मोबाइल की लत- निशा जैन Moral stories in hindi

विपुल आजकल मम्मी जी का नया दोस्त क्या बन गया उन्हें अब बोलने बतियाने का समय ही नहीं मिलता।

ये क्या अनाप शनाप बक रही हो पल्लवी…..

मां का नया दोस्त कौन, कब और कहां बन गया और पापा के सामने तो भूलकर भी इस बात का जिक्र नहीं करना वरना तुम्हारी शामत आ जायेगी

अरे पापा का भी तो है वो ही दोस्त , उन्होंने ही तो परिचय करवाया है उनका उससे

ये क्या गोल गोल बाते बना रही हो पल्लवी…. साफ साफ बोलो क्या बोलना चाहती हो? विपुल कुछ घबराया सा हो गया

अरे मैं इस मोबाइल फोन की बात कर रही हूं इस नए स्मार्ट मोबाइल फोन की जो पापा ने मम्मी जी को अभी दिलवाया है

पल्लवी फोन दिखाते हुए बोली

ओह तो तुम इसकी बात कर रही हो…. विपुल लंबी गहरी चैन की सांस लेते हुए बोला

और क्या विपुल …. 

मुझे तो कभी कभी डर लगता है ……

हम लोग तो ऑफिस जाते हैं तो मोबाइल काम आना लाज़िमी है पर मम्मी पापा का एक हद तक मोबाइल का उपयोग करना ठीक है जैसे बात करना, व्हाट्स अप चला लेना तो कभी कभी भजन या गाने सुन लेना पर आजकल तो ये लोग हमारे किन्नू , किंशु की तरह मोबाइल पर ही पूरा दिन बिताना पसंद करने लगे हैं।

वो छोटे बच्चे है उन्हें डांट डपटकर भी समझाया जा सकता है पर जब मैं पापाजी को थोड़ा बोलती हूं कि बाहर हॉल में आकर टीवी देखलो या बच्चों के साथ गेम खेल लो तो मना ही कर देते हैं और मम्मी जी भी बोलती हैं बहु रहने दे, आराम से बैठे तो हैं नही तो अभी बाजार जाने की जिद करेंगे और फिर कुछ फालतू खर्चा कर आएंगे।

विपुल को ऑफिस में टेंशन होगी वो अलग…..

 मैं भी फिर अपना सा मुंह लेकर रह जाती हूं पर ये इनके स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होगा और फिर बच्चे भी तो हमसे सीखते हैं 

 हम दोनो तो घर पर पूरा दिन रहते नही हैं पर पापाजी मम्मी जी भी खुद फोन में लगे रहेंगे तो बच्चों को कैसे मना कर पाएंगे

 हां यार अब तो मुझे भी टेंशन होने लगी इन दोनो की साथ ही बच्चो की भी।

 अगले दिन ससुर जी के सीने के एक तरफ दर्द हो रहा था तो वो कुछ उदास दिख रहे थे

 क्या हुआ पापा आज तबियत ठीक नहीं क्या?

 हां बेटा सीने में कुछ दर्द सा उठ रहा है, बैचैनी भी लग रही है

 विपुल ने बीपी डायबिटीज चेक किया तो सब नॉर्मल आया 

 फिर क्या बात हो सकती है विपुल मन ही मन कुछ घबराया

 चलो पापा आज आपको डॉक्टर के यहां दिखा आता हूं, थोड़ा लेट ऑफिस चला जाऊंगा

 उधर विपुल पापा ( प्रमोद)के साथ डॉक्टर के यहां चला जाता है और इधर घर पर…..

  पल्लवी की सासू मां( सुधा ) आज अपने कपड़े नही धो पा रही थी तो बोली बहू आज मेरे कपड़े मशीन में धो देना

  हां मम्मी क्यों नही। मैं तो रोज़ ही आपको मना करती हूं कि आप कपड़े मत धोया कीजिए पर आप कहती हैं मेरे हाथ पैर चल रहे हैं तब तक अपना काम खुद ही करूंगी तो मुझे भी ठीक ही लगता है कि आपके हाथ पैर चलते रहेंगे तो अच्छा है वरना बुआजी की तरह अभी से बिस्तर पकड़ लोगी

