मेरी प्रेम कहानी ( भाग 1 ) – दुर्गा खीर

12वीं पास किया अच्छे खासे परसेंट भी बन गए थे। First   डिवीजन पास हो गई थी। फिर सोचा कंप्यूटर कोर्स कर लु हालांकि स्कूल में कोई भी बॉयफ्रेंड नहीं था। एक अच्छी मेरी दोस्त थी जिसके साथ में हर बातें शेयर करती थी।एग्जाम के बाद हम भी बिछड़ गए हैं कंप्यूटर कोर्स किया। हमारे गांव के दो लड़कियां और साथ में थी। जब पहली बार उस लड़के को   देखा तब नहीं पता था कि यही जीवन का हमसफर बन जाएगा।  उसने वाइट कलर की टी-शर्ट पहन रखी थी और मुंह  रुमाल से कंवर था हालांकि मुझे भी लड़कों में इंटरेस्ट नहीं था क्योंकि मैं आगे पढ़ना चाहती थी। मैं तो उसको नहीं जानती थी लेकिन शायद वह मुझे अच्छी तरह से जानता था। मेरे पास टच वाला फोन तो नहीं था लेकिन बटन वाला फोन जरूर था क्योंकि जब क्लास में जाते थे कंप्यूटर क्लास में तो थोड़ा लेट हो जाते तुम पापा को कॉल कर देते थे। इसलिए पापा ने  बटन वाला फोन दे रखा था लेकिन उसको पता नहीं कहां से नंबर मिले , वह एक होटल में मैनेजर की पोस्ट पर  था ।उसके साथ में जो लड़का काम करता था वह मेरे रिलेटिव में  भाई  था इसीलिए एक दिन उस भाई  का फोन आया  औपचारिकता से बात हुई दीदी क्या कर रही हो मैंने सोचा आज इसने क्यों कॉल किया है लेकिन मैं समझ नहीं पाई थी और बात करके फिर मैं खाना खाने के लिए चली गई ।

दो-तीन दिन बाद मुझे वापस कॉल आया उसका नाम तो शायद मैं अभी भी नहीं जानती थी । उसने कहा था कि आप के रोल नंबर दो  क्योंकि मैं बाहरवी में फर्स्ट आई थी और हमारे कास्ट में लड़कियों को पढ़ाना इतना अहमियत नहीं है तो हमारे समाज में यह बहुत बड़ी बात थी तो मैने  रोल नंबर दे दिए ।  फिर ऐसे ही छोटी मोटी बातें हुई और फिर उन्होंने मुझे बोला है कि वापस बात करेंगे । मैंने बोला क्यों बात करेंगे फिर मैंने फोन काट दिया


1 दिन उनका वापस एस एम एस आया कि हम मैसेज पर बात कर सकते हैं। मैं  थोड़ा घबराई फिर मैने  थोड़ी देर बाद रिप्लाई किया ।

धीरे-धीरे हमारे मैसेज से बात होने लगी हालांकि मेरे अंदर तो कोई प्यार वाली फीलिंग नहीं थी लेकिन लगता है वह मन ही मन में मुझे चाहने लगे थे लेकिन कभी कह नहीं पाए ।

धीरे-धीरे फोन पर रोज बातें होने लगी मैं छत पर सोती थी ऊपर । मम्मी पापा सब नीचे सोते थे अह शायद धीरे-धीरे मैं  भी उनको चाहने लगी थी।

यह वह प्यार था जो ना तो उन्होंने मुझे देखा था और ना ही मैंने उनको देखा था केवल नाम से एक दूसरे को जानते थे।

उनसे रोज बातें करके ऐसा लगने लग गया जैसे उनके बिना अब जिंदगी कुछ भी नहीं है। फिर एक दिन मुझे मिलने बुलाया ज्यादा दूर नहीं हमारे पास में एक गार्डन था वहां पर । मैंने ब्लू कलर की सलवार और पिंक कलर का सूट पहन रखा था हालांकि उन्होंने  रुमाल से मुंह बांध रखा था। वह बाइक पर आए थे फिर ऐसे ही हाय हेलो किया फिर एक दूसरे की आंखों में देखकर ऐसे लगा जैसे सदिया जी ली हों । सदियों से एक दूसरे को जानते  हो । धीरे-धीरे ऐसे ही रोज मुलाकाते होने लगी। लेकिन  कभी भी उन्होंने मुझे टच तक नहीं किया था और यही बात उनकी मुझे दिल पर लग गई।ऐसे ही  4 महीने गुजर गए।

इन 4 महीनों में दिल के हम इतने करीब आ गए थे जैसे अब उनके बिना सांस लेना भी मुश्किल था।

अगली कहानी अगले पार्ट में।

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