दिन मैं मायके की कुछ बातें बता रही थी हम भाई-बहन ऐसा करते थे ….वैसा करते थे ….बहुत मजा आता था वगैरह वगैरह….! बिल्कुल बेपरवाह जिंदगी थी …कोई जिम्मेदारी नहीं… क्या दिन थे ….बस मेरा इतना बोलना था… कि पतिदेव को मेरे मायके की तारीफ शायद अच्छी नहीं लगी ….और उन्होंने बीच में ही मुझे टोकते हुए कहा… मुझे अच्छे से मालूम है कि क्या दिन थे तुम्हारे गिन्नी…. मेरा मुंह मत खुलवाओ…! इसीलिए कभी जाने का नाम नहीं लेती हो….।

     आंटी पतिदेव की इन बातों से मैं स्तब्ध थी… ये …ये सब कैसे बोल सकते हैं….. हमारी आर्थिक स्थिति के बारे में तो इन्हें पहले से पता ही था….।

” क्या गरीब घर की लड़कियों को मायके की तारीफ करने का अधिकार नहीं है….” ।

    मैंने भी पहली बार ससुराल में सबके सामने मुंह खोला… और पतिदेव से बोली…. मेरा भी मुंह मत खुलवाओ…. हर साल गर्मी में आपकी बहन आती हैं… इसलिए …मैं मायके जाने का प्रोग्राम नहीं बनाती हूं…. ये मेरा उनके लिए सम्मान है… जिसे आप लोगों ने अन्यथा समझ लिया… वरना मेरा मायका जैसा भी है… मेरे लिए वही स्वर्ग है ….!

    और हां मैं कल जा रही हूं कुछ दिनों के लिए….. इसलिए नहीं कि आपने जो बोला है… उससे मैं दुखी या नाराज हूं ….बल्कि इसलिए कि गर्मियों में …आंगन में… खटिया डालकर …हम बहने खुले आसमान के नीचे सोकर…. अतीत के सुखद अनुभव और स्मृति को ….लंबे समय के बाद एक बार फिर से जी सकें… ।

माँ अपने साड़ी के आंचल को हिला कर हमें हवा कर सके…. और वो हवा ए सी की हवा से कई गुना ठंडी और सुकून देने वाली होती है शिवम…..!

      शायद तुम बड़े घर के लोग इन छोटी-छोटी सुखद अनुभूति को समझ ही नहीं सकोगे…।

    और सच में आंटी यहां आकर एक अलग खुशी मिलती है …आसपास के लोग… आप सब से मिलने का एक अलग ही मजा है… गिन्नी ने मन में चल रहे उथल-पुथल को आंटी के समक्ष रख ही दिया…।

  आंटी जी… जो बड़े ध्यान और धैर्य से गिन्नी की बातें सुन रही थीं… उन्होंने बस इतना ही कहा… दुनिया की कोई भी लड़की मायके के खिलाफ बातें नहीं सुन सकती गिन्नी… और आज तुम जो भी हो मायके की परवरिश का ही परिणाम है…! तो जहां जन्म हुआ और जिन्होंने जन्म दिया …वहां की बुराई कैसे सुन सकती हो…. लेकिन शिवम भी ऐसे ही बोल दिये होगें… ! स्वभाव से तो बुरे नहीं है …..लेकिन ऐसे या वैसे… चाहे जैसे भी ….उन्हें किसी भी स्थिति में तुम्हारे मायके की बुराई नहीं करनी चाहिए… आखिर उनकी पत्नी के मां का घर है भाई…. शिवम को भी पूरी इज्जत करनी चाहिए….।

  खैर…. तुम्हारा बड़प्पन है कि तुम ननद का इतना सम्मान करती हो… और देखो ना… दो-चार दिन में ही वापस लौटने की सोच भी रही हो….! आंटी जी समझा ही रही थी कि अचानक गिन्नी की मोबाइल की घंटी बज उठी… उधर की आवाज तो स्पष्ट सुनाई नहीं दी ….पर इधर से गिन्नी मुस्कुराते हुए कह रही थी… हां हां तैयार रहूंगी… आ जाइएगा शायद दो-चार दिन में शुभम गिन्नी को लेने आने वाले थे….।

दोस्तों मेरे विचार कैसे लगे अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें…!

( स्वरचित मौलिक और सर्वाधिकार  सुरक्षित रचना)

संध्या त्रिपाठी

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