  हां बहु पर आज कुछ दर्द सा हो रहा है हाथों को उंगलियों में

  शायद हड्डियां कमजोर हो गई 

  हां कोई बात नही मम्मी जी, आज मैं ऑफिस से छुट्टी ले लेती हूं आप आराम कीजिए

  अरे नही बेटा ऐसी भी कोई बात नही तू जा आराम से , मैं संभाल लूंगी सब.. बस एक बार विपुल और इसके पापा को आ जाने दे। (पल्लवी ने ऑफिस में लेट जाने के लिए बॉस से परमिशन ले ली)

  उधर डॉक्टर पापा से बोला

  बाऊजी आजकल एक करवट ही सो रहे हो क्या या सही पोस्चर में नही लेट रहे

  क्यों डॉक्टर क्या हुआ सब ठीक है ना

  विपुल मैने सब चेक अप कर लिया वैसे सब नॉर्मल है पर समझ नही आ रहा ये दर्द क्यों उठ रहा है। वैसे मैने पेन किलर दे दी है

  तभी पापा बोले डॉक्टर आजकल मैं एक करवट लेट कर मोबाइल जरूर चलाता हूं कहीं ये उससे तो नही हो रहा

  हो सकता है बाऊजी, इस उम्र में हड्डियां कमजोर होने से वो ज्यादा वजन ले नही सकती और फिर आपका वेट भी बहुत है तो भारी शरीर होने के कारण आपको असहजता महसूस होती होगी।

  आप एक दो दिन अपना पॉश्चर चेंज करके देखिए और मोबाइल कम चलाओ।

  डॉक्टर ने सारी हिदायतें देकर उन्हें घर जाने बोल दिया

  पल्लवी भी ऑफिस के लिए निकल गई और विपुल भी पापा को नीचे ड्राप करके निकल गया।

  प्रमोद जी घर आए तो सुधा को परेशान देखकर पूछे क्या हुआ सुधा?

  कुछ नही जी थोड़ा हाथ में दर्द है और सूजन भी है उंगलियों में। आज तो मोबाइल भी पकड़ने में नही आ रहा 

  कोई बात नही तुम आराम करो। बुढ़ापा है हमारा, ऐसे छोटे मोटे दर्द तो चलते रहेंगे अब

  दोपहर तक किन्नू किंशू स्कूल से आ गए 

  आते से ही टीवी चालू किया फिर खाना खाया। कहने को दोनो अभी छोटे ही थे लगभग 7 और 8 साल के पर बहुत तेज दिमाग वाले और कुछ तो मोबाइल , टीवी पर रील्स, वीडियो देखकर हो गए। और मोबाइल से कुछ भी उल्टा सीधा देखने लग जाते हैं। एक ने दादाजी का मोबाइल लिया तो दूसरे ने दादी का और हो गए शुरू रील और शॉर्ट वीडियो देखने में

  और आज तो हद ही हो गई

  जब किंशू ने एक गाली का मतलब अपने दादाजी से पूछा

  तो वो हैरान रह गए मन में सोचने लगे हे भगवान हमारे घर में कोई गाली नही देता पर ये कहां से सीख गया और स्कूल भी महंगा वाला अच्छा है जहां ये सब तो सिखाया जाता नही होगा फिर……उन्होंने किंशु को डांटकर चुप करा दिया

  थोड़ी देर बाद सुधा जी ने दोनो को मोबाइल रखने के लिए बोला तो दोनो बोले रुको जरा, सब्र करो दादी मां

  एक बार तो सुनकर उनको हंसी आ गई पर सोचने पर मजबूर भी हो गई कि बच्चे कौनसी भाषा बोल रहे हैं।

  शाम को पल्लवी सबको खाना लगा रही तभी किन्नू बोला मम्मी आपका नाम धोखा रख दूं क्या?

  उसने आश्चर्य के साथ पूछा क्यों? तो गाना गाने लगा

  तेरा नाम धोखा रख दूं, नाराज होगी क्या?

  सब लोग सुनकर हंसने लगे पर पल्लवी को थोड़ा अजीब लगा

  बच्चों के जाने के बाद उसने सुधा जी, प्रमोद जी और विपुल से बात की

  ये बच्चों की हरकतें कैसी हो गई हैं आजकल आपने ध्यान दिया 

  हां बहु दिन में भी हम ये ही सोच रहे थे…. फिर दोनो ने दिन की बात पल्लवी और विपुल को बताई तो दोनो हैरान रह गए

  (एक मां को उसके बच्चों की चिंता शायद सबसे ज्यादा होती है तभी पल्लवी ने बच्चों की हरकतों को कई दिनों से नोटिस करना शुरू कर दिया था और आज सबसे बात भी करने की पहल उसी ने की)

  पल्लवी बोली….ये बदलाव हंसी में नही टाले जा सकते। बाल मन नाजुक होता है और इन दोनो की हरकतों से पता चल रहा है कि ये हर तरह के कंटेंट के संपर्क में आ चुके हैं। इनका कुछ समाधान निकालना पड़ेगा। 

   विपुल बोला कल से दोनो की क्रिकेट क्लास लगवाता हूं , दोनो व्यस्त रहेंगे तो थक जाएंगे और समय से सो जायेंगे फिर मोबाइल , टीवी से भी दूरी हो जायेगी थोड़ी।

   सुधा जी और प्रमोद जी ने समर्थन किया और बोले इनको लाने छोड़ने की जिम्मेदारी हमारी

   हमे भी लग रहा है शायद हम दोनो भी आजकल बच्चों के साथ समय नही बिताते इसलिए ये मोबाइल , टीवी ज्यादा देख रहे हैं। हमे भी आजकल मोबाइल का चस्का जो चढ़ चुका है। और डॉक्टर ने तो मुझे आज से मोबाइल का कम उपयोग करने की सलाह भी दी है प्रमोद जी बोले

   हां और मेरे भी हाथों की उंगलियो में भी आज दर्द और सूजन है सुबह से। सुधा जी बोली

   अरे मां मै तो पूछना ही भूल गई आपके हाथ के दर्द के बारे में

   चलिए कल मैं आपको डॉक्टर के यहां दिखा लाती हूं। अरे रहने दे बहु एक दो दिन दर्द की गोली दवाई लूंगी तो ठीक हो जाऊंगी

नही मां “हर बीमारी का इलाज़ सिर्फ दवा नही होती ।” कभी कभी हमारी जीवन शैली बदलने से या खान पान में सुधार करने से भी बहुत फायदा हो जाता है और क्या पता दवाई की ज़रूरत ही ना पड़ें।

   सुधा जी भी दर्द से परेशान थी तो चलने के लिए तैयार हो गई

   अगले दिन सुधा पल्लवी के साथ डॉक्टर को दिखाने गई तो उनकी उम्र और लक्षणों को देखते हुए सबसे पहले डॉक्टर ने उनका रूमेटाइड आर्थराइटिस का टेस्ट करवाया पर वो नेगेटिव आया फिर भी हाथ दबाने पर दर्द था और सुबह उठकर सूजन आना बंद नहीं हुआ तो डॉक्टर ने कारण बताया जिसे सुनकर सुधा जी सन्न रह गई

   डॉक्टर बोले_मां जी आप मोबाइल घंटों तक हाथ में पकड़े रहती हैं और आजकल स्मार्टफोन साइज में बड़े होते हैं और औसतन वजन 140gm. से 170gm तक होता है । उसे पकड़ने पर उंगलियों पर प्रेशर पड़ता है और ये स्थिति घंटों और रोजाना होने पर हाथ में दर्द और सूजन आ जाती है बस आपके साथ भी ये ही हुआ है।

हर बीमारी का इलाज़ सिर्फ दवा नही होती। आप खुद अपना ध्यान रखेंगी तो अपने आप ठीक हो जाएगी

   चिंता की कोई बात नही है आप मोबाइल से थोड़ी दूरी बनाए ,अपने आप दर्द ठीक हो जायेगा।

   सुधा मन में सोचने लगी _”मैं अच्छी खासी अपनी मस्ती में मस्त रहती थी। सुबह शाम मंदिर जाना, बच्चों को पार्क ले जाना सब छूट गया इस मोबाइल की लत से। और विपुल के पापा के साथ थोड़ी बहुत लड़ाई भी होती रहती वो भी बंद हो गई मेरी । इस बहाने कम से कम दोनो साथ वक्त तो बिताते थे पर अब वो अपने मोबाइल में, मैं अपने मोबाइल में और बच्चे अपने में मस्त रहते हैं पर लगता है ये कुछ ज्यादा ही हो गया है।

   अभी से मोबाइल का अनावश्यक उपयोग न करूंगी न ही किसी को करने दूंगी।”

सुधा जी रास्ते में बहु से बोली_

   पल्लवी मुझे माफ कर दो बेटा , मुझे लगता है बच्चों के साथ वक्त नहीं बिता पाने से वो मोबाइल के आदी होने लगे हैं । तुमने भी नौकरी मेरे कहने पर की थीं कि बच्चों का ख्याल मैं रखूंगी पर ……

   अरे मां ऐसी बात नही है वो तो बच्चे हैं , समझाने पर समझ जायेंगे पर मुझे दुख इस बात का है कि आपको हाथों में दर्द की शिकायत और पापाजी को सीने में दर्द की शिकायत मोबाइल के ज्यादा उपयोग से होना शुरू हो गई इस पर समय से ध्यान नहीं दिया तो आगे चलकर परेशानी हो जायेगी।

    पर समय से पता लग गया तो अब हम संभल जायेंगे और बच्चों को भी समझा पाएंगे।

     अगले दिन से सुधा जी पहले वाली सुधा जी और प्रमोद जी पहले वाले प्रमोद जी बन गए ।दोनो ने बिना मोबाइल के वॉक पर जाना शुरू कर दिया था। अब खाली समय थोड़ी देर मोबाइल देखते (क्योंकि आदत धीरे धीरे जाते से ही तो जायेगी) पर बहुत सीमित समय के लिए जैसे व्हाट्स अप चेक करना, नोटिफिकेशन देखना वगैरा 

     और बच्चों को भी दोनो अपने साथ किसी न किसी एक्टिविटी में व्यस्त रखने लगे जैसे कभी दादाजी उनके साथ कैरम बोर्ड खेलते तो दादी उनको कहानियां सुनाती, दादाजी कभी उनको पार्क घुमा लाते तो दादी कभी उनको बागवानी करना सिखाती और फिर विपुल ने अगले हफ्ते से उनकी क्रिकेट क्लास भी लगवा दी थी जिससे उन्हें मोबाइल या टीवी देखने का टाइम कम ही मिलता।

     सुधा जी और प्रमोद जी अपने स्वास्थ्य को भी पहले से बेहतर महसूस कर रहे थे। और एक दूसरे के साथ समय बिताने से , हंसने , मुस्कुराने, नोंक झोंक करने से पहले से ज्यादा ऊर्जावान भी हो गए थे। मोबाईल का चस्का उन्हें अब एक धोखा प्रतीत हो रहा था जिस जंजाल से वो खुद को निकाल पाने में सफल हो चुके थे।

          दोस्तों कहीं न कहीं हम सब इसी मोबाइल की दुनिया के हो गए हैं क्योंकि इस बीमारी के कीटाणु हर उम्र को चपेट में ले चुके हैं। जरा सा ऑब्जर्व करेंगे तो पाएंगे कि तकनीक से खुद को अंजान कहने वाले बुजुर्गों की वाट्सअप और यू ट्यूब पर सक्रियता उनके व्यवहार में आए बदलाव से रूबरू करा देगी। महिला हो या पुरुष हर खुशी_ गम या साधारण अवसर पर भी स्टेटस या स्टोरी खोज लेने की काबिलियत अचानक सबमें उभर आई।।

             किसी भी उम्र का शख्स यदि रील देखना शुरू कर दे तो होश में आने तक घंटा डेढ़ घंटा बीत चुका होता है

             कड़वा जरूर है मगर सच है नौकरीपेशा, बिजनेस मैन, हाउस मेकर …. हर तबके के लिए मोबाइल के बगैर जीना असंभव हो गया है। और अब तो हर पैरेंट से गर पूछा जाए कि बच्चों से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या क्या है तो वे पहले नंबर पर मोबाइल की लत का जिक्र करेंगे। जिससे हम सब अच्छे तरह से वाकिफ हैं।

             मोबाइल बिना खाना नही खाते, रील और शॉर्ट वीडियो में जो अनाप, शनाप भाषा , विजुअल्स और आइडिया देखते हैं उनकी नकल करते हैं।

             मार काट वाले एनीमेशन ,गेम्स, भूत प्रेतों वाले डरावने वीडियो और वाहियात किस्म की ऊलजलूल हरकतों से लिपिपुति कॉमेडी उनको बहुत भा रही है।

             दोस्तों बच्चे हम बड़ो से ही सीखते हैं। तो जागिए खुद इस जंजाल से निकलकर उनके सामने उदाहरण पेश कीजिए क्योंकि बच्चो के लगातार शॉर्ट वीडियो आगे बढ़ाने की प्रैक्टिस से उनकी ठहर कर सोचने और फैसले लेने की क्षमता घट रही है।फोकस बिगड़ रहा है जो उनके भविष्य के लिए दुखदाई हो सकता हैं।

ये मेरे अपने अनुभव हैं । इस पर आपकी क्या राय है ?

अपने विचारों से अवगत कराना नही भूलें। 

आपकी दोस्त

निशा जैन

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